अप्रैल की 2 तारीख को संसद और राष्ट्रीय राजनीति में पैदा हुई सियासी सरगर्मी के बीच वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को लोकसभा से मंजूरी मिल गई. केंद्र सरकार के इस फैसले से केरल के 600 से ज्यादा कैथोलिक ईसाई परिवार काफी खुश हैं.
राज्य के कैथोलिकों का मानना है कि इस विधेयक के पास होकर कानून बनने से कोच्चि के मुनंबम में उनके समुदाय को परेशान करने वाले भूमि विवाद का स्थायी समाधान हो जाएगा. दरअसल, मुनंबम में करीब 600 परिवारों ने 1960 के दशक में कोझीकोड स्थित फारूक कॉलेज की जमीनें खरीदी थीं.
पिछले कुछ समय से इस जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा कर रहा है. इसी वजह से यहां रहने वाले ईसाई लोगों को इस जमीन से बेदखल होने का डर सता रहा था, जो डर वक्फ संशोधन बिल के दोनों सदन से पास होते ही खत्म हो जाएगा.
दरअसल, केरल के वक्फ बोर्ड ने छह दशक बाद 400 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अपना दावा पेश किया है. भाजपा इस मामले में वक्फ के फैसले का मजबूती से विरोध कर रही है. बीजेपी नेता इस विवादित जमीन पर रहने वाले स्थानीय कैथोलिकों का समर्थन कर रहे हैं. प्रदेश स्तर के पार्टी नेताओं ने मुनंबम का दौरा कर यहां रहने वाले लोगों को आश्वस्त किया है कि उनकी जमीन उनसे कोई नहीं छीन पाएगा.
31 मार्च को ‘कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ ने केरल के लोकसभा सांसदों से संसद में वक्फ बिल का समर्थन करने और इस मुद्दे पर निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने की अपील की थी. इससे पहले केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल ने सांसदों से बिल के पक्ष में मतदान करने का आग्रह किया था.
केरल में करीब 65 लाख ईसाई हैं, जो राज्य की आबादी का करीब 19 फीसद है. इनमें से सिरो मालाबार चर्च, लैटिन चर्च और सिरो-मलंकरा चर्च समेत कैथोलिक ईसाई मिलकर ईसाई समुदाय की कुल आबादी के करीब 60 फीसद से ज्यादा हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर कैथोलिक ईसाइयों की संस्था ‘कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ ने मुनंबम विवाद पर विस्तार से बात करते हुए अपने बयान में कहा, "वक्फ बोर्ड ने मुनंबम में 600 से अधिक परिवारों की पैतृक आवासीय संपत्तियों को वक्फ भूमि घोषित करने के लिए वक्फ के वर्तमान कानून के कुछ प्रावधानों का इस्तेमाल किया है. पिछले तीन साल में यह मुद्दा एक जटिल कानूनी विवाद में बदल गया है. ऐसे में वक्फ कानून में संशोधन इन लोगों को एक स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है. ऐसे में लोगों के चुने प्रतिनिधियों द्वारा इस संशोधन बिल को मान्यता दी जानी चाहिए."
इसके साथ ही ‘कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ ने मीडिया को दिए बयान में ये भी कहा, "मौजूदा वक्फ कानूनों के कुछ प्रावधान भारतीय संविधान के अनुरूप नहीं हैं और देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं."
हालांकि, केरल में मदरसों और मस्जिदों का प्रबंधन करने वाली सुन्नी-शफी विद्वानों की संस्था ‘समस्त केरल जेम-इय्यातुल उलमा’ जैसे मुस्लिम संगठनों ने ‘कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ के इस बयान की निंदा की. साथ ही केरल के मुस्लिम संगठनों ने ‘कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया’ द्वारा वक्फ संशोधन के समर्थन में सांसदों से वोट करने की अपील की भी आलोचना की है.
इंडिया टुडे से बातचीत में इस संस्था के अध्यक्ष सैयद जिफरी मुथुकोया थंगल ने कहा, “कैथोलिक चर्च का यह कदम सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ेगा और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 'विभाजनकारी' एजेंडे को आगे बढ़ाएगा.” इसके आगे थंगल ने कहा, "हम वक्फ कानून में संशोधन के खिलाफ लड़ेंगे, भले ही इसे संसद द्वारा पारित कर दिया जाए. सभी लोकतांत्रिक ताकतों को वक्फ (संशोधन) विधेयक को हराने के लिए एकजुट होना चाहिए."
केरल में कैथोलिकों का एक बड़ा तबका धीरे-धीरे भाजपा के साथ जुड़ता हुआ दिखाई दे रहा है. यही वजह है कि पिछले साल केरल की त्रिशूर सीट से बीजेपी नेता सुरेश गोपी को लोकसभा चुनाव में जीत मिली थी. चर्च के समर्थन से अगले साल विधानसभा चुनाव में राज्य के तटीय क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में भाजपा के वोट आधार को मजबूती मिलने की उम्मीद है.
भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष डॉ केएस राधाकृष्णन ने वक्फ कानून संशोधन को मुनंबम के निवासियों के लिए 'मोदी की गारंटी' करार दिया, जो अपनी जमीन से बेदखल होने के खतरे का सामना कर रहे हैं. बीजेपी नेताओं ने कहा है कि मुनंबम मुद्दा हल हो जाएगा और लोग अपनी जमीन पर निश्चिंत होकर रह पाएंगे. इस बीच बीजेपी नेता राधाकृष्णन का यह बयान भी चर्चा में है कि हमने वक्फ के अधिकारों पर सर्जिकल स्ट्राइक करके इस मुद्दे को हल किया है. इससे पार्टी के इस मुद्दे को आक्रामक रूप से भुनाने की मंशा साफ झलकती है.