(1931-2011)
फणीश्वर नाथ रेणु, दिनकर, नागार्जुन और नेपाली से पहचाने जाने वाले बिहार की विद्वत्परंपरा की कड़ी के महत्वपूर्ण स्तंभ कुमार विमल 26 नवंबर को नहीं रहे. अपने महाप्रयाण के पूर्व तक वे लेखन में सक्रिय रहे. उपचार के लिए अस्पताल जाने से कुछ ही दिनों पूर्व उनकी दो नई पुस्तकें साहित्येतर और स्त्री विमर्शः कामाध्यात्म और साहित्य छपकर आई थीं. पटना के लोहियानगर का उनका आवास, जिसमें वे पुस्तकों, जर्नलों के बीच रमे-जमे रहते थे, उनके न रहने पर सूना-सा हो गया है.
सौंदर्यशास्त्र के अध्येता के रूप में न केवल उनका काम विरल कोटि का है बल्कि प्रो. सुरेंद्र बारलिंगे और हिंदी में रमेश कुंतल मेघ के अलावा इस क्षेत्र में उनका कोई हमकदम नहीं है. उनकी ख्याति इस क्षेत्र में इतनी जानी-पहचानी थी कि जब सौंदर्यशास्त्र के पारखी नित्यानंद कानूनगो बिहार के राज्यपाल बनकर आए तो वे लगभग नियमित तौर पर कुमार विमल के सान्निध्य और उनसे साहित्य चर्चा के लिए गाड़ी से उन्हें मनुहारपूर्वक राजभवन बुलवाते थे.
डॉ. विमल ने यों तो लेखन की शुरुआत कविता से ही की थी किंतु उनके भीतर का उमड़ता वैचारिक उद्वेग उन्हें आलोचना की कठिन डगर की ओर खींच ले गया. अध्यापन के बाद तमाम प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी उन्होंने अपनी अध्यवसायिता नहीं छोड़ी और निरंतर लेखन से जुड़े रहे. सौंदर्यशास्त्र के तत्व और छायावादी काव्य का सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन उनकी आलोचना की पहली दो किताबें थीं. इनसे उन्होंने हिंदी के बौद्धिक वर्ग में एक सौंदर्यशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठा पाई. इसके बाद मूल्य और मीमांसा, कला विवेचन, आलोचना और अनुशीलन, चिंतन मनन और विवेचन, महादेवी का काव्य सौष्ठव आदि लगभग चालीस कृतियां छपीं. डॉ. नगेंद्र, अज्ञेय, महादेवी और पंत से उनकी घनिष्ठता जग जाहिर थी.
साहित्यिक हलके में प्रो. विमल को हिंदी का विश्वकोश माना जाता था. उनके दिलोदिमाग में साहित्य की देशव्यापी गतिविधियां हर वक्त तरोताजा रहती थीं. एक साक्षात्कार में यह पूछने पर कि उन्हें किसी एक पुस्तक से जानना हो तो कोई क्या पढ़े, उन्होंने कहा था, ''मैं बुद्ध की तरह त्रिपिटक तो नहीं लिख सका किंतु त्रिपुटक तो लिख ही सकता हूं.'' लिहाजा
वे तीन खंडों में अपने लेखन का सार संग्रह तैयार करने में लगे थे. वे सौंदर्यशास्त्र का गतिविज्ञान जैसी किताब लिखने की तैयारी में भी थे, जिसमें अश्वेत सौंदर्यशास्त्र, प्रवासी साहित्य, स्त्रीवादी और दलित सौंदर्यशास्त्र जैसे विश्व वैचारिकी को आंदोलित करने वाले मुद्दे शामिल होते. यह काम अधूरा
रह गया.