चार साल पहले जिस आध्यात्मिक गुरु पायलट बाबा का स्टिंग ऑपरेशन करके उन्हें काले धन को सफेद करते हुए दिखाया गया था, खुद को महायोगी बताने वाले उसी सोमनाथ गिरी उर्फ पायलट बाबा को 13 सितंबर को एसडीएम भटवाड़ी, चंद्र सिंह धर्मशक्तू की निचली अदालत ने आदेश दिया है कि वे एक महीने के भीतर सरकारी जमीन से अपने आश्रम का अवैध कब्जा हटा लें.
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुमाल्टा गांव के निकट गंगा-भगीरथी के तट पर बने अपने आश्रम के लिए बाबा ने न सिर्फ 16 नाली (0.324 हेक्टेयर) से अधिक सरकारी जमीन पर कब्जा जमाया है, बल्कि सीमा स्थित संवेदनशील क्षेत्र में देश की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए इस पर निजी हैलीपैड भी बना डाला है. यही नहीं, आश्रम में आने वाले विदेशियों का ब्यौरा भी बाबा स्थानीय पुलिस को देना जरूरी नहीं समझ्ते, जबकि फॉरनर्स रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत विदेशियों की जानकारी फॉर्म-सी के जरिए 24 घंटे के अंदर स्थानीय पुलिस को देनी होती है.
आश्रम ने जिस जमीन पर कब्जा कर रखा है, वहां से कुमाल्टा गांव के किसानों के खेत के लिए एक नहर गुजरती थी, जिसे पाटकर बाबा ने देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर दी हैं. इससे गांववालों के सिंचित खेत सूख गए हैं. बाबा ने 4 इंच मोटी पाइपलाइन भी अवैध ढंग से अपने आश्रम से जोड़ रखी है. पायलट बाबा ने गंगा भगीरथी के प्रवाह क्षेत्र में कब्जा करने के साथ-साथ गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के खासे भूभाग पर भी कब्जा जमा रखा है.
बाबा के आश्रम में अवैध कब्जों और संदिग्ध गतिविधियों का यह खेल 2009 में उजागर हुआ, जब उत्तराखंड स्वाभिमान मंच के अध्यक्ष विनोद नौटियाल ने उत्तरकाशी के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बाबा के अवैध रूप से सरकारी जमीन पर कब्जा जमाने, हाइवे पर अतिक्रमण करने, कुमाल्टा के किसानों के खेत में जा रही नहर को दबाकर अवैध मूर्तियां स्थापित करने, सीमांत क्षेत्र में बिना सरकारी अनुमति के हैलीपैड का निर्माण करने के साथ ही कुमाऊं वॉटर रूल्स का खुला उल्लंघन करते हुए बिना जल और वन विभाग की एनओसी के सीधे नदी से आश्रम तक पाइपलाइन ले जाने के मामलों की जांच की मांग की थी. भटवाड़ी के नायब तहसीलदार को इसकी जांच का काम सौंपा गया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में सारे आरोपों को सही पाया था.
गत 7 सितंबर को आश्रम में दो आप्रवासी भारतीयों के साथ हुई घटना ने बाबा के खिलाफ चिंगारी को हवा दी है. वैसे, स्थानीय जन संगठन तो बाबा के खिलाफ 17 अगस्त से ही लगातार घरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. 7 सितंबर को अमेरिका के आप्रवासी भारतीय शरनदीप और न्यूजीलैंड के मनिंदरजीत सिंह गंगोत्री ट्रैक पूरा कर लौट रहे थे.
तभी पेशे से पायलट शरनदीप का ध्यान पायलट बाबा के आश्रम पर लिखे बोर्ड पर गया तो वे जिज्ञासावश अपने साथी के साथ वहां चले गए. दोनों ने उस दिन वहीं कमरा लेकर रहने का मन बनाया. पर जब उन्होंने वहां मौजूद विदेशी लड़कियों से अध्यात्म की रुचियों के बारे में बातचीत करनी चाही तो आश्रम वालों ने उन्हें बात करने से रोक दिया और उनके साथ बदसलूकी की.
किसी तरह जान बचाकर वे उत्तरकाशी पहुंचे और अपनी आपबीती पुलिस को बताई. पुलिस को सौंपी लिखित शिकायत में दोनों ने आरोप लगाया कि आश्रम में रह रही अधिकांश लड़कियां नाबालिग हैं और उनकी गतिविधियां संदिग्ध हैं. उन्होंने बताया कि अधिकांश विदेशी लड़कियां बाबा की सेवा में लगी थीं. यहां तक कि उनके कमरे में कोई पुरुष नहीं था. उनके मुताबिक जिस तरह उन्हें इन विदेशी लड़कियों से बात करने से रोका गया, उससे साफ है कि आश्रम वाले उन्हें आने वाले साधकों से दूर रखना चाहते हैं.
अगले दिन 8 सितंबर को पुलिस अधीक्षक डॉ. सदानंद दाते ने पुलिस और एलआइयू के साथ आश्रम पर छापा मारा. वहां नौ विदेशी लड़कियां मिलीं, जिनमें से 4 यूक्रेन व 4 रूस की थीं. वे तीन माह से आश्रम में रह रही थीं. उनके पास पासपोर्ट और वीसा तो था, लेकिन आश्रम प्रशासन ने उनके आने की कोई सूचना स्थानीय पुलिस को नहीं दी थी. पुलिस ने आश्रम के मैनेजर अंबरीश मिश्र के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है, जो घटना के बाद से फरार है. आश्रम में इस समय अफरा-तफरी का माहौल है और बात-बात पर बंदूक उठाने वाले वहां के अधिकांश कारिंदे फरार हैं.
गौरतलब है कि पायलट बाबा के आश्रम में कभी किसी स्थानीय व्यक्ति को काम पर नहीं लिया जाता. वरिष्ठ आंदोलनकारी और अधिवक्ता डॉ. नागेंद्र जगूड़ी का कहना है कि पायलट बाबा ने राज्य सरकार की जमीन पर अवैध कब्जा करने के साथ ही स्थानीय ग्रामीणों को भी परेशान किया है. सिंचाई विभाग की नहर पर कब्जा कर वहां मूर्तियां रख दी गई हैं. इससे देसी-विदेशी लोगों को तो भगवान मिल जाते हैं लेकिन गांववालों के खेतों को पानी नहीं मिल पाता.
पायलट बाबा स्थानीय प्रशासन को किस तरह अपने साथ मिला रहे हैं, इसकी एक बानगी तब देखने को मिली जब 2009 में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद राज्य सरकार ने ऐसे धार्मिक स्थलों को चिन्हित करना शुरू किया, जिन्होंने सरकारी जमीन पर कब्जा किया था. उत्तरकाशी जिले से ऐसे 9 स्थल चिन्हित किए गए, लेकिन इनमें पायलट बाबा के आश्रम को छोड़ दिया गया. राजस्व विभाग ने मिलीभगत कर पायलट बाबा के कब्जों को 10 साल से भी पुराना दर्शाया है, जबकि वह 2005 के बाद बनना शुरू हुआ है. आश्रम के लिए भूमि भी 2005 में खरीदी गई है.
यही नहीं, बाबा ने नहर वाले जिस स्थान पर कब्जा जमाया है, उसे छोटे-छोटे मंदिरों के रूप में दर्शाने की कोशिश की गई है. प्रशासन इस मामले में सरकार के साथ ही सुप्रीम कोर्ट को भी गुमराह कर रहा है. अवैध स्थलों पर शिकंजा कसने के बजाए राजस्व प्रशासन आश्रम का पक्ष मजबूत कर रहा है. दिल्ली, नैनीताल, हरिद्वार, उत्तरकाशी और वृंदावन से लेकर तोक्यो तक फैले बाबा के आश्रमों पर तरह-तरह के आरोप लगते रहे हैं.
अल्मोड़ा में भाजपा के एक नेता के प्रयास से बाबा का कारोबार निर्बाध रूप से बढ़ रहा है. बाबा के अल्मोड़ा आश्रम में भी विदेशी बालाओं के पहुंचने के खूब चर्चे रहते हैं. चर्चा उस इनोवा गाड़ी की भी है, जो बाबा ने कथित रूप से राज्य के एक पूर्व मंत्री को दी है.
बाबा के कारनामों की सूची बहुत लंबी है. लेकिन अब सवाल और जरूरत यह है कि काला बाजारी और अवैध धंधों की दुकान चलाने वाले बाबाओं पर कानून का शिकंजा कसा जाए.