हाथियों के संरक्षण के लिए पांच साल पहले सहारनपुर एवं बिजनौर के वन क्षेत्र को मिलाकर बनाया गया उत्तर प्रदेश का अकेला 'शिवालिक ऐलीफैंट रिजर्व' जरूरी सुविधाओं के अभाव में बेमतलब साबित हो रहा है. पिछले पांच साल में यहां के हाथियों की संख्या जस की तस बनी हुई है. इसने वन्यजीव प्रेमियों की चिंता को बढ़ा दिया है.
साथ ही वन अधिकारी भी इस स्थिति में खुद को बेबस एवं लाचार महसूस कर रहे हैं. शिवालिक वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) राम राज गौतम एवं उप-प्रभागीय वन अधिकारी (एसडीओ) सोमधर पांडे ने इंडिया टुडे से कहा कि हाथियों के संरक्षण के लिए मोटे तौर पर पांच बातों का होना बहुत जरूरी है-चारे की व्यवस्था, पीने के पानी की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता, इंसान और हाथियों के बीच संघर्ष न होना, घूमने-फिरने का सुरक्षित एवं लंबा रास्ता और अंत में उनके प्रजनन के लिए अनुकूल माहौल.
दुर्भाग्य से शिवालिक वन प्रभाग में इन सभी का घोर अभाव है. गनीमत यह है कि प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वहां हाथी न सिर्फ टिके हैं, बल्कि उनकी संख्या 30 से 32 के बीच बनी हुई है.
गौतम कहते हैं कि यदि वहां तमाम सुविधाएं होतीं तो हाथियों की तादाद में जरूर वृद्घि हो सकती थी. अभी 10 नर और 12 मादा हाथी हैं. दो हाथी अल्प वयस्क हैं. रिजर्व में हाथियों की यह संख्या 19 मई, 2010 की गणना में सामने आई थी.
पांडे के मुताबिक हाथियों में सहवास ऋतु (मेटिंग सीजन) जून, जुलाई एवं अगस्त माह की होती है. इस रिजर्व के शाकुंभरी, मोटंड और बड़कला वन क्षेत्र में सेना युद्ध अभ्यास के लिए अप्रैल से जून तीन माह को छोड़कर बाकी नौ माह के दौरान फायरिंग करती है.
इसमें हाथियों के सहवास के दो महीने जुलाई -अगस्त भी शामिल हैं. इससे व्यवधान होता है और मादा गर्भवती नहीं हो पाती. हाथी भी मेटिंग सीजन में सहवास से वंचित होने के कारण क्रोधित हो जाते हैं. ऐसे में वे कई बार सड़कों पर निकल जाते हैं. यह मनुष्यों के लिए खतरनाक हो सकता है. कई बार मदमस्त हाथियों का झुंड किसानों की फसलें तहस-नहस कर डालता है.
शिवालिक वन प्रभाग, जिसका 320 वर्ग किमी क्षेत्र ऐलीफैंट रिजर्व के रूप में आरक्षित है, हाथियों के लिए छोटा साबित हो रहा है. पांडे बताते हैं कि एक वयस्क हाथी को एक दिन में कम से कम दो क्विंटल आहार चाहिए होता है, जिसमें से वह 30 फीसदी आहार चुगान (चरना) से और 70 फीसदी ब्राउजिंग (वृह्नों की पत्तियों, टहनियों एवं छाल को तोड़कर चबाना) से हासिल करता है.
हाथी झुंड में रहते हैं. भोजन और पानी की तलाश में शिवालिक ऐलीफेंट रिजर्व के हाथियों के झुंड एक हजार किमी दूर नेपाल सीमा तक निकल जाते हैं. एक हाथी को प्रतिदिन 200 लीटर पानी चाहिए. वे पानी की तलाश में हरियाणा के कलेसर नेशनल पार्क एवं हिमाचल तक चले जाते हैं. दरअसल हाथियों के लिए पानी एवं चारे का प्रबंध अत्यंत आवश्यक है. पांडे के मुताबिक युद्धाभ्यास के दौरान हाथियों का आवागमन बुरी तरह प्रभावित होता है.
रिजर्व में गर्मियों में पानी के स्त्रोत सूख जाते हैं. सरकार ने रिजर्व में 9 से 10 पानी के कूप बनाए हुए है पर सभी को एक साथ रिचार्ज करने की सुविधा नहीं है. शिवालिक वन प्रभाग में जलाशय नहीं है. एक जलाशय तैयार करने पर 20 लाख रु. तक व्यय होता है.
गौतम के मुताबिक, सरकार से इस मद में कोई धनराशि नहीं दी जाती है. सहारनपुर के पर्यावरणविद् डॉ. एस.के. उपाध्याय एवं वन्य जीव प्रेमी सामाजिक कार्यकर्ता संजय गर्ग का कहना है कि भारत सरकार को चाहिए कि वह टाइगर एवं हाथियों में भेदभाव न करे और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में संशोधन करके हाथियों के संरक्षण के लिए अलग प्रभावी अधिकार प्रदान करे.