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अफीम की तस्करी: उफान पर अफीम का धंधा

कम खरीद मूल्य की वजह से मालवा-मेवाड़ पट्टी में अफीम का गैर-कानूनी धंधा अपने चरम पर है.

अपडेटेड 7 मई , 2012

इन गर्मियों में नीमच जैसे भट्ठी बन दहक रहा है. अपने पूरे शबाब पर पहुंच चुके पोस्त के खेतों से उठता अफीम का मादक भभका आपके होश उड़ा देगा. यहां पहुंचते ही हमारी नजर पड़ती है बोलेरो से घूमते जिले के डीएसपी 38 वर्षीय समीर यादव पर, जिनकी निगाहें यहां के सरकारी लाइसेंस प्राप्त खेतों से होने वाली अफीम की तस्करी पर गड़ी हैं. वे कहते हैं, ''इस साल अफीम की तस्करी अपने चरम पर पहुंच गई है.''

राजस्थान और मध्य प्रदेश में फैला मालवा-मेवाड़ का इलाका देश में अफीम की खेती के लिए जाना जाता है. यहां 38,000 से 44,000 हेक्टेयर जमीन पर अफीम की लाइसेंसी खेती होती है. यह इलाका दुनिया की उन कुछ जगहों में शामिल है जहां वैध चिकित्सीय आवश्यकताओं के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की निगरानी में पोस्त की खेती की जाती है. यही इलाका अफीम की तस्करी का केंद्र भी है.Opium

पांच पुलिसकर्मियों की अपनी टीम के साथ कोटा जाने वाले राजमार्ग पर गश्त करते यादव बताते हैं, ''तस्करी के नए-नए तरीके इन्होंने ईजाद कर लिए हैं. कभी-कभार मारुति या किसी सार्वजनिक वाहन में अतिरिक्त ईंधन टैंक में भरकर इसे ले जाया जाता है.'' 

पुलिस की गश्त से कुछ कामयाबी तो हाथ लगी है. नए साल की पूर्व संध्या पर राजस्थान के निम्बाहेड़ा के राजमार्ग से 11 किलो अवैध अफीम बरामद की गई. इसके बाद 9 फरवरी को पुलिस ने नीमच के किसान धन्नालाल के पास से आठ किलो अफीम बरामद की जो मारुति में छुपाई गई थी. फिर 26 फरवरी को नीमच के ही किसान भगतराम लोहार के पास से आठ किलो अफीम रतनघाट में बरामद की गई.

पिछले महीने की 8 तारीख को नीमच के दौलापुरा गांव से किसान भावरीरा धर के पास से 15 किलो अफीम बरामद की गई. अप्रैल में ही पुलिस ने लहसुन के बोरों में नीमच से कोटा ले जाई जा रही आठ किलो अफीम बरामद की. पुलिस को सबसे बड़ी कामयाबी नीमच के अंतरीमातागांव के कुख्यात तस्कर 45 वर्षीय धन्ना तेली राठौड़ के रूप में मिली जिसके पास से 48 किलो अफीम बरामद की गई.

यहां के किसान कम सरकारी खरीद मूल्य और खेती की बढ़ती लागत के बीच पिस रहे हैं. नीमच के किसान नेता 55 वर्षीय रामचंद्र नागोला कहते हैं, ''अफीम का दाम 1996 से ही 1,500 रु. किलो पर स्थिर है जबकि तस्करी में इसका दाम कई गुना बढ़ गया है.'' नीमच के ही एक किसान जाफर खान बताते हैं, ''यह कोई प्याज नहीं, पोस्त है. इसमें मेहनत, देखभाल और लगन की ज्‍यादा जरूरत होती है जो इतनी सस्ती नहीं मिलती. मजदूरों की दिहाड़ी 300 रु. से 350 रु. तक चली गई है, जबकि प्याज और लहसुन के खेतों में काम करने वालों को अब भी रोजाना 100 रु. से काम चलाना पड़ता है.''

चूंकि सरकार के मुकाबले तस्कर कहीं अच्छा दाम देते हैं, लिहाजा अफीम की कालाबाजारी का आकर्षण बहुत ज्‍यादा है. तस्कर एक किलो का 7,000 रु. तक देते हैं और यदि इससे हेरोइन बनाई जानी हो, तो दाम कई गुना बढ़ जाता है. लिहाजा किसान अपने उत्पादन को कम करके दिखाते हैं और काले बाजार से पैसा कमा लेते हैं.

अफीम की पैदावार का सीजन सितंबर से मार्च के बीच है. खान कहते हैं, ''पोस्त से अफीम निकालना विशेषज्ञता का काम है.'' किसान शाम के वक्त पोस्त के फूलों को काटते हैं और सुबह उसमें से अफीम इकट्ठी करते हैं. इस इलाके में नीलगायों का कहर है, लिहाजा किसानों को रात भर गश्त देनी पड़ती है. खान कहते हैं, ''मुझे लगता है उन्हें लत लग गई है, इसीलिए वे बार-बार खेतों में आ जाती हैं.'' बिच्छू और सांप भी अफीम की मादक गंध से आकर्षित होते हैं, लेकिन किसान मदनलाल के मुताबिक, ''इंसान रूपी सांप सबसे ज्‍यादा जहरीले होते हैं, जो इस ओर खिंचे चले आते हैं.'' उनका आशय चोरों से है.

सरकार हर साल सीजन से पहले न्यूनतम उत्पादन मानदंड तय करती है. इस साल यह 45 किलो प्रति हेक्टेयर रखा गया था. यह मानदंड ही नियंत्रण प्रणाली की बुनियाद है क्योंकि यदि एक किसान इतना पैदा नहीं कर पाता, तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है. दिसंबर से केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के अधिकारी खेतों को नापना शुरू करते हैं और यह काम छह हफ्ते चलता है. इस दौरान लाइसेंसधारी किसान और दो गवाह अधिकारी के साथ होते हैं. इसके बाद जिला अफीम अधिकारी असलियत का पता करने के लिए खेतों से नमूने लेता है. यदि कोई लाइसेंसधारी किसान रिकॉर्ड में दर्ज रकबे से ज्‍यादा जमीन पर खेती करता पाया जाता है, तो उसका लाइसेंस स्थायी तौर पर रद्द कर दिया जाता है.

निम्बाहेड़ा में अफीम उपजाने वाले किसानों को साल के अंत में परीक्षण से गुजरना होता है और फिर सरकार उनसे फसल ले लेती है. इसके बाद उसे गाजीपुर और नीमच स्थित अल्कलॉइड कारखानों में भेज दिया जाता है.

निम्बाहेड़ा में एक विशाल टेंट के नीचे जिला अफीम अधिकारी 48 वर्षीय एन.सी. सिंह करीने से पैक किए गए अफीम के डिब्बों का निरीक्षण कर रहे हैं. अचानक वे एक किसान रमन लाल पर चिल्ला उठते हैं, ''चोरी करते हो?'' वह अपने आधा हेक्टेयर रकबे से सिर्फ  चार किलो अफीम लेकर आया है, जो सरकारी लक्ष्य से काफी कम है. रमनलाल का कहना है कि ठंडी हवाओं से उसकी फसल की पैदावार कम हुई. यहां नियम है कि यदि किसान को ऐसा लगे कि वह सरकारी लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगा, तो उसे अधिकारियों की मौजूदगी में अपनी फसल को नष्ट करना पड़ता है. एन.सी. सिंह चिल्लाते हैं, ''पक्का तुमने अपना माल कहीं और बेच दिया है.''

मामला यह है कि 45 किलो के अतिरिक्त अगर कोई भी फसल होती है तो उसके तस्करी में जाने का खतरा रहता है, हालांकि सरकार अतिरिक्त उत्पादन का भी पैसा देती है. मालवा-मेवाड़ पट्टी से तस्करी का माल पंजाब-दिल्ली आता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी भेजा जाता है. यहां 1996 में तस्करी तकरीबन बंद हो गई थी जब एक बड़ा तस्कर मोहम्मद शफी पुलिस के छापों के बाद छुप गया था. वह क्रीसेंट और स्टार नाम से स्मैक का अपना ब्रांड चलाता था. यादव बताते हैं, ''आज छोटे-छोटे स्तर पर सैकड़ों मोहम्मद शफी काम कर रहे हैं.''

पोस्ता के खेतों में तस्करी से आए पैसे की चमक अब हर कहीं दिखने लगी है. नीमच के जिलाधिकारी और 2004 बैच के आइएएस अधिकारी लोकव्श कुमार जाटव मारियो पुजो के मशहूर उपन्यास गॉडफादर का हवाला देते हुए सख्त अंदाज में कहते हैं, ''हर मोटी कमाई के पीछे कोई न कोई जुर्म होता है.

अफीम का गैर-कानूनी धंधा इस इलाके में समृद्धि लेकर आया है.'' यहां रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं. नीमच जैसे छोटे शहर में दुपहिया और कारों के शोरूम की भरमार हो गई है. हालांकि इस समृद्धि का एक दूसरा पहलू भी है जो भयावह है. अफीम की तस्करी ने नए नए गिरोह पैदा किए हैं. राजस्थान के कुख्यात बाफना और पठान गैंग के बीच डोडाचूरा (अफीम निकालने के बाद सूखा हुआ पौधा, जिसमें पोस्तादाना भी निकाला

जाता है) को लेकर खूनी जंग छिड़ी हुई है. बीती 18 फरवरी को पठान गैंग ने डोडाचूरा के ठेकव्दार कोमल बाफना की दुकान पर गोलीबारी की थी. ऐसे ही एक अन्य ठेकेदार अनिल त्रिवेदी की अप्रैल में प्रतापगढ़ जिले में हत्या कर दी गई. पोस्टमॉर्टम में उसके शरीर से कम से कम 16 गोलियां बरामद हुईं.

अफीम तक आसान पहुंच ने लोगों में इसकी लत को भी बढ़ाने का काम किया है. नीमच के राजकीय कन्या कॉलेज में मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर कमलेश उपाध्याय बताते हैं, ''अफीम के लाइसेंस यहां प्रतिष्ठा का मानक हैं. जिनके पास लाइसेंस होते हैं, लोग उनके परिवार से रिश्ता जोड़ना चाहते हैं. लेकिन नशीले पदार्थ की उपलब्धता ने नशेड़ियों की संख्या में भी वृद्धि की है.

हरवार जैसे गांवों में तो ऐसा एक भी परिवार नहीं बचा जिसका कोई न कोई सदस्य नशेड़ी न हो.'' रेड क्रॉस संस्था की ओर से नीमच अल्कलॉइड कारखाने के साथ मिलकर चलाए जाने वाले लहरी मुक्ति केंद्र ने पिछले पांच साल के दौरान नशे के आदी करीब 1,200 लोगों का इलाज किया है.

निम्बाहेड़ा रेलवे फाटक के पास शाम होते ही जब लालटेन जलती है, तो उसकी रोशनी में किशन लाल का चेहरा पीला हो उठता है. बीस साल का यह नौजवान एक पाइप के जरिए अफीम की तगड़ी खुराक खींचता है, कुछ ढीला पड़ता है और दूसरी खुराक की तैयारी में जुट जाता है. वह मुझसे पूछता है, ''ट्राई करेंगे?''

मालवा-मेवाड़ की यह धरती नीलगायों से लेकर अजगरों और तस्करों से लेकर बाहर से आने वाले पत्रकार तक सभी का, इस अफीम पार्टी में स्वागत करने के लिए तत्पर रहती है.

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