पेशे से मनोवैज्ञानिक ऋचा को जब पता चला कि उनकी छह साल की बच्ची सोनल को डायबिटीज है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. डॉक्टर ने उन्हें बताया कि सबसे पहले डिब्बा बंद और जंक फूड बंद करने होंगे. दरअसल ऋचा और उनके पति दोनों ही वर्किंग हैं. ऋचा ने डॉक्टर को बताया कि वे तो हमेशा अच्छे ब्रांड के ही पैकेज्ड फूड पर भरोसा करती हैं. खुले में बिकने वाले खाने से सोनल को दूर ही रखती हैं. सूप, नट क्रैकर्स, डिब्बाबंद जूस उनकी बच्ची को पसंद भी है. ऋचा को यकीन था कि बड़ी कंपनियां स्वास्थ्य के मानकों का ध्यान रखती होंगी.
ऋचा हफ्ते में एक बार पैकेज्ड जंक फूड वे सोनल को खाने की छूट देती थीं, क्योंकि उन्हें लगता था कि सूप, जूस तो सेहत को फायदा ही पहुंचाएंगे और नट क्रैकर्स में सेहत को हानि पहुंचाने जैसा कुछ होता नहीं. हफ्ते में एक बार पैकेज्ड जंक फूड खिलाने से सोनल की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.'' तो क्या डिब्बा बंद खाना अब असुरक्षित ही नहीं बल्कि इतना खतरनाक हो गया है कि बच्चों में डायबिटीज और उच्च रक्तचाप की समस्याएं पैदा कर दे? दरअसल इस सवाल का जवाब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) की ताजा फूड रिपोर्ट में मौजूद है.
सीएसइ की ताजा रिपोर्ट उपभोक्ताओं की सेहत के साथ हो रहे खतरनाक खेल की अफसोसजनक कहानी कहती है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेचे जाने वाले ज्यादातर पैकेज्ड और जंक फूड में नमक एवं वसा की मात्रा भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के तय मानकों से बेहद ज्यादा स्तर पर है. खतरनाक स्तर तक मौजूद होने की वजह से उपभोक्ताओं की सेहत के लिए यह बहुत ज्यादा हानिकारक हैं. सीएसइ की डायरेक्टर सुनीता नारायण के मुताबिक '' सीएसइ की लैब में टेस्ट हुए नमूनों में प्रोसेस्ड फूड (जंक एवं डिब्बाबंद फूड) में नमक और वसा की मात्रा खतरनाक स्तर तक मौजूद पाई गई. खाद्य सुरक्षा के नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ने के बावजूद नियामक संस्था एफएसएसआइ की चुप्पी से साफ है कि कहीं न कहीं यह संस्था ताकतवर खाद्य उद्यो के दबाव में काम कर रही है. यह अनदेखी, उपभोक्ता के जानने और सेहत दोनों अधिकारों का हनन है.''
नारायण आगे कहती हैं ''2013 से एफएसएसआइॉ फूड स्टैंडर्ड सेफ्टी (लेबलिंग ऐंड डिस्प्ले) रेगुलेसंस, को बनाने की प्रक्रिया में है. इसे ड्राफ्ट करने के लिए संस्था ने एक कमेटी का गठन भी किया. 2018 में फाइनल ड्राफ्ट भी जारी किया गया. 2019 में फिर रिवाइस्ड ड्राफ्ट बनकर तैयार हो गया है. अब एफएसएसआइ ने इस ड्राफ्ट पर पब्लिक कमेंट मांगे हैं. फूड इंडस्ट्री का दबाव इस ड्राफ्ट में भी साफ नजर आता है. ड्राफ्ट बनाने के लिए एफएसएसआइ ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन के पूर्व डायरेक्टर बी शशिकरन की अध्यक्षता में कमेटी गठित की. शशिकरण कौन हैं इसका जवाब फूड इंडस्ट्री और खाद्य नियामक संस्था के बीच के संबंधों को बताने के लिए काफी है. दरअसल, शशिकरण वर्तमान में ग्लोबल फूड बिग फूड इंडस्ट्री के लॉबी ग्रुप इंटरनेशनल लाइफ साइंसेज इंस्टीट्टयूट के ट्रस्टी हैं. अंदाजा लगया जा सकता है कि शशिकरण फूड इंडस्ट्री के हित साधेंगे या फिर उपभोक्ताओं के.''
कैसे हुआ परीक्षण?
जुलाई और अक्टूबर के बीच, 2019 में सीएसई की पर्यावरण निगरानी लैब ने 33 मशहूर भारतीय और वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पैकेटबंद और फास्ट फूड की सामग्री का परीक्षण किया. इसके लिए एसोसिएशन ऑफ ऑफिशियल एनालिटिकल केमिस्ट्स (एओएसी) के जरिए सूचीबद्ध अंतरराष्ट्रीय मानकों पर स्वीकृत जांच विधियों का उपयोग किया गया. अभी तक एसोसिएशन ने कार्बोहाइड्रेट के जांचने की विधि को सूचीबद्ध नहीं किया है इसलिए वैश्विक स्तर पर अपनाई गई कलेरिमेट्री विधि का उपयोग किया गया है.
लैब के जरिए 100 ग्राम पैकेटबंद भोजन और फास्ट फूड को जांचा गया और परिणाम 30 से 35 ग्राम में बांटे गए हैं. यह मात्रा पैकेट पर लिखी गई परोसी जाने वाली मात्रा के बराबर है. सभी जांचे गए चिप्स, नमकीन, तुरंत बनने वाले नूडल्स और सूप में रिकमंडेड डायटरी अलाउंस (आरडीए) के मानकों से ज्यादा नमक पाया गया, जिसकी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन-इंडिया, आईसीएमआर और साइंटिफिक एक्सपर्ट ग्रुप ऑफ फूड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) की सिफारिशों के आधार पर समीक्षा भी की गई.
आरडीए के मुताबिक, एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन नमक 5 ग्राम, वसा 60 ग्राम, ट्रांस फैट 2.2 ग्राम और 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट की मात्रा तय की गई है. रोजाना एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी 2,000 कैलोरी के हिसाब यह आंकलन किया गया. दिन में तीन बार भोजन और दो बार नाश्ते के हिसाब से भी इस मात्रा को तय किया गया. हमारे भोजन में इन पोषक तत्वों का उपभोग आरडीए का 25 फीसदी से कम ही होना चाहिए. दिन में दो बार लिए जाने वाले मुख्य नाश्ते में आरडीए के तय मानक का 10 फीसदी से ज्यादा इसमें मौजूद नहीं होना चाहिए. लेकिन सीएसई ने अपनी जांच में जो पाया वह इन मानकों की धज्जियां उड़ाने वाला है.
सीएसइ की लैब में 33 उत्पादों की जांच की गई. इनमें 14 पैकेटबंद भोजन थे और 19 फास्ट फूड. नमक, वसा, ट्रांसफैट और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा की जांच की गई. पेप्सिको लेज इंडियाज मसाला, आइटीसी का बिंगोल मैड एंगल अचारी मस्ती, हल्दीराम का क्लासिक नट क्रैकर, पतंजलि आयुर्वेद का आटा नू़डल्स समेत कई अन्य नामी गिरामी खाद्य उत्पाद मौजूद थे.
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