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2024 में सबसे ज्यादा एशियाई शेरों की अप्राकृतिक मौत गुजरात में क्यों हुई?

भारत में एशियाई शेरों की जन्म दर बढ़ने से यह उम्मीद जगती है कि अब देश में शेरों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन बढ़ती अप्राकृतिक मौतों के आंकड़े को देखकर लगता है कि प्राकृतिक आवास घटने से शेर और मनुष्यों के बीच संघर्ष बढ़ रहा है.

गुजरात में सबसे ज्यादा अप्राकृतिक वजहों से शेरों की मौत हो रही हैं (सांकेतिक तस्वीर)
गुजरात में सबसे ज्यादा अप्राकृतिक वजहों से शेरों की मौत हो रही हैं (सांकेतिक तस्वीर)
अपडेटेड 3 अप्रैल , 2025

साल 2024 में गुजरात के सौराष्ट्र से एशियाई शेरों से जुड़ी एक दुखक खबर सामने आई है. देश में एशियाई शेरों की सबसे ज्यादा संख्या यहीं है.

इस साल 27 मार्च को गुजरात विधानसभा में वन और पर्यावरण मंत्री मुलुभाई बेरा ने कहा, “यहां 2024 में 165 शेरों की मौत हो गई है. इनमें से 32 मौतें अप्राकृतिक थीं.”

संसद में पहले साझा किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षो में  2019 से 2023 तक 555 एशियाई शेरों की मौत हो चुकी है. 2019 में 113, 2020 में 124, 2021 में 105, 2022 में 110 और 2023 में 103 शेरों की मौत हुई हैं. इनमें प्राकृतिक मौतें अधिक रहीं, जो शेरों के बुढ़ापे, बीमारी या शावक मृत्यु से जुड़ी थीं.

सालाना औसतन 10-15 फीसद शेरों की अप्राकृतिक मौत होती है, जो अपने आप में चिंता का विषय है. 2023 और 2024 में गुजरात विधानसभा ने दो साल में होने वाली मौतों की संख्या 239 आंकी है, जिनमें से 29 अप्राकृतिक हैं.

सिर्फ 2024 में 165 शेरों की मौत हुई है. 2023 में 14 शेरों की अप्राकृतिक मौत हुई थी, जो 2024 में बढ़कर 32 हो गई है. सौराष्ट्र में शेर संरक्षण पर काम करने वाले एक एक्टिविस्ट बताते हैं कि सरकार ने इन अप्राकृतिक मौतों में अचानक वृद्धि की बात तो स्वीकार की है, लेकिन इसके कारणों या इनसे निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में कुछ नहीं बताया है.

पिछले कुछ सालों में सड़क पार करने के दौरान गाड़ियों से दुर्घटनाएं, खुले कुओं में डूबने, ट्रेनों से टकराने और अवैध खेतों में बाड़ की बिजली लगने से भी दर्जनों शेरों की मौत हुई हैं. पिछले सरकारी रिपोर्टों से पता चलता है कि शेरों की सबसे ज्यादा अप्राकृतिक मौतें ट्रेनों की चपेट में आने से होती हैं.

गुजरात वन विभाग और पश्चिमी रेलवे ने संयुक्त रूप से दिन के समय वन क्षेत्रों में ट्रेनों की स्पीड 30 किमी प्रति घंटे तक सीमित करने और रात के समय की आवाजाही पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया है.

सरकार ने 260.7 किलोमीटर लंबी पिपावाव-सुरेंद्रनगर रेलवे लाइन के 81.06 किलोमीटर हिस्से पर चेन-लिंक बाड़ भी लगाई है. इतना ही नहीं 75 शेरों को ट्रैक करने के लिए उनके शरीर में रेडियो-कॉलर लगाया गया है. ताकि उनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके और जोखिम वाले क्षेत्रों में जाने पर उन्हें बचाया जा सके. गुजरात के 2024-25 के बजट में वन्यजीव गलियारों में रेल दुर्घटनाओं को रोकने के लिए 40 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

पश्चिम रेलवे का दावा है कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में सौराष्ट्र में इस तरह से 104 एशियाई शेरों को बचाया गया है. रेलवे अधिकारियों के एक बयान में इस आंकड़े को उजागर किया गया, जिसमें उन घटनाओं का जिक्र किया गया है, जहां सतर्क ट्रेन चालकों ने शेरों से टकराने से बचाने के लिए समय पर ब्रेक लगा दिए थे. उदाहरण के लिए, पिछले साल 14-15 दिसंबर को अमरेली जिले में पटरियों पर शेरों के झुंड को देखने के बाद ट्रेन रोककर आठ शेरों को बचाया गया था.

ऐसी सावधानियों के बावजूद, 2024 में शेरों के अप्राकृतिक मौत की संख्या में वृद्धि प्राकृतिक आवास में कमी की वजह से शेरों और मनुष्यों के बीच बढ़ रहे संघर्ष को दिखाती है.

गुजरात में शेरों की संख्या 1913 में मात्र 20 थी, जो अब बढ़कर लगभग 700 हो गई है. हालांकि, जैसे-जैसे उनकी संख्या बढ़ती जा रही है, उनके रहने का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है. यह अब गुजरात के नौ जिलों में 30,000 वर्ग किलोमीटर तक फैल गया है. इन क्षेत्रों में जानवरों और इंसानों के बीच संघर्ष का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. राज्य में लगभग 45-55 फीसद शेर संरक्षित क्षेत्रों से बाहर रहते हैं, जो इंसानी बस्तियों में कभी-कभी आ जाते हैं.  

गुजरात में शेरों की अच्छी जन्मदर दर इनकी संख्या बढ़ने को लेकर उम्मीद जगाती है, लेकिन अप्राकृतिक मौतों की बढ़ती संख्या मनुष्यों के साथ नाजुक सह-अस्तित्व (प्राकृतिक आवास घटने से इंसान और शेरों के बीच होने वाले संघर्ष) की ओर इशारा करती है. इसके अलावा 2018 में कैनाइन डिस्टेंपर जैसी संक्रामक बीमारी से भी 25 शेरों की मौत हुई थी.  

2013 में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि गुजरात में शेरों की संख्या बढ़ने और प्राकृतिक आवास कम होने के कारण दबाव कम करने और संक्रामक बीमारी से बचाने के लिए शेरों को गुजरात के गिर वन्यजीव अभयारण्य से मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में भेजा जाए. हालांकि, कोर्ट के इस आदेश के बावजूद ऐसा नहीं किया जा सका है.

गुजरात के वन विभाग का दावा है कि गिर से करीब 100 किलोमीटर दूर बरदा वन्यजीव अभ्यारण्य में शेरों के लिए एक स्वतंत्र आबादी क्षेत्र बनाया गया है, जिसकी क्षमता 50 शेरों की है. कथित तौर पर वहां अभी करीब 17 शेर हैं.
 

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