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एक पहल जो वायु प्रदूषण से निपटने में बिहार को सबसे आगे कर सकती है, लेकिन इस पर सवाल क्यों उठ रहे हैं?

देश में अब तक एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को मापने का काम अब तक अमूमन शहरी इलाकों में ही होता रहा है मगर बिहार सरकार ने इसे राज्य के सभी 534 प्रखंडों में शुरू कर कर दिया है

अपडेटेड 5 मार्च , 2024

बिहार देश का पहला राज्य बन गया है, जहां अब हर प्रखंड (ब्लॉक) में एयर क्वालिटी इंडेक्स (वायु गुणवत्ता सूचकांक) और मौसम के आंकड़े दर्ज हो रहे हैं. देश में अब तक एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को मापने का काम अमूमन शहरी इलाकों में ही होता रहा है.

मगर बिहार सरकार ने इसे अपने सभी 534 प्रखंडों में शुरू कर राज्य में प्रदूषण के स्तर को मापने, इसकी वजह समझने और इसका समाधान निकालने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है. यह काम उसने आईआईटी कानपुर द्वारा तैयार देसी और काफी सस्ते सेंसर आधारित उपकरण की मदद से किया है.

हालांकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड फिलहाल इन आंकड़ों को जारी नहीं करेगा, ये आंकड़े बिहार सरकार के आंतरिक इस्तेमाल के लिए ही होंगे. इसके बावजूद प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

सोमवार, चार मार्च, 2024 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के 534 एक्यूआई स्टेशनों के डैशबोर्ड का उद्धाटन किया. राज्य में पहले से 39 एक्यूआई स्टेशन काम कर रहे हैं, जिसका रियल टाइम आंकड़ा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की साइट पर जारी होता है. इस तरह अब राज्य में 573 एक्यूआई स्टेशन हो गये हैं.

बिहार सरकार का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि हाल के वर्षों में राज्य के छोटे-छोटे शहरों से वायु गुणवत्ता खराब होने के आंकड़े सामने आ रहे हैं. खास तौर पर ठंड के दिनों में सीपीसीबी द्वारा जारी रोज के आंकड़ों में टॉप टेन प्रदूषित शहरों में ज्यादातर बिहार के छोटे शहर रहते हैं. इंडिया टुडे ने इस मसले पर 2022 में विस्तृत स्टोरी की थी, जिसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है. https://www.indiatodayhindi.com/magazine/national/story/20221214-ye-dhuan-kahan-se-uthata-hai-599310-2022-12-06

बिहार में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ काम करने वाली संस्था डब्लूआरआई इंडिया की कार्यकारी निदेशक उल्का केलकर कहती हैं, "वैसे तो पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण बढ़ रहा है मगर बिहार के ग्रामीण इलाकों में इसका कुछ ज्यादा ही असर दिख रहा है. इसकी वजह यहां उन समुद्री हवाओं का अभाव है जो प्रदूषण को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं. ऐसे में ये सेंसर आधारित एक्यूआई स्टेशन काफी मददगार साबित हो सकते हैं. इनसे पता चल सकता है कि प्रदूषण किन-किन स्रोतों से आ रहा है. अलग-अलग वजहों और इलाकों के हिसाब से उसे कम करने के उपाय भी सोचे जा सकते हैं." 

सोमवार को बिहार क्लाइमेट एक्शन कॉन्क्लेव में इसकी घोषणा की गयी

बिहार सरकार ने अपनी इस महत्वपूर्ण परियोजना को आईआईटी कानपुर की मदद से आकार दिया है. इस परियोजना का नेतृत्व करने वाले आईआईटी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. सच्चिदानंद त्रिपाठी 4 मार्च को पटना में थे. इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया, "यह सब हमारे संस्थान द्वारा तैयार सेंसर बेस्ड सस्ते एक्यूआई मॉनिटरिंग उपकरण की वजह से मुमकिन हुआ है. अब तक देश के एक्यूआई स्टेशनों में विदेशों से मंगाए गए महंगे उपकरण इस्तेमाल होते हैं, जिनकी कीमत 1.4 करोड़ के आसपास होती है. जबकि हमने जो उपकरण तैयार किए हैं, उसकी लागत बमुश्किल 80-85 हजार रुपए है. जहां विदेशी उपकरण पीएम 2.5, पीएम 10 के अलावा कार्बन मोनो ऑक्साइड, ओजोन, नॉक्स और एसओटू जैसे पार्टिकुलर की सूचना देती है. हमारे उपकरण पीएम-2.5, पीएम-10 के अलावा तापमान और रिलेटिव ह्यूमिडिटी की जानकारी देते हैं."

वे आगे बताते हैं, "हमारे उपकरण सेंसर बेस्ड हैं और हम अपने संस्थान के आत्मन सेंटर के अमृत प्रोजेक्ट के तहत यह काम यूपी और बिहार दोनों राज्यों के लिए कर रहे हैं. दोनों राज्यों के हर प्रखंड में ऐसे स्टेशन लगाने की तैयारी थी. यूपी में अभी चार जिलों में काम बाकी है. बिहार में पिछले साल अप्रैल में काम शुरू हुआ था, जो अब पूरा हो चुका है. हमारे पास अब राज्य के सभी प्रखंडों से प्रदूषण के नियमित आंकड़े आ रहे हैं."

मगर इन देसी एक्यूआई मॉनिटरिंग उपकरणों के आंकड़ों को अभी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्वीकार नहीं कर रहा है. डॉ. त्रिपाठी कहते हैं," बोर्ड ने कहा है कि फिलहाल आंकड़ों का इस्तेमाल सोर्स मॉनिटरिंग (प्रदूषण के स्रोत की निगरानी) के लिए ही किया जाए." हालांकि त्रिपाठी चाहते हैं कि सीपीसीबी इन आंकड़ों को जारी करे. उनके मुताबिक अभी सीपीसीबी के जितने स्टेशनों के आंकड़े जारी होते हैं, उसमें औसतन एक सेंटर के जिम्मे 3800 वर्ग किमी का इलाका होता है, जो एक स्टेशन के बस की बात नहीं है. बिहार में अब औसतन एक सेंटर 300 वर्ग किमी में प्रदूषण की जानकारी देगा. इसकी वजह से प्रदूषण के कारणों की पहचान और उसका समाधान ज्यादा आसानी से मुमकिन होगा.

वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिसंबर, 2023 में जारी आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त देश में 516 शहरों में कुल 1447 एक्यूआई मॉनिटर स्टेशन हैं, इनमें 913 मैनुअल हैं और 516 नियमित आंकड़े उपलब्ध कराते हैं.

https://pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1986209#:~:text=Ambient%20Air%20Quality%20Network%3A%20The,28%20states%20and%207%20UTs.

सीपीसीबी द्वारा बिहार के इन नए स्टेशनों के आंकड़े स्वीकार नहीं करने की स्थिति में इन स्टेशनों द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले आंकड़ों का इस्तेमाल राज्य में हॉट स्पॉट मैनेजमेंट में होगा. आईआईटी कानपुर हर महीने इन स्टेशनों की कंपाइल रिपोर्ट बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उपलब्ध कराएगा और बोर्ड इनके आधार पर जिन इलाकों में प्रदूषण की स्थिति गंभीर है, वहां कारणों की पहचान करेगा और उनके समाधान की दिशा में काम करेगा.


त्रिपाठी बताते हैं, "हम मई 2024 से इन आंकड़ों को जारी करना शुरू कर देंगे. हम जल्द ही बिहार के प्रखंड स्तरीय अधिकारियों की ट्रेनिंग करने वाले हैं, ताकि वे इन आंकड़ों के हिसाब से अपने इलाके में प्रदूषण के नियंत्रण का विशेष अभियान चला सकें." इंडिया टुडे से बातचीत में बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डीके शुक्ला कहते हैं, "अभी तक प्रदूषण की निगरानी शहरों तक ही सीमित थी. ऐसी धारणा थी कि प्रदूषण सिर्फ शहरों में होता है. मगर हमारे एक अध्ययन में पाया गया कि बिहार के शहरों में 49 फीसदी पीएम-2.5 के कण बाहर से आते हैं. इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रदूषण का आकलन जरूरी हो गया था. इसी वजह से हमने प्रखंड स्तर पर मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए. इससे उन एयरशेड का अनुमान करना भी आसान होगा, जहां प्रदूषण सघन हो जाते हैं. हम इसके अनुरूप रणनीति भी बना सकेंगे."

सीपीसीबी द्वारा बिहार के प्रखंडों के स्टेशन के आंकड़े को स्वीकार नहीं करने के सवाल पर वे कहते हैं, "सीपीसीबी अभी तक खुद को केवल शहरों तक केंद्रित कर रहा है. उसे भी ग्रामीण इलाकों तक जाना चाहिए. इसके अलावा सीपीसीबी ने आईआईटी कानपुर के उपकरणों का परीक्षण नहीं किया है इसलिए भी उसे शायद प्रखंडों के स्टेशन के आंकड़ों को लेकर झिझक है." 

यह पूछे जाने पर कि बिहार के सिर्फ तीन जिले ही क्यों नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्रोग्राम में हैं, वे कहते हैं, "बिहार के जिलों के प्रदूषण के आंकड़े सीपीसीबी के पास हैं. वे चाहें तो और जिलों को क्लीन एयर एक्शन प्रोग्राम में शामिल कर सकते हैं. निश्चित तौर पर जिन तीन शहरों में क्लीन एयर एक्शन प्रोग्राम चल रहे हैं, उसका हमें फायदा मिल रहा है."

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