जहां केंद्र सरकार गंगोत्री धाम के विकास के लिए 50 करोड़ रु. मंजूर कर चुकी है जिसका उपयोग राज्य सरकार को करना है, वहीं राज्य सरकार की लापरवाही के कारण इस धाम में अतिक्रमण का बोलबाला है.
गंगोत्री धाम के कपाट जैसे ही शीतकाल के लिए बंद होते हैं, गंगोत्री में अतिक्रमणकारियों की पौ बारह हो जाती है. सरकार ने चारों धामों में हर प्रकार के निर्माण पर रोक लगा रखी है लेकिन लाभ कमाने के फेर में व्यापारी नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आते. इस साल भी गंगोत्री धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते ही वहां आधा दर्जन से अधिक दुकानें और कई होटलों में मंजिलें ऊंची कर दी गईं.
यह खुलासा तब हुआ जब गंगोत्री धाम के कपाट खुलने संबंधी तैयारियों को लेकर प्रशासन का एक दल गंगोत्री पहुंचा. गंगोत्री धाम में स्नान घाट, मंदिर परिसर और मुख्य बाजार में दर्जन भर से अधिक अतिक्रमण किए गए हैं. ऊपर से तिरपाल डालकर स्थानीय व्यापारी अंदर ही अंदर पक्के निर्माण कर रहे हैं. होटल, दुकानों और ढाबों के लिए किए जा रहे ये निर्माण पूरी तरह अवैध हैं.
शीतकाल में कपाट बंद होने के बाद से ही गंगोत्री मुख्य बाजार में 10 नए भवन बना दिए गए हैं जबकि पांच होटलों ने अपनी मंजिलें ऊंची की हैं. अतिक्रमणकारियों ने स्नानघाट को भी नहीं बख्शा है और वहां कुछ दुकानें नई बनाई गई हैं. उनकी नजर से गंगोत्री का मुख्य मंदिर परिसर भी नहीं बच पाया यहां भागीरथी शिला के निकट भैरवझप नाले में भी अवैध निर्माण किया गया है. चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरत राम नौटियाल कहते हैं, ''मैंने खुद जिलाधिकारी और एसपी के साथ गंगोत्री में बैठक की है. वहां अतिक्रमण के खिलाफ प्रशासन कार्रवाई कर रहा है.''
गंगा के उद्गम स्थल पर अवैध कब्जे और अतिक्रमण ही बड़ा मुद्दा नहीं हैं बल्कि यह भी कि सारे होटलों, आश्रमों और भवनों और सीवर का गंदा पानी सीधे गंगा में छोड़ा जाता है जिससे यह नदी अपने उद्गम से ही मैली हो रही है. गंगा के उद्गम स्थान में लगातार बढ़ रही मानव गतिविधियों का असर पर्यावरण के साथ ही ग्लेशियर पर भी दिख रहा है. गंगोत्री धाम में अतिक्रमण कर उसे कंक्रीट के जंगल में तब्दील करने का सिलसिला अरसे से चला आ रहा है. अब भले ही जिलाधिकारी और पुलिस प्रशासन गंगोत्री के चक्कर काट रहे हों लेकिन मंदिर के कपाट बंद होते ही उनका ध्यान उधर से हट जाता है.
हर साल होने वाले अतिक्रमण का मुद्दा इस बार इसलिए बड़ा हो गया है कि अतिक्रमणकारियों ने गंगोत्री मंदिर के सामने ही अतिक्रमण कर डाला. कहने को तो भटवाड़ी के तहसीलदार ने अतिक्रमण की रिपोर्ट तैयार कर ली है लेकिन इस पर कुछ हो भी पाएगा इसमें संदेह है. गंगोत्री धाम की ज्यादातर इमारतें वन भूमि पर बनी हैं और वर्तमान अतिक्रमण भी वन भूमि पर ही हुए हैं. उत्तरकाशी में ज्यादातर व्यवसाय पर स्थानीय पंडे-पुराहितों का कब्जा है. इनके आश्रमों, होटलों में नेता से लेकर अधिकारियों तक का आना, जाना होता है ऐसे में इनके खिलाफ कोई कार्रवाई होगी, कहना मुश्किल है.