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महर्षि महेश योगी: भक्तों के झगड़े में फंसी गुरु की विरासत

महर्षि योगी की मौत के सिर्फ  चार साल बाद ही उनका 60,000 करोड़ रु. का साम्राज्‍य शिष्यों के दो गुटों के बीच कड़वी लड़ाई का केंद्र बना.

अपडेटेड 24 जून , 2012

भावातीत ध्यान गुरु महर्षि महेश योगी की भारत में करीब 60,000 करोड़ रु. की विशाल संपत्ति ने उनके वारिसों और अनुयायियों के बीच एक तीखी लड़ाई छेड़ दी है. उनकी संपत्ति में ज्‍यादातर जमीन है. कुछ लोगों पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि उन्होंने जमीन के अवैध सौदे किए हैं और संपत्ति हथियाने के लिए फर्जी ट्रस्ट बनाए हैं.

भारत को प्रख्यात बीटल्स से परिचित कराने वाले इस भागवत पुरुष की फरवरी, 2008 में मौत हो गई और वे अपने पीछे देशभर में 12,000 एकड़ से ज्‍यादा जमीन छोड़कर गए. इनमें दिल्ली, नोएडा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गोवा में कई प्रमुख जगहों पर जमीन शामिल है, जो फिलहाल योगी द्वारा 1959 में स्थापित आध्यात्मिक पुनरुद्धार आंदोलन (एसआरएम फाउंडेशन) के नियंत्रण में है.

योगी ने कई सोसाइटियों की स्थापना की थी जिनमें एसआरएम फाउंडेशन और उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित महर्षि ग्लोबल यूनिवर्सिटी सबसे ऊपर हैं. महर्षि शिक्षा संस्थान, महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठ, महर्षि गंधर्व वेद विद्यापीठ और महिला ध्यान विद्यापीठ जैसे चार अन्य शैक्षणिक संस्थान भी हैं जो देश के 16 राज्‍यों में 148 स्कूल चला रहे हैं.

नीदरलैंड के व्लोड्रोप में निधन के तुरंत बाद ही योगी के शिष्यों और सोसाइटियों के सदस्यों के बीच संपत्ति पर नियंत्रण को लेकर तनाव शुरू हो गया था. अपने को उनका असल उत्तराधिकारी बताने वाले दो गुटों ने एक-दूसरे पर जमीन से संपन्न सोसाइटियों पर नियंत्रण के लिए 'स्वांग रचने' का आरोप लगाया. एक तरफ योगी के भतीजे व एसआरएएम फाउंडेशन इंडिया के चेयरमैन 51 साल के आनंद प्रकाश श्रीवास्तव, एसआरएम फाउंडेशन के 43 साल के सचिव अजय प्रकाश श्रीवास्तव और शैक्षणिक ट्रस्टों के चेयरमैन 55 साल के ब्रह्मचारी गिरीश चंद्र वर्मा हैं.

वे 12 सदस्यीय एसआरएम फाउंडेशन के एक सदस्य 61 साल के जी. राम चंद्रमोहन के खिलाफ खड़े हैं. राम चंद्रमोहन के साथ छत्तीसगढ़ के रियल एस्टेट एजेंट और योगी के शिष्य 51 साल के विजय धावले और जालंधर स्थित एनजीओ इंटरनेशनल ह्‌यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख 55 साल के उपेंद्र कलसी हैं.

जनवरी में श्रीवास्तव बंधुओं ने दिल्ली हाइकोर्ट में एक याचिका दायर कर महर्षि समूह द्वारा स्थापित कई सोसाइटियों के स्वामित्व वाली जमीन की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि चंद्रमोहन और उनके सहयोगी फर्जी दस्तावेजों के सहारे सोसाइटी की जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करना चाहते हैं. दूसरी तरफ, चंद्रमोहन का दावा है कि श्रीवास्तव परिवार एसआरएम फाउंडेशन बोर्ड के सभी सदस्यों की मंजूरी लिए बिना गुरु की जमीन को खुद बेच रहा है.

आयकर विभाग में मार्च में की गई एक शिकायत में चंद्रमोहन ने अजय श्रीवास्तव पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने ''व्यक्तिगत फायदों'' के लिए एसआरएम फाउंडेशन के कार्यालय से बही-खाते और सभी जमीन के विवरण अपने कब्जे में ले लिए हैं. चंद्रमोहन ने इसके लिए कुछ कथित सबूत भी जमा किए हैं जिससे यह पता चलता है कि श्रीवास्तव बंधुओं ने एसआरएम फाउंडेशन बोर्ड को जानकारी दिए बिना जमीन के कई सौदे किए हैं. उन्होंने कहा कि यह काम गैर कानूनी है क्योंकि फाउंडेशन के पास जो जमीन है वह सिर्फ धार्मिक, शैक्षणिक और जनकल्याण उद्देश्यों के लिए है.

चंद्रमोहन ने अपने दावे की पुष्टि करते हुए मार्च में गृह मंत्रालय और इनकम टैक्स विभाग को सबूत दिए. इसमें बताया गया है कि एसआरएम फाउंडेशन की एक शाखा अजय भारत ट्रस्ट के अध्यक्ष अंबति कृ ष्णमूर्ति और अजय श्रीवास्तव ने हैदराबाद में एक फर्जी एसआरएम फाउंडेशन की स्थापना की है. इन दोनों ने 2010 में बैंक ऑफ बड़ौदा की हैदराबाद शाखा में एक खाता (संख्या-09540100014312) खोला ताकि छत्तीसगढ़ में फाउंडेशन की जमीन बेचने से मिले 22 लाख रु. के दो डिमांड ड्राफ्ट को भुनाया जा सके. यह रकम निकालने के बाद जुलाई, 2011 में खाता बंद कर दिया गया. जबकि अजय का कहना है कि खुद चंद्रमोहन ने जमीन हथियाने के लिए जाली दस्तावेज तैयार किए हैं.

अजय ने कहा, ''उन्होंने जाली दस्तावेजों के सहारे छत्तीसगढ़ में 175 एकड़ प्लॉट में से 30 एकड़ जमीन ले ली. हमने दिसंबर, 2011 में कोर्ट में याचिका दायर की और हमें स्टे मिल गया.'' इंडिया टुडे के पास उस एफ आइआर की कॉपी है जो अजय ने 16 दिसंबर को बिलासपुर थाने में दर्ज कराया था. बाद में इस कॉपी को कोर्ट में पेश किया गया था. इसमें चंद्रमोहन पर जमीन बिक्री के लिए फ र्जी दस्तावेज तैयार करने का आरोप लगाया गया है.

इसके जवाब में मार्च, 2012 में चंद्रमोहन ने श्रीवास्तव बंधुओं द्वारा किए गए अन्य 'अवैध' जमीन सौदों के बारे में अपने आधिकारिक साक्ष्य सामने रखने की पेशकश कीः

अजय द्वारा एसआरएम बोर्ड सदस्यों के वैध प्रस्ताव पारित किए बिना दिल्ली के गोल्फ लिंक्स स्थित एक आवासीय प्रॉपर्टी बेची गई. इसके बाद कुछ सदस्यों ने अजय के खिलाफ दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में एक आपराधिक शिकायत दर्ज की. शिकायत में आरोप लगाया गया कि 50 करोड़ रु. की यह बिक्री 2,000 रु. वर्ग फुट की बाजार कीमत से एक-तिहाई दर पर हुई.

अजय ने इस पर कहा, ''हमने एक समझैता किया था (जिसकी अदालत ने भी जांच की है) जिस पर 11 साल से पहले ही हस्ताक्षर हुए थे और इसमें मौजूदा रकम से कम रकम पर बिक्री की बात थी. लिहाजा, मैंने बेहतरीन सौदा किया.''

चंद्रमोहन का दावा है कि ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस वे से सटी 50 एकड़ जमीन अजय ने तीन महीने पहले अघोषित रकम में बेच दी जबकि इसके लिए एसआरएम की प्रबंधन समिति ने उन्हें अधिकृत नहीं किया है. लेकिन अजय का दावा है कि उनके पास जमीन की बिक्री के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी है.

चंद्रमोहन का कहना है कि अजय ने 2011 में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में चार एकड़ जमीन बेची है. जब यह साबित हो गया कि एसआरएम फाउंडेशन के बोर्ड सदस्यों से इस बारे में राय नहीं ली गई है तो यह बिक्री निरस्त कर दी गई. अजय का कहना है कि यह आरोप झूठा है. उनका दावा है कि चंद्रमोहन और उनके आदमियों ने एसआरएम बोर्ड की मंजूरी के बिना बिलासपुर जिले की तख्तपुर तहसील में 56 एकड़ जमीन 25 करोड़ रु. से ज्‍यादा रकम में बेच दी है. अजय ने कहा, ''इस बिक्री के सौदे के खिलाफ तखतपुर अदालत में एक मामला लंबित है.''

महाराजगंज, उत्तर प्रदेश के सांसद हर्षवर्धन सिंह की शिकायत के बाद अप्रैल महीने में इनकम टैक्स विभाग और गृह मंत्रालय ने इस तरह से जमीन के 'अवैध' बिक्री के आरोपों और एसआरएम फाउंडेशन के कामकाज की जांच शुरू की. महर्षि योगी के भक्त हर्षवर्धन चाहते हैं कि सरकार तमाम महर्षि सोसाइटियों की ऐसी सभी संपत्ति और उनको मिलने वाले चंदे का नियंत्रण अपने हाथ में ले, जिनमें 'जमीन की अवैध बिक्री' के मामले की जांच लंबित है.

सांसद का दावा है कि उनके पास इसके सबूत हैं कि महर्षि विद्या मंदिरों की हालत खराब है; सिर्फ  20 फीसदी महर्षि विद्यालयों में छात्र हैं और उनमें बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. हर्षवर्धन ने कहा, ''इस पर ध्यान देना होगा.'' उन्होंने इंडिया टुडे से कहा, ''उनकी मौत के सिर्फ  चार साल बाद इस समूह में पूरी तरह से गड़बड़झाला हो गया है.''

हर्षवर्धन को भी इनकम टैक्स विभाग के वे विवरण मिले हैं जिनमें पिछले दो साल में फाउंडेशन के वित्तीय लेन-देन की जानकारी है. उनका दावा है कि इससे पता चलता है कि सोसाइटी को चंदे से हासिल रकम का 90 फीसदी हिस्सा प्रॉपर्टी खरीदने में इस्तेमाल किया गया है. सांसद ने बताया कि नोएडा के सेक्टर 39 में स्थित महर्षि नगर कॉलोनी पूरी तरह से बेकार पड़ी है.

इस कॉलोनी का निर्माण सत्तर के दशक के अंत में योगी के अनुयायियों द्वारा किया गया था. हर्षवर्धन ने कहा, ''जो लोग वहां रहते हैं उन्हें किसी तरह की बुनियादी सुविधाएं हासिल नहीं हैं. वहां काम कर रहे लोगों ने हमें बताया कि उन्हें वर्षों से बहुत कम वेतन दिया जा रहा है.''

इस पर अजय ने कहा कि कोई धार्मिक ट्रस्ट अपने कर्मचारियों को ''कॉर्पोरेट जैसा वेतन'' नहीं दे सकता. उन्होंने कहा कि समूह का सालाना टर्नओवर सिर्फ  25 से 30 करोड़ रु. का होता है. उन्होंने बताया, ''हमारे पास काफी जमीन है, लेकिन नकदी नहीं है.''

दिल्ली से सटे नोएडा में महर्षि नगर कॉलोनी  900 एकड़ से ज्‍यादा जगह में पसरी हुई है. फिलहाल इसमें चार इमारतें बनी हैं और प्रत्येक में 800 से ज्‍यादा कमरे हैं. ज्‍यादातर कमरे बेकार पड़े हैं.

कभी महर्षि द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे हैलीपैड पर अब गाय-भैसों का कब्जा दिखता है. एक स्थानीय रियल एस्टेट एजेंट ने अनुमान लगाया कि इस कॉलोनी की पूरी जमीन करीब 15,000 करोड़ रु. की होगी. कॉलोनी में रहने वाले एक व्यक्ति अशोक ने बताया, ''अब यहां से वैश्विक विश्वविद्यालय का संचालन नहीं किया जाता.

भावातीत ध्यान योग कक्षाएं भी दुर्लभ ही हैं क्योंकि उनमें बहुत कम लोग शामिल होते हैं.'' उन्होंने बताया कि आश्रम के संचालन के लिए योगी के 500 भक्त इस कॉलोनी में रहते हैं. इस पर अजय का तर्क है कि यदि किसी इमारत का कोई हिस्सा जीर्ण-शीर्ण हो गया है तो वे इसमें कुछ ज्‍यादा नहीं कर सकते क्योंकि ''ऐसे परिसरों के रखरखाव के लिए भारी चंदे की जरूरत होती है.''

बड़े चंदों का अकाल हो गया है. यही नहीं, ऐसे शिष्यों की संख्या भी नगण्य हो गई है जो कभी 'खिलखिलाते गुरु' को सुनने के लिए परिसर में भरे रहते थे. मौत के सिर्फ  चार साल के बाद भारत में महर्षि की विरासत की धद्गिजयां उड़ रही हैं.

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