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उत्तराखंड : शहरों-सड़कों के नामों में बदलाव कैसे बन रहा हिंदुत्व के नैरेटिव का नया चैप्टर!

उत्तराखंड सरकार का कहना है कि वह हिंदू विरासत को उभारने के लिए शहरों-सड़कों का नाम बदल रही है

गृह मंत्री अमित शाह के साथ उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी
गृह मंत्री अमित शाह के साथ उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी
अपडेटेड 4 अप्रैल , 2025

उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी सरकार का कहना है कि हाल ही में शहरों, गांवों और यहां तक ​​कि सड़कों का बड़े पैमाने पर नाम बदलना जनता की भावना के अनुरूप था. सरकार के मुताबिक, इसका उद्देश्य राज्य की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को फिर से स्थापित करना था.

हालांकि विपक्षी दलों ने इसे लोगों को ध्रुवीकृत करने और राज्य में बीजेपी के दक्षिणपंथी वोट बैंक को मजबूत करने की एक राजनीतिक रणनीति करार दिया है. सरकार ने हाल ही में हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में कई जगहों के नाम बदले हैं. ये बदलाव मुख्य रूप से उन क्षेत्रों पर लागू हुए जिनके नाम इस्लामिक माने जाते रहे हैं.

यह विवाद इस बात से और गहरा गया कि नए नाम हिंदू या 'राष्ट्रवादी' हस्तियों से जुड़े हैं. हरिद्वार जिले में औरंगजेबपुर का नाम बदलकर शिवाजी नगर, गाजीवाली का नाम आर्य नगर, चांदपुर का नाम ज्योतिबा फुले नगर, मोहम्मदपुर जाट का नाम मोहनपुर जाट, खानपुर कुरसली का नाम अंबेडकर नगर, इदरीशपुर का नाम नंदपुर, खानपुर का श्रीकृष्णपुर, अकबरपुर फाजलपुर का नाम बदलकर विजयनगर, आसफनगर का नाम बदलकर देवनारायण नगर और सलेमपुर राजपूताना का नाम बदलकर शूरसेन नगर कर दिया गया है.

देहरादून जिले में मियांवाला का नाम बदलकर रामजी वाला, पीरवाला का नाम केसरी नगर, चांदपुर खुर्द का नाम पृथ्वीराज नगर और अब्दुल्लापुर का नाम दक्ष नगर कर दिया गया है. नैनीताल जिले में नवाबी रोड का नाम बदलकर अटल मार्ग किया गया है जबकि पनचक्की से आईटीआई तक की सड़क अब गुरु गोलवलकर मार्ग कहलाएगी. उधम सिंह नगर में सुल्तानपुर पट्टी नगर पालिका परिषद का नाम बदलकर कौशल्या पुरी किया जाएगा.

विपक्ष का हमला और बीजेपी का बचाव

कांग्रेस के उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि यह बीजेपी की तरफ से असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश के साथ बीजेपी सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के हमले से भी ध्यान हटाने का प्रयास है, जिन्होंने हाल ही में राज्य में भ्रष्टाचार और बड़े पैमाने पर अवैध खनन का आरोप लगाया था.

धस्माना ने उत्तराखंड में बीजेपी की 'ट्रिपल इंजन' सरकार (केंद्र, राज्य, स्थानीय निकाय) का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि विकास के पहिये जाम हो गए हैं और सत्तारूढ़ पार्टी केवल ध्रुवीकरण की राजनीति में रुचि रखती है. उन्होंने पूछा, "लव जिहाद, भूमि जिहाद, थूक जिहाद और अब गांवों और कस्बों का नाम बदलना, यही बीजेपी सरकारें कर रही हैं. नाम बदलने से क्या हासिल होगा? क्या इससे बेरोजगारी दूर होगी या महिलाओं के खिलाफ अत्याचार रुकेंगे?"

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस कदम की खिल्ली उड़ाते हुए सुझाव दिया कि उत्तराखंड का नाम बदलकर "उत्तर प्रदेश-2" कर दिया जाना चाहिए. वहीं कांग्रेस के सहारनपुर सांसद इमरान मसूद ने बीजेपी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह भ्रष्टाचार और राज्य के युवाओं के पलायन जैसी चुनौतियों की अनदेखी करते हुए केवल प्रतीक के तौर पर नाम बदलने की कवायद में लगी हुई है.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद महेंद्र भट्ट ने कहा कि 'गुलामी' और 'अत्याचार' के प्रतीक इन नामों को बदलना जरूरी हो गया था और सरकार का यह कदम जनभावनाओं से मेल खाता है. उन्होंने कहा, "बीजेपी के विचार और सिद्धांत देश की संस्कृति के अग्रदूतों की पहचान को आगे बढ़ाने वाले हैं. मुख्यमंत्री धामी ने जनभावना और देवभूमि के चरित्र का सम्मान करते हुए बदलाव किए हैं."

'दक्षिणपंथी' एजेंडा?

आलोचकों का कहना है कि हाल की घटनाओं से यह धारणा बनती है कि उत्तराखंड में बीजेपी ने धामी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान अपनी दक्षिणपंथ की राजनीति को और मजबूत किया है. पिछले दिसंबर में उत्तरकाशी में भारी पुलिस बल की मौजूदगी में हिंदुत्व समूहों की तरफ से आयोजित एक महापंचायत में प्रतिभागियों ने दशकों पुरानी एक मस्जिद के खिलाफ जिले भर में आंदोलन की घोषणा की थी. मस्जिद के बारे में उनका दावा था कि इसे अवैध रूप से बनाया गया था.

सभा में बोलने वालों ने हिंदुओं से 'लव जिहाद' और 'भूमि जिहाद' के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान करने के साथ ही राज्य में कथित जनसांख्यिकीय बदलाव पर चिंता भी जताई. सबसे बड़ी बात थी कि इस कार्यक्रम के लिए उत्तराखंड सरकार की तरफ से हाई कोर्ट को यह आश्वासन दिया गया था कि इसके लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है. हालांकि यह आश्वासन दिए जाने के कुछ ही दिनों बाद यह सभा आयोजित की गई थी.

इस तरह की बयानबाजी का समय व्यापक पैटर्न के साथ जुड़ा हुआ माना जा रहा है, खास तौर पर नवंबर 2024 में केदारनाथ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव से पहले. उस चुनाव से पहले, बीजेपी के राज्य प्रमुख भट्ट ने पार्टी के इस रुख को मजबूत किया था कि "क्षेत्र की जनसांख्यिकीय पहचान को बदलने" के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा. उन्होंने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर आरक्षण जैसे मुद्दों पर विभाजन को बढ़ावा देने और मतदाताओं को गुमराह करने का आरोप लगाया. बदले में कांग्रेस ने बीजेपी पर चुनावी फायदे के लिए हिंदू-मुस्लिम तनाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया.

जनसांख्यिकी परिवर्तन की इस कहानी ने उत्तराखंड के राजनीतिक विमर्श को तेजी से बदला है, जिसमें अब 'थूक जिहाद' जैसे शब्द जोर पकड़ रहे हैं. 'थूक जिहाद' का कांसेप्ट उत्तराखंड ने अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से लिया, जहां सरकार ने खाने में थूकने जैसे कथित सांप्रदायिक रूप से प्रेरित कृत्यों पर नकेल कसने के लिए एक अध्यादेश पारित किया है. धामी ने खुद उत्तराखंड में 'भूमि जिहाद' और 'थूक जिहाद' के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की कसम खाई, जिसके बाद राज्य ने सख्त खाद्य सुरक्षा नियम और अधिक दंड लगाने का निर्देश दिया.

इस बयानबाजी से परे, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लिए बीजेपी सरकार के प्रयास का इस्लामी संगठनों ने कड़ा विरोध किया है. उनका तर्क है कि यह कानून सीधे मुस्लिम अस्मिता को निशाना बनाता है और भारत की सांस्कृतिक विविधता को खतरे में डालता है.

यूसीसी का वादा 2022 के विधानसभा चुनावों में एक देर से उठाया गया कदम था. धामी, जिन्हें अपनी विधानसभा सीट हारने के बावजूद फिर से मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था, ने घोषणा की थी कि अगर बीजेपी फिर से चुनी गई तो वह उत्तराखंड में यूसीसी लागू करेगी. तब तक बीजेपी-कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का लग रहा था. लेकिन, धामी की घोषणा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आखिरी समय में प्रचार अभियान में शामिल होने से बीजेपी के हिंदुत्व आधार को मजबूत करने में मदद मिली.

2022 में धामी के फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद से, उनके प्रशासन पर आरोप है कि उन्होंने दक्षिणपंथी एजेंडे को और तेज़ कर दिया है. उत्तरकाशी के पुरोला जैसे जिले विवाद के केंद्र बन गए हैं. पुलिस के यह कहने के बावजूद कि हाल ही में एक अंतरधार्मिक जोड़े से जुड़े मामले का 'लव जिहाद' से कोई लेना-देना नहीं है, दक्षिणपंथी समूहों ने क्षेत्र में बसने वाले 'बाहरी लोगों' के सत्यापन की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. आंदोलन ने फौरन ही मुस्लिम विरोधी चेहरा ले लिया. इसके बाद से राज्य के अन्य हिस्सों में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन हुए, जो यह साफ करते हैं कि कैसे हिंदुत्व के नैरेटिव उत्तराखंड के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को तेज़ी से बदल रहे हैं.

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