वृंदावन

आध्यात्मिक आनंद जगाती स्वरलहरी
महत्व

भारत के हृदयस्थल में स्थित इस आध्यात्मिक शहर के बारे में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने अपना बचपन यहीं बिताया था और यह राधा और कृष्ण के दिव्य और पावन प्रेम का प्रतीक भी है. यमुना के किनारे बसे इस शहर के कण-कण में बसे कृष्ण की बाल लीलाओं और गोपियों के साथ रहस्यमय रासलीलाओं की अनुगूंज खुद-ब-खुद लोगों को उनके रंग में सराबोर कर देती है. वृन्दावन प्राचीन मंदिरों से अटा पड़ा है, और हर जगह कृष्ण की चंचलता भरी शरारतों और मनोहारी चमत्कारों की बेशुमार कहानियां दर्ज हैं. रास लीला तो इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए है, जिसमें प्रेम और भक्ति का उत्सव मनाया जाता है. इस समृद्ध कला को यहां संगीत और नृत्य रूपों में प्रकट किया जाता है. जन्माष्टमी और होली जैसे त्योहारों के दौरान तो वृन्दावन में रंगों और भक्ति की धारा बह निकलती है. इस दौरान पूरा नजारा इतना ज्यादा मनमोहक होता है कि इसके साक्षी बनने के लिए दुनियाभर से कृष्ण भक्त और पर्यटक यहां पहुंचते हैं. इसकी संकरी गलियां फूलों की खुशबू से गमकती रहती हैं तो भजनों की धुनों भक्ति रस में सराबोर कर देती है. वृन्दावन की मथुरा की दूरी केवल 15 किलोमीटर है और दोनों ही शहरों के पौराणिक और आध्यामिक महत्व को देखते हुए इन्हें जुड़वां शहर तीर्थ कहा जाता है. बेहतर सड़कों और बुनियादी ढांचे के विकास के साथ यहां आने वालों के लिए सुविधाएं बढ़ाने पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है.

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