स्वामीनारायण संप्रदाय और सनातन धर्म के अनुयायी एक बार फिर आमने-सामने हैं. सूरत के वेद रोड इलाके में स्वामीनारायण गुरुकुल के नीलकंठ चरण स्वामी ने कृष्ण (द्वारकाधीश) के बारे में एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि कृष्ण ने द्वारका में मंदिर के लिए स्वामीनारायण से प्रार्थना की थी.
यह दावा करते हुए एक वीडियो अब वायरल हो गया है जिससे बवाल खड़ा हो गया है. स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायी स्वामी सहजानंद (स्वामीनारायण) को भगवान का अवतार या परम सत्ता मानते हैं. उनके दर्शन में यह विश्वास शामिल है कि स्वामीनारायण परब्रह्म हैं और अन्य सभी देवता उनके अधीन हैं.
यह बात उनके ग्रंथों, जैसे 'वचनामृत' और 'शिक्षापत्री' में भी दर्ज है. दूसरी ओर, सनातन धर्म के पारंपरिक वैष्णव अनुयायी, विशेष रूप से द्वारकाधीश के भक्त, कृष्ण को ही परम पुरुषोत्तम और सर्वोच्च ईश्वर मानते हैं, जैसा कि भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत पुराण जैसे ग्रंथों में वर्णित है. नीलकंठ चरण स्वामी का यह दावा कि कृष्ण ने स्वामीनारायण से प्रार्थना की, सनातन धर्म के अनुयायियों नागवार गुजरी और उनकी मान्यताओं के विपरीत अपमानजनक लगी.
द्वारकाधीश के अनुयायियों और स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच क्या मतभेद हैं?
द्वारकाधीश के अनुयायी और स्वामीनारायण संप्रदाय के बीच मतभेद मुख्य रूप से उनके दार्शनिक आधार, पूजा पद्धति, और इतिहास की वजह से हैं. दोनों ही हिंदू धर्म की वैष्णव परंपरा से संबंधित हैं लेकिन उनके बीच कुछ मूलभूत अंतर हैं.
द्वारकाधीश के अनुयायी कृष्ण के भक्त हैं, विशेष रूप से उनकी द्वारकाधीश को रूप को मानते हैं, जिसका आधार द्वारका (गुजरात) में स्थित मंदिर में स्थापित मूर्ति है. यहां कृष्ण को द्वारका का राजा और सर्वोच्च ईश्वर के रूप में पूजा जाता है. यह परंपरा प्राचीन वैष्णव भक्ति पर आधारित है और श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत जैसे ग्रंथ इस आस्था की बुनियाद हैं. वहीं स्वामीनारायण संप्रदाय स्वामी सहजानंद (स्वामीनारायण) को भगवान का अवतार मानता है. यहां भी कृष्ण की पूजा होती है, लेकिन स्वामीनारायण को परम सत्ता और गुरु के रूप में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है. स्वामीनारायण संप्रदाय में कृष्ण की पूजा अक्सर राधा-कृष्ण या लक्ष्मी-नारायण के जोड़े में की जाती है.
द्वारकाधीश के अनुयायी परंपरागत वैष्णव दर्शन का पालन करते हैं, जिसमें कर्म, योग और ध्यान की जगह भक्ति मार्ग पर जोर दिया जाता है. यहां किसी एक दर्शन (जैसे अद्वैत, विशिष्टाद्वैत, या द्वैत) को पुरजोर तरीके से मानने की जगह भक्ति और श्रद्धा पर जोर दिया जाता है. वहीं स्वामीनारायण संप्रदाय विशिष्टाद्वैत वेदांत पर आधारित है, जिसे स्वामीनारायण ने अपने उपदेशों में बताया था. इसमें जीव, ईश्वर, और माया, तीनों को अलग सत्ता माना जाता है और स्वामीनारायण को परब्रह्म के रूप में स्वीकार किया जाता है. श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत की जगह यह संप्रदाय शिक्षापत्री और वचनामृत को पवित्र ग्रंथ मानता है.
द्वारकाधीश के अनुयायियों का मुख्य मंदिर द्वारकाधीश मंदिर (द्वारका, गुजरात) है. यहां की पूजा प्राचीन वैदिक और पुराणिक रीति-रिवाजों के हिसाब से होती है. वहीं स्वामीनारायण संप्रदाय के अपने भव्य मंदिर हैं (जैसे अक्षरधाम). यहां स्वामीनारायण की मूर्ति के साथ-साथ राधा-कृष्ण या अन्य वैष्णव देवताओं की पूजा होती है. द्वारकाधीश की पूजा प्राचीन वैष्णव परंपरा से जुड़ी है, जो द्वापर युग और महाभारत काल से संबंधित मानी जाती है. दूसरी ओर, स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना 19वीं सदी में स्वामी सहजानंद (1781-1830) ने की, जो अपेक्षाकृत आधुनिक है.
क्या है हालिया विवाद?
इंडिया टुडे की रिपोर्टर जुमाना शाह के मुताबिक, नीलकंठ चरण स्वामी के वायरल वीडियो में स्वामीनारायण संप्रदाय के पवित्र ग्रंथ 'श्रीजी संकल्पमूर्ति सद्गुरु गोपालानंद स्वामीनी वातो' के कुछ अंशों से मेल खाती हैं. इन अंशों में सद्गुरु गोपालानंद स्वामी के हवाले से कहा गया है कि वे द्वारका के दैवीय महत्व को खारिज करते हुए कहते हैं, "अब द्वारका में भगवान कैसे हो सकते हैं? अगर आप भगवान को देखना चाहते हैं, तो वडताल जाइए." यह बात द्वारका के पारंपरिक महत्व को कम करती है.
सूरत में स्वामीनारायण गुरुकुल 'श्री स्वामीनारायण गुरुकुल राजकोट संस्थान' से संबद्ध है, जो स्वामीनारायण संप्रदाय के लक्ष्मी नारायण देव गादी (वडताल गादी) के तहत संचालित होता है. वायरल पोस्ट और वीडियो के बाद से सूरत में आगजनी होने की बात भी सामने आई. 25 मार्च को द्वारका की सड़कों पर पुजारियों और अनुयायियों ने विरोध प्रदर्शन किया और इस टिप्पणी को कृष्ण के पवित्र शहर का अपमान बताया.
राज्यसभा सांसद परिमल नाथवानी ने 22 मार्च को एक सोशल मीडिया पोस्ट में इसे स्वामीनारायण संप्रदाय के साधुओं की तरफ से हिंदू देवताओं का अपमान करने की 'परेशान करने वाली प्रवृत्ति' का हिस्सा बताया. नाथवानी ने पूछा, "कोई भी द्वारका की पवित्रता पर सवाल कैसे उठा सकता है?"
Once again a sadhu of the Swaminarayan gurukul from Surat has made false and baseless remarks about Lord Dwarkadheesh. It has become a fashion to criticize Sanatan Dharma. Statements after statements from sadhus of the Swaminarayan sect are more painful and condemnable. In order… https://t.co/wsWnxFOenJ
— Parimal Nathwani (@mpparimal) March 26, 2025
गुजरात के बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने भी विवादास्पद टिप्पणी की आलोचना करते हुए इसे "विरासत पर हमला" बताया और कानूनी कार्रवाई की मांग की. प्रदर्शनकारियों ने संबंधित पुस्तक श्रीजी संकल्पमूर्ति सद्गुरु गोपालानंद स्वामीनी वातो' पर प्रतिबंध लगाने और स्वामीनारायण संप्रदाय को बहिष्कृत करने की मांग की. द्वारका मंदिर के पुजारी कपिलभाई वायदा ने भी निंदा करते हुए इस बयान को गलत बताया.
यह घटना स्वामीनारायण संप्रदाय के धर्मशास्त्र और मुख्यधारा के हिंदू धर्म के बीच चल रहे तनाव को और बढ़ा सकती है. सहजानंद स्वामी द्वारा 1801 में स्थापित यह संप्रदाय वैष्णववाद को सुधार के साथ जोड़ता है, लेकिन स्वामीनारायण को सर्वोच्च देवता मानने की वजह से विवाद पैदा हो गया.
पहले भी होता रहा है टकराव
इससे पहले भी कुछ वाकये इस विवाद में घी डाल चुके हैं, जिसके बाद राज्य में प्रदर्शन हुए थे. 2023 में, बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के सालंगपुर मंदिर ने रामायण को पलटते हुए स्वामीनारायण को प्रणाम करते हुए हनुमान का चित्र प्रदर्शित किया था. विरोध के कारण मंदिर को वह चित्र हटाना पड़ा. इससे पहले 2018 में, उसी मंदिर ने हनुमान की एक विशाल मूर्ति स्थापित की थी लेकिन बाद में उसे हटा दिया गया. हटाने के लिए स्थानीय लोगों ने विरोध करते हुए कहा कि यह सनातनी प्रतीक को अपने धर्म का बताने की कोशिश है.
द्वारका का मौजूदा मुद्दा जिसमें भक्तों को वडताल की ओर जाने की बात भी शामिल है, स्वामीनारायण की सर्वोच्चता का भाव दिखाता है जिसकी वजह से पारंपरिक हिंदू मान्यताओं के साथ इसका टकराव होता है. ऐतिहासिक रूप से, स्वामीनारायण संप्रदाय के उदय को मुख्य रूप से गुजरात के पाटीदारों ने बढ़ावा दिया जिसके बाद दूसरी जातियों के अनुयायी भी इसमें शामिल हो गए.
स्वामीनारायण का प्रभाव देश-विदेश में फैला है और इसके मंदिरों और भक्त समुदायों का वैश्विक नेटवर्क है. फिर भी, इसकी धार्मिक सर्वोच्चता को स्थापित करने की कोशिशें सनातन धर्म की मान्यताओं से टकराती रहती है. जुमाना बताती हैं कि दयानंद सरस्वती ने एक बार इसे वैदिक विचलन के रूप में खारिज कर दिया था लेकिन आज, द्वारका के भक्त इसे अहंकार के रूप में देखते हैं.
दोनों की समुदायों का अच्छा-खासा राजनीतिक असर है, दिलचस्प है कि दोनों के बीच ऐसे विवाद जल्द ही खत्म भी हो जाते हैं, लेकिन मान्यताओं के बीच की खाई और गहरी होती जाती है.