तस्वीरें: पाकिस्तान से युद्ध में जीत के बाद लालबहादुर शास्त्री के निधन की कहानी

“जितना सरल मैं दिखता हूं उतना नहीं हूं"- ये कथन है भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का. उन्होंने ये बात भले ही किसी और संदर्भ में कही हो, लेकिन स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में उनके व्यक्तित्व से बिल्कुल मेल खाता है. प्रधानमंत्री होने के बावजूद शास्त्री जी के जमीन से जुड़ाव और स्वभाव में विनम्रता में कोई कमी देखने को नहीं मिली. आज, 11 जनवरी को उनकी की 58वीं पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. साल 1966 में आज ही के दिन लालबहादुर शास्त्री का निधन हुआ था. उनके निधन के बारे में भी वही बात कही जा सकती है- उनका निधन जितना सरल दिखता है उतना नहीं था.

पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद उजबेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु पर अभी-भी सवाल उठाए जाते हैं. कहा जाता है कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई तो कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि उन्हें जहर दिया गया था.

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि वे इस पद पर केवल 18 महीने ही रह पाए, लेकिन इस दौरान कई चुनौतियां सामने थीं. उनके ही कार्यकाल में भारत ने पाकिस्तान से 1965 की जंग जीती. पंडित नेहरू के निधन के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने कश्मीर हड़पने की एक और नाकाम कोशिश की थी. इसी साल शास्त्री जी के साथ अयूब खान की मुलाकात हुई.

अयूब खान को भ्रम था कि शास्त्री जी सीधे-साधे हैं तो पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा जमा सकता है. इसी सोच के साथ पाकिस्तान ने अगस्त 1965 में घुसपैठियों को भेज दिया. पाकिस्तानी सेना ने चंबा सेक्टर पर हमला बोला, तो प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने भारतीय सेना को पंजाब से मोर्चा खोलने का आदेश दे दिया. नतीजा ये हुआ कि भारतीय सेना लाहौर कूच कर गई. सितंबर तक भारत ने लौहार पर लगभग कब्जा कर लिया था. पाकिस्तान अपना ये शहर खोने की कगार पर पहुंच गया था, लेकिन 23 सितंबर 1965 को यूनाइटेड नेशंस के हस्तक्षेप के बाद भारत ने युद्धविराम की घोषणा कर दी.

इस जंग के रुकने के बाद ही ताशकंद की कहानी शुरु होती है. जंग रुकने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के लिए ताशकंद को चुना गया और इसके लिए 10 जनवरी 1966 की तारीख तय हुई. इस समझौते की पेशकश सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक्सेई कोजिगिन ने की थी. समझौते के तहत दोनों देशों को अपनी-अपनी सेना 25 फरवरी 1966 तक सीमा से पीछे हटानी थी. समझौते पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री का 11 जनवरी की रात रहस्यमयी परिस्थितियों में निधन हो गया.

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर उस समय शास्त्री के मीडिया सलाहकार थे. परिवार को उनके निधन की खबर कुलदीप नैयर ने ही दी थी. हाजी पीर और ठिथवाल को पाकिस्तान को वापस देने से शास्त्री की देश में कई जगहों पर आलोचना हो रही थी और कहा जा रहा था कि उनकी पत्नी भी इससे बेहद नाराज थीं.