यह नियति नहीं बल्कि सरकारी व्यवस्था की घोर लापरवाही की कहानी है. मेरठ मेडिकल कॉलेज में इलाज करा रहे कोरोना संक्रमित मेरठ निवासी यशपाल सिंह और मोदी नगर निवासी गुरुबचन लाल की 5 सितंबर को मौत हो गई थी. 5 सितंबर की रात को ही यशपाल सिंह के परिजनों को गुरुबचन लाल का शव दे दिया गया. सीबीएसई कार्यालय में कार्यरत यशपाल के बेटे वरुण ने सूरजकुंड श्मशान पर गुरुबचन लाल के शव को अपने पिता का शव मानते हुए अंतिम संस्कार कर दिया. उधर मोदी नगर के हरमुखपुरी कालोनी के रहने वाले गुरुबचन सिंह के पुत्र मुकेश 6 सितंबर की सुबह मेरठ मेडिकल कॉलेज से अपने पिता के शव के स्थान पर यशपाल सिंह का पैक्ड किया हुआ शव घर ले आए. सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए गुरुबचन लाल के परिजन शव को लेकर हापुड़ रोड स्थित श्मशान पहुंचे. मुखाग्नि देने से पहले जब पुत्र मुकेश ने अपने पिता का चेहरा देखा तो उनके होश उड़ गए. यह उनके पिता गुरुबचन लाल नहीं बल्कि किसी और का शव था.
मुकेश ने फौरन शव बदलने की बात मेरठ मेडिकल कॉलेज प्रशासन को फोन करके बताई. फोन पर बात करने वाली मेडिकल कॉलेज की महिला अधिकारी ने पहले तो परिजनों को जमकर हड़काया. उसने परिजनों से कहा कि कोराना पॉजिटिव मरीज के शव से पैकिंग हटाने पर उन्हें कानून के हिसाब से दंडित किया जा सकता है. परिजनों के सख्त होने पर महिला अधिकारी ने पता करके बताया कि जिस शव का अंतिम संस्कार गुरुबचन लाल समझ कर किया जा रहा है, असल में वह यशपाल सिंह का शव है. मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने यशपाल सिंह के बेटे वरुण को इसकी जानकारी दी तो वह भी हैरत में पड़ गए क्योंकि उन्होंने तो एक दिन पहले रात में अपने पिता का अंतिम संस्कार कर दिया था. मेडिकल कालेज प्रशासन ने वरुण को यशपाल सिंह का शव सौंपा और इनका फाजलपुर रोहटा रोड स्थित श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया. उधर, दूसरी ओर गरुबचन लाल के परिवारीजन इनके शव का अंतिम संस्कार भी नहीं कर सके. मामला जानकारी में आने पर मेरठ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने सिस्टर इंचार्ज को ड्यूटी से हटाते हुए पूरे प्रकरण की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया.
समिति को जांच में पता चला कि मेरठ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कोरोना संक्रमित गरुबचन लाल और यशपाल सिंह की 5 सितंबर की दोपहर में मृत्यु होने के बाद इनका शव मोर्चरी में रख दिया गया था. मौत की सूचना परिजनों को दी गई. मेरठ के रहने वाले यशपाल सिंह के परिजन कुछ ही देर में शव लेने को पहुंच गए. ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने सफाई कर्मचारी से मोर्चरी में रखे शव को पैक करने को कहा. नियमानुसार वार्ड से निकालने से पहले कोरोना संक्रमित शवों पर नाम की चिट लगाने का प्रावधान है ताकि इनकी पहचान हो सके. मेरठ मेडिकल कॉलेज में गुरुबचन लाल और यशपाल सिंह के शव पर वार्ड में नाम की कोई चिट नहीं लगाई गई थी. मोर्चरी में मौजूद कर्मचारियों ने इन शवों को पैक करने के बाद अंदाज से इन पर नाम की चिट लगाई. यशपाल सिंह के शव पर गुरुबचन लाल और गुरुबचन लाल के शव पर यशपाल सिंह के नाम की चिट लग गई.
कोरोना संक्रमित मरीज का शव बदलने का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले 16 अगस्त को लखनऊ के सरोजनीनगर के टी.एस. मिश्रा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में कोरोना मरीजों की मौत के बाद शव बदलने का मामला सामने आया था. अस्पताल ने प्रेमवती नगर निवासी 65 वर्षीय बुजुर्ग यतींद्र कुमार तिवारी की कोराना संक्रमण से मृत्यु के बाद अस्पताल प्रशासन ने इनके परिवारीजनों को कोविड प्रोटोकाल के अनुसार पैक करके एक युवक का शव थमा दिया. यतींद्र के पुत्र महेंद्र तिवारी बताते हैं, “एंबुलेंस में शव रखने के दौरान उसकी लंबाई और मोटाई मेरे पिता से मेल नहीं खा रही थी. भैंसाकुंड घाट पर काफी मिन्नतें करने के बाद एंबुलेंस के साथ आए कर्मचारी पिता का चेहरा दिखाने को राजी हुए.” शव में अपने पिता का चेहरा न देखकर महेंद्र हैरत में पड़ गए. उन्होंने अस्पताल प्रशासन को सूचना दी तो हड़कंप मच गया. रात दस बजे अस्पताल प्रशासन ने महेंद्र को उनके पिता का शव सौंपा. जांच में पता चला कि महेंद्र को सौंपा गया शव गोंडा निवासी युवक का था. घटना की जानकारी लखनऊ जिला प्रशासन को होने पर जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने इस पूरे पकरण में मजिस्ट्रेटी जांच का आदेश दिया है.
शव की अदलाबदली आम नागरिक के साथ ही नहीं बल्कि वरिष्ठ अधिकारियों के साथ होने पर वाराणसी में बीएचयू अस्पताल पर भी सवाल खड़े हुए हैं. पुलिस अफसर अनुपम श्रीवास्तव के पिता केशवचंद्र श्रीवास्तव और वाराणसी के अपर मुख्य चिकित्साधिकारी (एसीएमओ) जंग बहादुर का निधन एक ही समय बीएचयू के कोविड अस्पताल में हुआ था. एक ही साथ दोनों शवों की पैकिंग की गई और कर्मचारी दोनों शवों को मोर्चरी ले गए. इस दौरान शव की अदला बदली हो गई. अस्पताल में घोर लापरवाही के कारण केशवचंद्र का शव 12 अगस्त को जंग बहादुर के परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने केशवचंद्र के शव का वाराणसी के हरिशचंद्र घाट पर अंतिम संस्कार भी कर दिया. उधर, जब अनुपम श्रीवास्तव ने जब अपने पिता केशवचंद्र का शव मांगा तो उन्हें जंगबहादुर का शव दे दिया गया. अनुपम ने जब अस्पताल में ही अपने पिता के शव का चेहरा देखा तो पूरी गड़बड़ी सामने आ गई. बाद में जंग बहादुर के परिजनों को अस्पताल से फोन आया कि वह आकर अपना शव ले जाएं. इसपर वे चौक गए क्योंकि वे तो हरिश्चंद्रघाट पर शव का अंतिम संस्कार कर चुके थे. उधर, केशवचंद्र के परिजनों ने बीएचयू अस्पताल प्रशासन के खिलाफ जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को शिकायत करके मुकदमा दर्ज करा दिया. इस पूरे मामले की जांच बीएयचू मेडिकल कॉलेज में कार्डियोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. धमेंद्र जैन की अध्यक्षता में जांच समिति गठित कर दी गई है.
शव बदले जाने के प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए चिकित्सा शिक्षा विभाग के महानिदेशक डॉ. के. के. गुप्ता ने मेडिकल कॉलेजों को कोविड मरीजों के शव की पैकिंग के लिए ट्रांसपैरेंट बॉडी पैक खरीदने का निर्देश दिया है.
कोरोना संक्रमित शव के लिए यह हैं नियम:
#अस्पताल में किसी कोरोना संक्रमित मरीज की मौत होने पर शव मरीजों के बीच से हटाकर उसे होल्डिंग एरिया में पहुंचाना जरूरी होता है.
#शव की तीन परतों में पैकिंग की जाती है. पैकिंग पर मृतक का नाम उम्र और पता लिखा जाता है. पैकिंग के समय सिस्टर इंचार्ज की उपस्थिति जरूरी है.
#पैकिंग के लिए मेडिकेटेड और सेनेटाइज्ड पैक मंगाए जाते हैं. इससे मरीज के शव को धोना या साफ करने की जरूरत नहीं पड़ती.
#होल्डिंग एरिया में शव को 45 मिनट से ज्यादा नहीं रखे जाने का प्रावधान है. यहां से शव को मोर्चरी में भेजा जाता है.
#कोविड मरीज के शव का अंतिम दर्शन के लिए परिजनों का पीपीई किट पहनना जरूरी होता है.