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कोरोना के खौफ से घट गई सिजेरियन डिलिवरी

कोरोना के खौफ और सख्त प्रोटोकॉल के चलते गायनोकोलोजिस्ट ने सिजेरियन डिलीवरी काफी कम कर दी हैं. डॉक्टरों का नॉर्मल डिलीवरी पर ज्यादा जोर है.

प्रतीकात्मक फोटो
प्रतीकात्मक फोटो
अपडेटेड 23 जून , 2020

कोरोना संक्रमण के चलते लागू कठिन मेडिकल प्रोटोकाल का असर महिला अस्पतालों में हो रहे प्रसव पर दिख रहा है. कोरोना के खौफ और सख्त प्रोटोकॉल के चलते गायनोकोलोजिस्ट ने सिजेरियन डिलीवरी काफी कम कर दी हैं. डॉक्टरों का नॉर्मल डिलीवरी पर ज्यादा जोर है. इससे प्रसूताओं और उनके परिजनों को काफी राहत मिली है. समय और पैसा दोनों बच रहे हैं. लॉकडाउन से पहले की बात करें तो निजी नर्सिग होम और अस्पतालों में धड़ल्ले से सिजेरियन आपरेशन किए जा रहे थे. संपन्न घरों से आने वाली प्रसूताएं भी डॉक्टरों पर सिजेरियन ऑपरेशन कराने की दबाव डाल रही थीं.

वहीं डिलीवरी को नॉर्मल से सिजेरियन करने के लिए गायनोकोलॉजिस्ट पर सवाल भी खड़े होते रहे हैं. कई नर्सिग होम में तो गर्भवती और उसके स्वजनों को इतना डरा दिया जाता था कि सिजेरियन से डिलिवरी को तैयार हो जाते. परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण विभाग के सलाहकार डॉ. आर. के. शर्मा बताते हैं कि लखनऊ और सभी बड़े शहरों के निजी अस्पतालों में सत्तर फीसद से ज्यादा प्रसव सिजेरियन हो रहे थे. सिजेरियन प्रसव के लिए प्रसूताओं को डराने की कई शिकायतें स्वास्थ्य विभाग को मिली हैं. लॉकडाउन के बाद स्थितियां बदल गई हैं. लखनऊ के प्रसिद्ध नर्सिंग होम में कार्यरत एक नर्स आशा चतुर्वेदी बताती हैं कि लॉकडाउन के दौरान छूट मिलने पर कम से कम 40 डिलीवरी के मामले उनके नर्सिंग होम में आए थे. इन सबकी कोरोना जांच कराई गई और उनमें बमुश्किल पांच की ही सिजेरियन डिलीवरी हुई.

स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सविता सिंघल ने बताया कि सिजेरियन के लिए काफी प्रोटोकॉल का पालन करना होता है. संक्रमण का डर भी है. सिजेरियन से पूर्व महिला की महंगी कोरोना जांच करानी पड़ती है, इसलिए ऐसे मरीज रेफर कर देते हैं. डॉ. आर. के. शर्मा बताते हैं, “लखनऊ के अस्पतालों में पहली जून से 20 जून तक के प्रसव के तरीकों पर गौर किया जाए तो 75 फीसद से अधिक प्रसूताओं की नार्मल डिलिवरी की गई है. इनमें से बीस फीसद प्रसूताओं का उनके घर में प्रसव कराया गया है.”

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