
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UP Board) द्वारा घोषित वर्ष 2025 के बोर्ड परीक्षा परिणामों में प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों ने भी अपने हौसले और मेहनत से एक नई मिसाल कायम की है.
इस वर्ष राज्य की विभिन्न जेलों में बंद 199 बंदियों ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाएं दीं, जिनमें से 182 बंदियों ने सफलता हासिल कर ली है.
हाईस्कूल में बंदी परीक्षार्थियों का उत्तीर्ण प्रतिशत 90.11 रहा तो इंटरमीडिएट परीक्षार्थियों का उत्तीर्ण प्रतिशत 81.15 है. 32 जिलों की जेल में बंद परीक्षार्थियों ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का एग्जाम दिया. आगरा की जेल में बंद 17 परीक्षार्थियों ने हाईस्कूल की परीक्षा दी. जिसमें सभी 17 परीक्षार्थी का उत्तीर्ण प्रतिशत 100 फीसदी रहा.

वहीं इंटरमीडिएट की परीक्षा देने वाले 21 परीक्षार्थियों में 16 बंदियों ने परीक्षा पास कर ली. एटा की जेल में हाईस्कूल की परीक्षा एक ही परीक्षार्थी ने दी. वहीं इंटरमीडियट की परीक्षा भी एक ही बंदी ने दी. यहां भी पासिंग परसेंट 100 रहा.
सलाखों के भीतर किताबों पर काम -
जेल प्रशासन और शिक्षा विभाग के संयुक्त प्रयासों से पिछले कुछ वर्षों में जेलों में बंद कैदियों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए काम किया गया है. इसी पहल का परिणाम है कि बंदी न सिर्फ परीक्षा में भाग लेते हैं बल्कि हर साल कामयाबी की नई मिसाल भी कायम करते हैं.
आगरा, गाजियाबाद, मथुरा, रामपुर, बरेली और लखनऊ की जेलों में से जिन कैदियों ने परीक्षा दी, उनमें से सभी उत्तीर्ण हुए, यानी 100 प्रतिशत सफलता. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कैसे जेलों में बंद लोग अब अपराध की छाया से निकलकर शिक्षा के सहारे सलाखों से पार पाना चाहते हैं.
शिक्षा ही नहीं, पुनर्वास की भी कोशिश -
जेल अधिकारियों का कहना है कि बंदियों को शिक्षा के माध्यम से एक नई पहचान और ज़िंदगी को दोबारा शुरू करने का अवसर दिया जा रहा है. जेलों में नियमित कक्षाएं, पुस्तकालय, स्वयंसेवी शिक्षक और कभी-कभी ऑनलाइन लेक्चर्स के ज़रिए पढ़ाई करवाई जाती है.
आगरा जेल के एक अधिकारी ने बताया, "जेल का उद्देश्य सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि सुधार और पुनर्वास भी है. शिक्षा से बेहतर साधन और कोई नहीं जो एक बंदी को समाज का जिम्मेदार नागरिक बना सके."
कई बंदी आगे की पढ़ाई को तैयार
कुछ कैदियों ने अच्छे अंकों से परीक्षा पास की है और अब वे स्नातक की पढ़ाई करने की योजना बना रहे हैं. जेल प्रशासन और ओपन यूनिवर्सिटी मिलकर उन्हें अगली कक्षा में नामांकन दिलाने की प्रक्रिया में हैं. आज ही परीक्षा में पास हुए और नैनी जेल में बंद एक बंदी के बड़े भाई ने कहा, "उसने पढ़ाई इसलिए शुरू की क्योंकि उसे महसूस हुआ कि अब वक्त है खुद को बदलने का. भाई की रिहाई कब होगी, पता नहीं, लेकिन जब भी होगी, वो एक पढ़ा-लिखा इंसान बनकर निकलेगा और अपने पैरों पर खड़ा हो सकेगा हमें इसी बात की ख़ुशी है."
कठोरता से करुणा की ओर बढ़ता तंत्र
उत्तर प्रदेश की जेलों में यह बदलाव अचानक नहीं हुआ है. अक्सर अपनी व्यवस्थाओं के लिए बदनाम जेलें शिक्षा, कौशल विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर लगातार सकारात्मक काम करके ही इस तरह के नतीजे देने में सक्षम हो सकती हैं. सही दिशा में किए गए बदलाव संभव और स्थायी होते हैं इसकी झलक आज उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षाओं में पास हुए बंदियों के भीतर उपजी उम्मीदों में दिखाई दे रही है.