महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रहने वाले यज़ीद बशमाख ने 2010 में अच्छे अंकों के साथ नौवीं कक्षा की परीक्षा पास की ही थी कि तभी उसके रेडियो मैकेनिक पिता की नौकरी चली गई. उसी दिन से 17 साल के बशमाख के दिमाग में एक ही बात गूंजने लगी कि वह दिल लगाकर पढ़ेगा और अपने परिवार का सिर ऊंचा करेगा. वह हर रोज घंटों मेहनत करने लगा. वह विज्ञान जैसे अपने पसंदीदा विषय की जटिलताओं को समझने में पूरी-पूरी रात गुजार देता. इसका नतीजा 2010 की हायर सेकंडरी परीक्षा में देखने को मिला. बशमाख ने इकरा उर्दू हाइ स्कूल में पढ़ाई करते हुए 93.4 फीसदी नंबर हासिल किए.
25 जनवरी 2012: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
लेकिन यह अच्छा नतीजा भी बंद गली की तरह था. बशमाख जानता था कि उसे कहां जाना है. लेकिन वहां कैसे पहुंचा जाए, यह एक बड़ा सवाल था. बेशक परीक्षा परिणाम ने उसे बेहद संतोष दिया. मगर उसे इस बात का इल्म नहीं था कि वह आइआइटी के अपने ख्वाब को पूरा करने के लिए कहां जाए. बशमाख का बड़ा भाई छह सदस्यीय परिवार में अकेला कमाने वाला था. मोटर ऑपरेटर के तौर पर काम करने वाला उसका भाई मुश्किल से इतना कमा पाता जिससे परिवार का गुजारा हो सके. ऐसे में ऊंची तालीम का ख्वाब देखना वाकई मुश्किल था.
बशमाख ने रहमानी फाउंडेशन में स्कॉलरशिप के लिए आवेदन कर दिया. फाउंडेशन प्रतिभावान मुस्लिम छात्रों की मदद करता है. उसने लिखित परीक्षा पास कर ली. बशमाख बिहार के पुलिस महानिदेशक अभयानंद की अध्यक्षता वाले इंटरव्यू पैनल के सामने पहुंचा.
11 जनवरी 2012: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
1977 बैच के आइपीएस अधिकारी और कुशल अध्यापक अभयानंद ने प्रतिभावान गरीब मुस्लिम छात्रों को स्तरीय शिक्षा मुहैया कराने के लिए यह पहल की है. अभयानंद बशमाख की विज्ञान की समझ से काफी प्रभावित हुए. उसने आवेदन में औरंगाबाद कोचिंग सेंटर में स्कॉलरशिप मांगी थी. उसकी जगह उसे पटना लाया गया, जहां आइआइटी-जेईई प्रवेश परीक्षा के लिए 47 दूसरे छात्र भी तैयारी कर रहे थे.
उसी दिन से बशमाख अपनी पढ़ाई में जुट गया. दिसंबर 2011 में, उसने पटना में आयोजित रीजनल मैथ ओलंपियाड में चौथा स्थान हासिल किया. इसमें 900 छात्रों ने हिस्सा लिया था. बशमाख के अलावा, रहमानी-30 के पांच दूसरे छात्रों ने भी शीर्ष 21 में जगह बनाई थी. बशमाख रहमानी फाउंडेशन के उन 18 छात्रों के समूह में है जो 2012 में आइआइटी की प्रवेश परीक्षा देने जा रहे हैं जबकि 30 अन्य छात्र 2013 में इस परीक्षा में बैठेंगे.
04 जनवरी 2012: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
कॉमन एडमिशन टेस्ट के माध्यम से रहमानी फाउंडेशन इन छात्रों का चयन करता है. इन छात्रों को आइआइटी-जेईई के दो साल के फाउंडेशन कोर्स में रखा जाता है. ये सभी छात्र 10वीं कक्षा के बाद यहां आते हैं. रहमानी फाउंडेशन में पढ़ाई करने के दौरान इन लड़कों के दाखिले पटना के स्थानीय स्कूलों में करा दिए जाते हैं, जहां से वे 12वीं कक्षा की परीक्षा दे सकते हैं. रहमानी-30 को बिहार के प्रसिद्ध सुपर-30 की तर्ज पर बनाया गया है.
मोहम्मद वली रहमानी ने रहमानी फाउंडेशन की स्थापना की है जिसमें छात्रों को रहने और कोचिंग की सुविधा मुफ्त में दी जाती है. बिहार से आइआइटी प्रवेश परीक्षा में सफलता की नई कहानी लिखने वाले सुपर-30 को अभयानंद ने गणितज्ञ आनंद के साथ मिलकर 2002 में स्थापित किया था.
28 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
अभयानंद 2008 में सुपर-30 से अलग हो गए थे और उन्होंने फिजिक्स पढ़ाने के अलावा आइआइटी प्रवेश परीक्षा के लिए इन मुस्लिम छात्रों को मुफ्त पढ़ाने का जिम्मा उठाया. बिहार के पुलिस महानिदेशक के तौर पर अभयानंद की अत्यधिक व्यस्तताएं हैं फिर भी वे छात्रों को पढ़ाने में लुत्फ लेते हैं. कक्षा में वे सवाल पूछते हैं, छात्रों को उससे जूझता देखते हैं, प्रेम से अपनी बात उन तक पहुंचाते हैं, फिर कई विकल्पों के साथ उन्हें प्रेरित करते हैं. जब कोई सही जवाब दे देता है तो बहुत संतुष्ट नजर आते हैं. उसके बाद, वे उन्हें सिखाते हैं कि क्यों और कहां से सवाल को शुरू करना चाहिए.
वे कहते हैं, 'मेरे लिए अध्यापक एक ऐसा इंसान है जो कभी सही जवाब नहीं देता बल्कि हमेशा सही सवाल पूछता है. मेरा काम अपने छात्रों और उनके मस्तिष्क को सही जवाब देने के लिए प्रेरित करना है.'
अगर पिछले तीन वर्षों की बात करें तो 2009 से अब तक रहमानी-30 के 19 छात्र आइआइटी-जेईई के लिए क्वालीफाइ कर चुके हैं जबकि कई अन्य क्षेत्रीय और दूसरे तकनीकी संस्थानों में दाखिला पा चुके हैं. ये छात्र पटना की अनीसाबाद कॉलोनी में स्थित मिल्लत एजुकेशन सोसायटी की इमारत में रहते हैं. वे यहां रह और पढ़ सकते हैं. उनका रहन-सहन पारंपरिक मुस्लिम संस्कारों पर आधारित है. पूरा जोर स्तरीय शिक्षा उपलब्ध कराने पर रहता है.
21 दिसम्बर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
यहां पढ़ रहे अधिकतर छात्र बिहार के दूर-दराज के इलाकों से आए हैं. बशमाख और फैसल शफी (उत्तराखंड) दूसरे राज्यों से यहां आए हैं. हालांकि इन सभी को देश भर में स्थापित सेंटरों में हुई प्रवेश परीक्षा के माध्यम से चुना गया है. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले के पुलिस कांस्टेबल के पुत्र फैसल ने 2010 में अपनी 10वीं कक्षा की परीक्षा में 84.6 फीसदी अंक हासिल किए थे. उज्द्गवल भविष्य के सपने आंखों में संजोए इन छात्रों के पीछे गरीबी, संघर्ष और अनवरत मेहनत की दास्तान है.
इनके कोर्स खत्म हो चुके हैं और दिन के समय सिर्फ टेस्ट होते हैं जबकि अप्रैल में फाइनल टेस्ट होना है. अभयानंद और रहमानी फाउंडेशन के अन्य लोगों को आइआइटी-जेईई में अच्छे नतीजों का पूरा यकीन है. पहले चरण में, रहमानी फाउंडेशन स्क्रीनिंग टेस्ट के जरिए 10,000 आवेदन मंगाता है और 500 छात्रों का चयन करता है. चुने गए छात्रों को एक बार फिर कसौटी पर आंका जाता है. उसके बाद इंटरव्यू होता है जिसमें दो साल के फाउंडेशन कोर्स के लिए 30 छात्रों को चुना जाता है.
संयोग से, प्रतिष्ठित आइआइटी प्रवेश परीक्षा समय के साथ और मुश्किल होती जा रही है. जेईई-2011 की परीक्षा में शामिल हुए छात्रों की संख्या दो साल पहले छात्रों की संख्या से 26 फीसदी ज्यादा थी. जेईई-2011 में 4.85 लाख छात्रों ने देश की विभिन्न आइआइटी की 9,600 सीटों के लिए परीक्षा दी थी. परीक्षा कितनी मुश्किल है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि इसमें शामिल होने वाले छात्रों के सिर्फ 2 फीसदी ही इसमें पास हो पाए.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
ऐसे समय जब सामाजिक और आर्थिक विकास की रैंकिंग में मुस्लिम समाज बड़े स्तर पर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाया है यह एक बेहतरीन और कारगर प्रयास है. रहमानी-30 के छात्रों को किसी तरह की सीमा के बारे में नहीं पता. वे दूसरे तरह के भारत की आकांक्षाओं के प्रतीक हैं, जो बड़े मौकों के लिए हर तरह के कष्ट सहने और प्रयास करने को तैयार है. शायद वंचित समुदाय के लोगों में इस तरह की जिजीविषा अन्य कहीं देखने को नहीं मिलती, जितनी बिहार में. ऐसा लाजिमी है क्योंकि यह ऐसा राज्य है जहां संपन्न और वंचितों में बड़ा फर्क है.