टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश से अब यह सम्मान छिन चुका है. बाघों की गणना के गत मार्च में जारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में जहां बाघों की संख्या बढ़ी है वहीं प्रदेश में, खासतौर से, आदर्श माने जाने वाले कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में इनकी संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई है. जहां प्रदेश बाघों की संख्या घटने के दावे को मानने को तैयार नहीं है, वहीं हाल ही में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के दौरे पर आए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने स्पष्ट कहा है कि राज्य सरकार को बाघों के गायब होने की सीबीआइ जांच करवानी चाहिए.
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने 28 मार्च को देशभर में बाघों की गणना के वर्ष 2010 के आंकड़े जारी किए थे, जिनके मुताबिक देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है जबकि 2006 में यह आंकड़ा 1,411 था. हालांकि प्रदेश के छह टाइगर रिजर्वों में चार साल पहले बाघों की संख्या 300 थी जो घटकर 257 रह गई है. यानी इन चार साल में प्रदेश में 43 बाघ कम हो गए.
प्रदेश का वन विभाग इन आंकड़ों पर सवालिया निशान लगा रहा है. भारतीय वन्य प्राणी संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के प्रदेश में बाघों की संख्या घटने के दावे के बाद वन विभाग अपने स्तर पर 25 अप्रैल से बाघों की फिर से गिनती शुरू कर चुका है.
राष्ट्रव्यापी गणना की मानें तो बाघ सर्वाधिक तेजी से और सबसे ज्यादा संख्या में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में घटे हैं. चार साल पहले यहां 89 बाघ थे, जो अब 64 रह गए हैं. पन्ना टाइगर रिजर्व में कभी 24 बाघ हुआ करते थे लेकिन आज उनमें से एक भी यहां नहीं है और यही वजह है कि बाघों की उपस्थिति को बनाए रखने के लिए कुछ हफ्तों पहले ही एक बाघिन और उसके दो शावकों को यहां लाया गया है.
राज्य के अन्य चार टाइगर रिजर्वों बांधवगढ़, पेंच, सतपुड़ा और संजय राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की संख्या में खास परिवर्तन नहीं हुआ है. इस सब के बीच एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है वह यह कि गैरसंरक्षित जंगलों में भी बाघ देखे गए हैं. मसलन, इंदौर देवास इलाके में सात बाघों की मौजूदगी के निशान मिले हैं, रायसेन में 14 बाघों के तो श्योपुर के कूनोपालपुर में तीन बाघों की मौजूदगी के संकेत मिले हैं.
शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में भी बाघ के आने की पुष्टि हुई है. प्रदेश के प्रमुख वन्य संरक्षक (पीसीसीएफ) डॉ. एच.एस. पाबला कहते हैं, ''कान्हा और उससे लगे छह वन रिजर्व क्षेत्रों में वन विभाग के कर्मचारियों ने जो नमूने एकत्र कर डब्ल्यूआइआइ को दिए थे, लगता है कि उनका विश्लेषण सही नहीं हो पाया.''
पाबला के मुताबिक डब्ल्यूआइआइ ने प्रदेश के 9,700 वर्ग किमी क्षेत्र का विश्लेषण किया है, जबकि प्रदेश में बाघों का विचरण करीब 12,700 वर्ग किमी में है, ऐसे में 3,000 वर्ग किमी का विश्लेषण रह गया है, जिनमें दमोह, सागर, नौरादेवी, खंडवा, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शामिल हैं.
लेकिन डब्ल्यूआइआइ के प्राणी विशेषज्ञ डॉ. वाइ.वी. झला कहते हैं, ''टाइगर रिजर्व में बाघों से जुड़े संपूर्ण डाटा को संबंधित राज्य का वन विभाग ही इकठ्ठा करता है, हमारे विशेषज्ञ तो उनका सिर्फ विश्लेषण करते है और उसी आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. हो सकता है कि कुछेक स्थानों पर नमूने लेते समय बाघ की आवाजाही नहीं मिली हो.''
पाबला कहते हैं कि चार साल पहले कान्हा में 424 बीट्स थीं, जो अब बढ़ाकर 495 कर दी गई है ऐसे में बाघ कैसे कम हो सकते हैं. अपने विभाग की आंतरिक निगरानी प्रणाली के आधार पर वे दावा करते हैं कि पन्ना में कम से कम 89 बाघ तो होने ही चाहिए, संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन वन विभाग के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पन्ना से बाघों के घटने का कारण सिर्फ और सिर्फ अवैध शिकार है.
हालांकि वन विभाग कान्हा से 25 बाघों के गायब होने के पीछे क्षेत्राधिकार के लिए होने वाली लड़ाई को कारण बताता है. जयराम रमेश के दौरे के एक दिन बाद ही पन्ना टाइगर रिजर्व के गंगऊ व बलगार क्षेत्र से नीलगाय, तेंदुआ, लकड़बग्घा, बारहसिंगा की खाल और कंकाल मिले और तेंदुए की खाल में गोली का निशान हैं, लेकिन टाइगर रिजर्व के अधिकारी अवैध शिकार की बात मानने को तैयार नहीं है. हाल ही में यहां से लल्लू रैकवार नाम का शिकारी भी गिरफ्त में आया है, जिसके पास से जानवरों के शिकार के काम आने वाले देसी बम मिले हैं.
बीते चार साल में प्रदेश के छह टाइगर रिजर्व में बाघों के संरक्षण पर 139 करोड़ रु. खर्च हुए हैं. पन्ना को छोड़ बाकी के पांच उद्यानों का बफर जोन बनाकर क्षेत्रफल भी बढ़ाया गया है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है. पन्ना में बफर जोन की अधिसूचना जारी नहीं किए जाने का कारण स्थानीय लोगों द्वारा इसका विरोध करना बताया जा रहा है लेकिन भोपाल के आरटीआइ कार्यकर्ता अजय दुबे, जिनके प्रयासों के चलते ही पांच टाइगर रिजर्वों को बफर जोन घोषित करने के लिए सरकार को मजबूर होना पड़ा, इसके पीछे कुछ और ही कारण मानते हैं.वे कहते हैं, ''पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के आसपास उत्खनन की गतिविधियां जोरों पर हैं, जिनसे जुड़े रसूखदार राजनीतिक लोग नहीं चाहते कि यहां बफर जोन बने.''
टाइगर स्टेट का दर्जा छिन जाने से देशभर में प्रदेश की जो किरकिरी हुई है उससे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खासे नाखुश हैं. लेकिन जब तक फिर से हो रही गणना के आंकड़े न आ जाएं, तब तक हो भी क्या सकता है.
बढ़ गए बाघ:
- 39 टाइगर रिजर्वों में हुई गणना कहती है कि देश में बाघों की संख्या अनुमानतः 1,706 है, जो 2006 में हुई गणना 1,411 से 295 ज्यादा है.
- मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में घटे बाघ. जबकि 280 बाघ संख्या के साथ कर्नाटक ने मध्य प्रदेश से टाइगर स्टेट का दर्जा छीना.
- चार साल पहले मध्य प्रदेश में 300 बाघ थे जो घटकर 257 रह गए. सबसे ज्यादा 25 बाघ घटे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में.