काम का बोझ यूपी पुलिस का दम निकाल रहा है. ड्यूटी इतनी लंबी कि पुलिस जवानों के पास नींद के लिए भी समय नहीं है. ऐसे में फिटनेस की बात करना इनका मजाक उड़ाना है.
यह हकीकत दारोगा पद पर प्रोन्नति के लिए आयोजित शारीरिक दक्षता परीक्षा में सामने आई. सिपाहियों को 75 मिनट में 10 किमी की दौड़ लगानी थी. प्रमोशन की आस में मेरठ, सीतापुर, आजमगढ़ और कानपुर में आयोजित परीक्षा में दौड़ के दौरान 97 सिपाही बेहोश हो गए. मेरठ जिला अस्पताल में इलाज के दौरान सिपाही अग्रज दुबे की मौत हो गई. पोस्टमार्टम में पता चला कि उनकी मौत ब्रेन हेमरेज से हुई.
छत्रपति शाहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ में मेडिसिन विभाग में प्रोफेसर डॉ. ए.के. त्रिपाठी कहते हैं, ''नियमित व्यायाम न करने वाले व्यक्ति को यदि 10 किमी दौडऩे को कह दिया जाए तो दिल और दिमाग पर जोर पड़ता है. इससे कई बार दिल का दौरा या दिमाग की नस फट जाती है.
यही अग्रज के साथ हुआ होगा.'' मेरठ में अग्रज के साथ दक्षता परीक्षा में शामिल रहे फर्रुखाबाद निवासी मुकुल सिन्हा बताते हैं, ''दौड़ से पहले किसी अभ्यर्थी की फिटनेस नहीं जांची गई. यह भी नहीं पूछा गया कि उसे कोई बीमारी तो नहीं है.''
परीक्षा स्थल पर उत्तर प्रदेश भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ने एंबुलेंस या चिकित्सक का कोई इंतजाम नहीं कर रखा था. मेरठ में सिपाहियों को बीमार पडऩे के बहुत देर बाद अस्पताल में भर्ती कराया जा सका. आजमगढ़ में तो बेहोश सिपाहियों को जीप में लादकर अस्पताल पहुंचाया गया.
दरअसल बोर्ड राज्य में दारोगा के 5,379 पदों पर प्रोन्नति के लिए परीक्षा ले रहा है. लिखित परीक्षा में 52,266 अभ्यर्थी शामिल हुए जिनमें 3,892 पास हुए. उनके लिए 20 जुलाई से शारीरिक दक्षता परीक्षा चल रही है. जैसे-जैसे परीक्षा आगे बढ़ी है, दौड़ में शामिल होकर बीमार पडऩे वाले सिपाहियों की संख्या बढ़ती गई है. यह 500 का आंकड़ा पार कर चुकी है.
सामान्यतः दारोगा पद पर प्रोन्नति के लिए वही सिपाही योग्य है जिसकी उम्र 40 से अधिक न हो, पर इस बार की परीक्षा में 47 वर्ष की उम्र तक के सिपाहियों को मौका दिया गया है क्योंकि यह प्रोन्नति परीक्षा निर्धारित समय से सात साल बाद हो रही है.
इसके लिए 10 किमी की दौड़ का नियम कितना व्यावहारिक है, उसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जो सिपाही 18 से 20 वर्ष की उम्र के बीच महज एक मील की दौड़ लगाकर पुलिस में भर्ती हुआ हो, उसे अब इस उम्र में प्रोन्नति पाने के लिए 10 किमी दौड़ लगानी पड़ रही है. वैसे, 20-25 साल की ड्यूटी के दौरान उनकी फिटनेस को बरकरार रखने के लिए विभाग ने कोई कोशिश नहीं की.
शायद इसीलिए प्रोन्नति के लिए दौड़ में शरीर ने साथ नहीं दिया और सिपाहियों की जान पर बन आई. आजमगढ़ में 10 किमी की दौड़ लगाते वक्त वाराणसी के रामनगर थाने पर तैनात अनीसुज्जमा की मौत हो गई. डॉक्टरों ने उनकी मौत का कारण दिल का दौरा पडऩा बताया है. इलाहाबाद स्थित चौथी पीएसी बटालियन सी कंपनी में तैनात अवनींद्र कुमार सिंह कानपुर में प्रोन्नति के लिए दौड़ लगाते वक्त गश खाकर गिर गए थे. उन्हें हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी मौत हो गई. अवनींद्र की मृत्यु का कारण भी दिल का दौरा था. भर्ती बोर्ड के एक अधिकारी बताते हैं कि दौड़ में शामिल होने आए ज्यादातर पुलिसकर्मी शक्तिवर्धक गोलियां लेने लगे थे.
चिकित्सक की सलाह के बगैर ऐसी दवाओं के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा. दौड़ के पहले इन सिपाहियों की मेडिकल जांच नहीं कराई गई, ऐसे में जब उन्होंने कठिन दौड़ में हिस्सा लिया तो उनके शरीर ने जवाब दे दिया. वैसे, विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) बृजलाल दौड़ के नियमों में शिथिलता बरतने के पक्ष में नहीं हैं. वे कहते हैं, ''अभ्यर्थियों को बार-बार बताया जा रहा है कि यदि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वे 10 किमी दौड़ पाने में असमर्थ हैं तो परीक्षा में भाग न लें.''
ऐसा नहीं है कि पुलिस विभाग में सिपाहियों की फिटनेस के नियम-कायदे नहीं हैं. हर स्तर पर परेड की अनिवार्य व्यवस्था है, पर कर्मियों की कमी और काम के बढ़ते दबाव के चलते ये नियम ड्यूटी के हिस्से से बाहर हो गए हैं. यही नहीं, हर थाने पर रोज सुबह सिपाहियों की परेड और हर शुक्रवार को एसपी की अगुआई में साप्ताहिक परेड की परंपरा को भी ताक पर रख दिया गया है. यही वजह है कि सिपाही की ड्यूटी में फिटनेस की अहमियत गायब हो गई.
नतीजतन सिपाहियों की सेहत लगातार कमजोर हो रही है. पुलिस नियमों में यह भी प्रावधान है कि हर सिपाही साल-दो साल के बीच कम से कम दो माह के लिए सिविल इमरजेंसी रिजर्व ड्यूटी करे. पर पीएसी के गठन के बाद रिजर्व पुलिस नहीं रही तो ट्रेनिंग भी बंद हो गई. हर तीसरे साल पुलिस कर्मियों की फिटनेस मापने का भी नियम है लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा.
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