भट्टा परसौल से चार दिन की पदयात्रा के बाद अलीगढ़ में आयोजित किसान महापंचायत को लेकर भले ही सभी पार्टियां कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा करें, लेकिन कांग्रेस के युवराज ने जिस तरह किसानों के बीच जगह बनाई है, उससे सभी पार्टियों की नींद उड़ गई है.
बसपा, सपा, भाजपा या अन्य दल सभी अपना जनाधार दरकने की आशंका में चिंतित हो उठे. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं, ''राहुल गांधी की पदयात्रा से किसानों में उत्साह है.''
जो दल राहुल की आलोचना करते नहीं थक रहे थे, वे तुरंत अपने किले मजबूत करने में जुट गए. अगले ही दिन मायावती ने बसपा के पदाधिकारियों, मंत्रियों और कोआर्डिनेटरों की बैठक में कहा, ''पार्टी कार्यकर्ता राहुल की पदयात्रा से परेशान न हों, लेकिन घर पर भी न बैठे रहें.
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के हमलों का बखूबी मुकाबला करें.'' राहुल के 'किसान कार्ड' की काट के लिए मायावती ने हर माह की 22 तारीख को सभी जिलों में 'किसान पंचायत' करने की घोषणा की. पार्टी जानती है कि जिस तरह राहुल किसानों, दलितों में जाकर सीधा संवाद कर रहे हैं उससे कांग्रेस बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगा सकती है. पार्टी को अगले विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान हो सकता है.
राहुल को लेकर सपा भी कम आक्रामक नहीं है. चुनावी साल में जिस तरह उनकी पदयात्रा को प्रचार मिला उसने सपा की मेहनत पर पानी फेर दिया है.
पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि यदि प्रदेश में कांग्रेस मजबूत हुई तो यह मुस्लिम वोटों में सेंध लगा सकती है. ऐसा हुआ तो नुकसान सपा को उठाना होगा. अब पार्टी ने पूरा ध्यान संगठन को मजबूत करने पर लगा दिया है. इसका असर नए सिरे से गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्पष्ट दिखा. 60 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अकेले उत्तर प्रदेश से 45 नेता हैं.
मुस्लिमों को रिझाने के लिए सपा ने मोहम्मद आजम खान का सहारा लिया है. पार्टी की चिंता कुर्मी वोट बैंक को लेकर भी है. बेनी प्रसाद वर्मा के कांग्रेस में जाने के बाद सपा ने अपनी केंद्रीय टीम में कांग्रेस से आए रामपूजन पटेल को सचिव बनाया है.
राहुल की पदयात्रा ने भाजपा नेताओं के माथे पर भी चिंता की लकीरें खींच दी हैं. 1991 के विधानसभा चुनाव में अपने बूते प्रदेश में सरकार बना चुकी भाजपा की सीटें हर विधानसभा चुनाव में कम होती जा रही हैं. पदयात्रा के बाद राहुल की साफ छवि ने शहरी मतदाताओं के बीच जगह बनाई है. ऐसे में प्रदेश में संगठन को मजबूत करने और जनाधार बढ़ाने के लिए वरिष्ठ भाजपा नेताओं को अलग-अलग मोर्चों पर लगा दिया गया है.
विनय कटियार के कंधों पर जनाधार विस्तार का जिम्मा होगा तो चुनाव के मद्देनजर निकलने वाली यात्राओं की जिम्मेदारी रमापति राम त्रिपाठी संभालेंगे. कलराज मिश्र विभिन्न दलों से तालमेल के बारे में बात करेंगे तो लालजी टंडन कार्यक्रम क्रियान्वयन की बागडोर संभालेंगे. इसके साथ ही उमा भारती के नेतृत्व में भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर लखनऊ में एक बड़ा प्रदर्शन करने की योजना भी पार्टी के रणनीतिकार तैयार कर रहे हैं.
राहुल ने रालोद की मेहनत पर भी पानी फेर दिया है. 'किसानों' की इस पार्टी के नेताओं को मलाल है कि जिस मुद्दे को सबसे पहले उन्होंने उठाया उसे अब राहुल ने हथिया लिया है. वैसे, पार्टी अध्यक्ष अजित सिंह मानते हैं, ''राहुल की पदयात्रा से कांग्रेस को पश्चिमी जिलों में किसी प्रकार का लाभ नहीं मिलने वाला.'' पर वे कांग्रेस से गठबंधन की संभावना को नकारते भी नहीं हैं.
बहरहाल राहुल फैक्टर को बेअसर करने के लिए हर दल अपने कीलकांटे दुरुस्त करने में जुटा है. वे कांग्रेस की मौजूदगी को नजरअंदाज जो नहीं कर सकते.