राजस्थान की जेलों में कैदियों की मोबाइल फोन तक बेधड़क पहुंच लंबे समय से सुरक्षा संबंधी चिंता का विषय रही है. लेकिन, जरा सोचिए जब प्रदेश की जेलों में बंद अपराधी फोन कॉल कर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनके उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा को ही धमकी देने लगे तो जेल प्रशासन और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर कितना बड़ा सवाल खड़ा होता है?
इससे आगे का सवाल यही है कि क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद इस तरह की घटनाएं थमेंगी? मार्च के आखिरी हफ्ते में पुलिस को अलग-अलग नंबरों से फोन कॉल आए, जिनमें कहा गया कि सीएम शर्मा और डिप्टी-सीएम बैरवा को जान से मार दिया जाएगा. पिछले 14 महीनों से इस तरह की धमकियां दी जा रही है, जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को फोन कर चार बार जान से मारने की धमकी दी गई है.
इन सभी फोन कॉल में पुलिस को एक समानता देखने को मिली है. ये सभी कॉल दौसा, बीकानेर और जयपुर की जेलों से की गई है. पुलिस जांच में पता चला कि जेल में बंद अपराधियों ने ही धमकी भरे सभी कॉल किए हैं.
लगातार ऐसी घटनाओं का होना ये जाहिर करता है कि जेल में बंद कैदियों तक मोबाइल फोन पहुंचने से रोकने में जेल अधिकारी असफल रहे हैं. जेलों के अंदर सार्वजनिक टेलीफोन बूथ लगाने के प्रस्ताव पर भी कुछ काम नहीं हो पाया है और ये प्रस्ताव सिर्फ कागजों पर सिमट कर रह गया.
जेल प्रशासन और सरकार ने तय किया था कि सभी जेल में टेलीफोन बूथ लगाया जाएगा और इनका उपयोग कैदियों द्वारा सख्त निगरानी में किया जाएगा. ऐसा नहीं हो पाने की वजह से कैदी जेल में फोन प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. जब एक बार जेल के अंदर फोन पहुंचता है तो कैदी इसका इस्तेमाल न केवल बाहरी दुनिया से संवाद करने के लिए, बल्कि अवैध तरीके से आपराधिक इरादे को अंजाम देने के लिए भी करते हैं.
हालांकि, सीएम और डिप्टी-सीएम को धमकी दिए जाने की खबर के बाद पुलिस ने इससे जुड़े लोगों को गिरफ्तार करने का दावा किया है. जेल के अंदर फोन और सिम कार्ड तक आसानी से पहुंच जेल प्रशासन के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर इशारा करती है.
इस घटना के सामने आने के बाद निगरानी को बढ़ावा देने के लिए पुलिस महानिदेशक (कारागार) गोविंद गुप्ता ने 29 मार्च को जेल कर्मचारियों को सम्मानित किया. कर्मचारियों के उत्साह को बढ़ाने के लिए पुरस्कार और विशेष पदोन्नति की घोषणा की गई. इसका मुख्य मकसद जेल में अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए सूचना तंत्र को मजबूत करने है.
शुरुआती जांच में एक हैरानी की बात ये सामने आई है कि जेल कर्मचारियों ने ही कैदियों और बाहरी एजेंटों के साथ मिलकर सिम कार्ड और मोबाइल फोन को जेल के अंदर पहुंचाने में मदद की थी. बीकानेर जेल के एक हालिया मामले में पुलिस का दावा है कि दो बाहरी लोगों, अशरफ और रफीक ने सिम कार्ड जेल के अंदर पहुंचाने के लिए जेल वॉर्डन जगदीश प्रसाद मीणा को 3,000 रुपए दिए थे.
ये सिम जेल में बंद कैदी मकसूद शाह के पास पहुंची, जिसने कथित तौर पर इसे विचाराधीन कैदी आदिल को मुहैया कराया, जिस पर सीएम को धमकी भरे कॉल करने का संदेह है. इस घटना के बाद मीणा, अशरफ, रफीक, आदिल और शाह को गिरफ्तार किया गया है. साथ ही जेल में तैनात चार निजी सुरक्षा गार्डों को भी निलंबित कर दिया गया.
हालांकि, इतने से जेल में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म नहीं होने वाला है. इस भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी है. जयपुर जेल में जांच के दौरान पता चला कि कैदी शहनिल शर्मा न केवल मोबाइल फोन का इस्तेमाल कर रहा था, बल्कि अन्य कैदियों को यह सुविधा देने के लिए प्रति कॉल 100 रुपए भी वसूल रहा था. उसी जेल में विक्रम सिंह नामक एक अन्य कैदी पर जेल में ही 3 लाख रुपये का कर्ज था, उसने कथित तौर पर उपमुख्यमंत्री बैरवा को धमकी भरा फोन किया था, ताकि अधिकारियों पर उसे बाहर निकालने का दबाव बनाया जा सके.
सुरक्षा में लगातार चूक के चलते राज्य सरकार को विपक्ष की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने पूछा, “जब राजस्थान के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को ही जेल के कैदियों से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, तो आम लोग कैसे सुरक्षित महसूस कर सकते हैं.” प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने एक कदम आगे बढ़कर आरोप लगाया कि भाजपा शासन में अपराधियों के हौसले बुलंद हैं.
सरकार ने अनुशासनात्मक कार्रवाई तेज कर दी है. जयपुर जेल से दो धमकी भरे कॉल आने के बाद छह जेल अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है. जोधपुर जेल में पुलिस और सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट द्वारा अचानक की गई तलाशी के दौरान दो अधिकारियों पर कार्रवाई की गई.
अधिकारी अब जेलों में मोबाइल फोन सिग्नल को ब्लॉक करने के लिए जैमर लगाने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन क्या यह तकनीकी समाधान राज्य की जेलों में व्याप्त प्रशासनिक भ्रष्टाचार को रोक पाएगी? यह अब भी एक सवाल बना हुआ है.