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बिहार : क्या राष्ट्रगान के नाम पर नीतीश कुमार को 'अक्षम' ठहरा पाएगा विपक्ष?

पिछले डेढ़ साल से नीतीश की दिमागी सेहत पर लगाई जा रही अटकलों ने 20 मार्च को तब बड़ा रूप ले लिया, जब बिहार के सीएम राष्ट्रगान के बीच में ही हाथ हिलाकर पड़ोस में खड़े अधिकारी से बात करते नजर आए. अब विपक्षी दलों ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया है

राष्ट्रगान के दौरान लोगों से बात करने की कोशिश करते सीएम नीतीश
राष्ट्रगान के दौरान लोगों से बात करने की कोशिश करते सीएम नीतीश
अपडेटेड 21 मार्च , 2025

तारीख मार्च 20, बिहार की राजधानी पटना में एक नए तरह के खेल 'सेपक टाकरा' के विश्वकप टूर्नामेंट का आयोजन हो रहा था. इसका उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी खुश नजर आ रहे थे. स्टेडियम में आते ही उन्होंने हाथ हिलाकर 20 देशों से आए खिलाड़ियों और दर्शकों का स्वागत किया. इसके बाद राष्ट्रगान शुरू ही हो रहा था कि उन्होंने मैदान में घूमने की इच्छा जाहिर की.

फौरन राष्ट्रगान रुकवा दिया गया और अपनी सीट पर खड़े दर्शकों को बैठने के लिए कहा गया. नीतीश पूरे मैदान का चक्कर लगाकर फिर मंच पर पहुंचे और दोबारा राष्ट्रगान शुरू करवाया गया. मगर इस बार भी वे राष्ट्रगान के बीच में ही अचानक अपने पास खड़े एक सीनियर अधिकारी की तरफ इशारा कर उनसे बात करने की कोशिश करने लगे. अधिकारी ने उन्हें याद दिलाने की कोशिश की कि राष्ट्रगान चल रहा है, लेकिन नीतीश अपनी ही धुन में थे.

नीतीश की इस भूल ने बिहार में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले विपक्ष को बैठे-बिठाए एक मुद्दा दे दिया है. 20 मार्च की शाम से ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के बड़े नेताओं के सोशल मीडिया हैंडल से यह वीडियो शेयर होने लगा. नीतीश पर राष्ट्रगान के अपमान का आरोप लगाकर उनसे माफी मांगने के लिए दबाव बनाया जाने लगा.

ये भी कहा जा रहा था कि मुख्यमंत्री अब शासन के योग्य नहीं रह गए, उन्हें कुर्सी छोड़ देनी चाहिए. यह सिलसिला अगले दिन विधान मंडल में भी जारी रहा. सदन की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही विपक्षी दल विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की अगुआई में हाथों में तख्तियां लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगे थे. भारी विरोध के कारण विधान सभा और विधान परिषद दोनों सदनों में आठ-नौ मिनट में ही कार्यवाही को स्थगित करनी पड़ी. लंच के बाद भी सदन सिर्फ चार मिनट ही चल पाई.

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, जिनसे हाल के दिनों में विधान परिषद में नीतीश कुमार की लगातार तू-तू, मैं-मैं हो रही थी, ने सदन में ही कहा, "अगर नीतीश का दिमाग ठीक नहीं है, तो वे इस्तीफा देकर अपने बेटा को मुख्यमंत्री बनाएं, या किसी और ढंग के आदमी को बनाएं."

सदन से बाहर विरोध प्रदर्शन करते तेजस्वी यादव और अन्य लोग
सदन से बाहर विरोध प्रदर्शन करते तेजस्वी यादव और अन्य लोग

वहीं तेजस्वी यादव ने सदन से बाहर संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "मुख्यमंत्री जी की उम्र हो गई, हम उनका सम्मान करते हैं. मगर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रगान का अपमान करेगा तो उसे देश नहीं सहेगा. मुख्यमंत्री जी को माफी मांगना चाहिए. हमारे प्रधानमंत्री उन्हें लाडले मुख्यमंत्री कहते हैं. वे क्यों चुप हैं? मुख्यमंत्री जी कभी महिलाओं का अपमान करते हैं, कभी युवाओं का अपमान करते हैं. हमारे माता-पिता का अपमान करते ही हैं, हमें उसकी परवाह नहीं है. लेकिन उन्होंने राष्ट्रगान का अपमान किया है, ऐसे में विपक्षी महागठबंधन की पार्टियां चुप नहीं बैठने वाली हैं."

तेजस्वी ने सलाह देते कहा, "मुख्यमंत्री को अब रिटायरमेंट ले लेना चाहिए. इससे पहले भी गांधी जी की पुण्यतिथि पर वे ताली पीटने लगे थे. उन्होंने कहा था, महिला पहले कपड़े कहां पहनती थीं. कल उन्होंने कहा, दुनिया दस साल में खत्म हो जाएगी. सदन में वे लोगों को तरह-तरह के इशारे करते हैं. अब उन्हें बिहार की जान छोड़ देनी चाहिए."

सदन से बाहर निकले एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल ईमान ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा, "यह सिर्फ कल की घटना की बात नहीं है, पहले भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं. बार-बार लोगों के सामने झुकना, पैर छूने की कोशिश करना, अपनी भाषा पर काबू नहीं रख पाना. यह दर्शाता है कि माननीय मुख्यमंत्री का मानसिक संतुलन सही नहीं है. हमारी पूरी हमदर्दी है, नीतीश कुमार ने बिहार की खिदमत की है. पर अगर पायलट का दिमाग खराब हो तो हवाई जहाज टकरा सकता है, कश्ती डूब सकती है. यह बिहार की 13 करोड़ जनता का मसला है. उनके घटक दलों का मसला है. मैंने कल ही कहा था, बहकी-बहकी बातें करता है वो, लगता है राजा बीमार बहुत है. इस बीमार राजा का हेल्थ बुलेटिन जारी होना चाहिए."

विपक्षी नेताओं के इन बयानों से जाहिर है कि अब वे राष्ट्रगान के अपमान के बहाने नीतीश कुमार के मेंटल हेल्थ को बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं. वे कहीं न कहीं यह संदेश देना चाहते हैं कि नीतीश कुमार अब शासन करने में सक्षम नहीं हैं. इस मसले को लेकर राजद सांसदों ने भी लोकसभा के बाहर प्रदर्शन किया.

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के मेंटल हेल्थ की चर्चा पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से चल रही है. इसकी शुरुआत नवंबर, 2023 में तब हुई जब बिहार विधानसभा में जाति आधारित गणना की रिपोर्ट पेश की जा रही थी. उस वक्त सेक्स एजुकेशन की चर्चा करते हुए वे अचानक यौन संबंधों की पूरी प्रक्रिया को विस्तार से कुछ इस तरह बताने लगे कि सदन के अंदर सभी सदस्य झेंप गए.

इसके महज दो-तीन दिन बाद वे सदन में ही पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी पर बुरी तरह बरस पड़े. अमूमन शांत और संयमित तरीके से अपनी बात रखने वाले नीतीश कुमार के व्यवहार में अचानक आए इस बदलाव को पहले तो लोग समझ नहीं पाए, मगर बाद के दिनों में धीरे-धीरे यह कहा जाने लगा कि नीतीश किसी ऐसे रोग के शिकार हो गए हैं, जो बढ़ती उम्र के साथ आती है. कभी-कभी उन पर इस रोग का दौरा आता है, तब वे असहज करने वाली हरकतें करने लगते हैं. दिलचस्प है कि उस वक्त सरकार में उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी जहां इन बातों को टालते थे, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उन पर हमलावर रहती थी. अब मामला उलटा है.

बहरहाल, इसके बाद भी लगातार कई ऐसे मौके आए जब नीतीश सार्वजनिक रूप से इस तरह के व्यवहार करते दिखे. इसके बाद उनके साथ हमेशा पार्टी के कुछ बड़े नेता और सरकार के सीनियर मंत्री नजर आने लगे, जो उन्हें अनियंत्रित व्यवहार करने से रोकते नजर आते हैं.

बिहार विधानमंडल के मौजूदा बजट सत्र में भी उनका व्यवहार कई दफा अनियंत्रित नजर आया. वे विधान परिषद में कई बार पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी पर बरस पड़ते हैं और उन्हें बताने लगते हैं कि उनके पति के जेल जाने की वजह से उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. वे विपक्षी दल के दूसरे नेताओं के साथ भी नाराजगी भरा बरताव करते हैं. 20 मार्च को उन्होंने एक नेता के मोबाइल इस्तेमाल करने पर उन्हें याद दिलाया कि सदन में मोबाइल प्रतिबंधित है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो अगले दस साल में दुनिया खत्म हो जाएगी.

हालांकि वे विधानमंडल में सिर्फ नाराजगी नहीं जताते हैं, इशारे भी करते हैं. विधानसभा में दो बार वे तेजस्वी यादव से इशारे-इशारे में पूछ चुके हैं कि वे क्या खा रहे हैं, दाढ़ी क्यों बढ़ी है. वे बार-बार मीडिया गैलरी की तरफ भी इशारा करते हैं, पत्रकारों से भी बात करने की कोशिशें करते हैं. वहीं विपक्षी नेता भी अपनी बातों से उन्हें सदन में उग्र बरताव करने के लिए उकसाते नजर आते हैं, ताकि उनसे कोई चूक हो और मुद्दा बने.

इन छिट-पुट घटनाओं पर विपक्षी खेमा हमेशा कुछ न कुछ टिप्पणी करता रहता है. मगर राष्ट्रगान के बहाने उसे एक बड़ा मुद्दा मिल गया है. विपक्षी नेता यह भी कह रहे हैं कि राष्ट्रगान का अपमान छोटी बात नहीं है, इसमें तीन साल तक की सजा का प्रावधान है.

हालांकि न तो नीतीश कुमार, न उनकी पार्टी और न ही उनके करीबियों की तरफ से कभी यह कहा गया है कि नीतीश मानसिक रूप से बीमार हैं. विपक्षी नेताओं की टिप्पणियों के आधार पर जब एक बार मीडिया ने उनके पुत्र निशांत से नीतीश के स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, "मेरे पिता हंड्रेड परसेंट फिट हैं." इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं, "जब बेटे ने कह दिया है कि पिता फिट हैं, तो फिर नीतीश जी के अनफिट होने का सवाल ही कहां उठता है. जवाब तो तेजस्वी जी को देना चाहिए कि उनके पिता फिट हैं या नहीं."

वहीं नीतीश के करीबी माने जाने वाले मंत्री अशोक कुमार चौधरी कहते हैं, "हिंदुस्तान में नीतीश से बड़ा कोई देशभक्त नहीं है. उनकी राष्ट्रभक्ति पर सवाल कैसे उठाया जा सकता है. चूंकि नीतीश कुमार की सफल प्रगति यात्रा और एनडीए के पांचों दलों की एकजुटता को देखकर विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं रह गया है, इसलिए वह नीतीश कुमार को नीचा गिराने की कोशिश कर रहा है. जहां तक राष्ट्रगान के दौरान हुई घटना का सवाल है, ऐसा कभी-कभी जाने-अनजाने में हो जाता है. प्रदेश की सत्ता पर नीतीश की पूरी पकड़ है. उन्होंने प्रगति यात्रा में पूरे बिहार का दौरा किया. हर जगह की सभी मांगों को पूरा किया."

बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रेम कुमार भी इसे बड़ा मुद्दा नहीं मानते. इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, "बेवजह भ्रामक बातों को फैलाया जा रहा है. विधान मंडल के सत्र को बेवजह बाधित किया जा रहा है. इनका इतिहास जंगल राज का रहा है, इन्हें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. राजद वाले जब सरकार में साथ थे तो नीतीश के मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल नहीं उठा रहे थे. अब सत्ता जाने की छटपटाहट उनमें है." वे ये भी कहते हैं कि प्रगति यात्रा में उन्होंने नीतीश कुमार को ठंड में मेहनत से काम करते देखा है. सारी बातें बेबुनियाद है.

नीतीश कुमार के मेंटल हेल्थ की चर्चा अलग है, मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना पाएगा? आने वाले विधानसभा चुनाव में विपक्षी खेमा इसके जरिए जनता को यह विश्वास दिलाने में सफल हो पाएगा कि नीतीश अब बिहार की सत्ता संभालने में सक्षम नहीं हैं? सत्ता पक्ष इस कमजोरी की काट कैसे निकालेगा? क्या बदली परिस्थितियों में बीजेपी और सहयोगी दल नीतीश के नेतृत्व को स्वीकार करती रहेगी?

राजनीतिक टिप्पणीकार अरुण अशेष कहते हैं, "बिहार के मतदाताओं का मानस अपने नायकों के द्वारा कानून का उल्लंघन करने की खबरों से नहीं बदलता. जब जेल जाने के बावजूद लालू के समर्थक उनके पक्ष में डटे रहे तो नीतीश की गलती तो बहुत छोटी है. हां, इस घटना और पिछली तमाम घटनाओं की वजह से लोगों में और उनके समर्थकों में उनके प्रति सहानुभूति का भाव जरूर पैदा हो गया है."

हालांकि, वे आगे कहते हैं, "कई लोगों को यह जरूर लगता है कि बीमार होने पर उन्हें आराम चाहिए, उन्हें बेवजह राजनीति में व्यस्त रखा जा रहा है. उनकी सेवा होनी चाहिए." सहानुभूति की बात से जदयू प्रवक्ता नीरज भी सहमत नजर आते हैं. वे कहते हैं, "विपक्षी नेता नीतीश की बीमारी की जितनी चर्चा करते हैं, नीतीश जी के समर्थकों में उन्हें लेकर सहानुभूति और बढ़ती है. हमारा वोटर और मजबूती से हमारे नेता के साथ खड़ा हो जाता है."

इस मसले पर टाटा इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र थोड़ी अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, "कल की घटना से नीतीश के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर मुहर लग गई. यह जाहिर हो गया कि उनकी मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे मुख्यमंत्री बने रहें. दिलचस्प है कि भाजपा ने ओडिशा में नवीन पटनायक के गिरते स्वास्थ्य पर हमला कर सत्ता हासिल की थी, मगर वह नीतीश पर चुप है. मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि फिलहाल नीतीश को आराम देना ही एनडीए के हित में है, क्योंकि वे जितने दिन मुख्यमंत्री रहेंगे, जब-जब सार्वजनिक मंचों पर जाएंगे, ऐसी घटनाओं की संभावना बनी रहेगी और इससे सिर्फ और सिर्फ एनडीए का नुकसान होगा. विपक्षी ने तो इसे मुद्दा बना ही लिया है, उसे लाभ ही होगा. आमलोगों के बीच भी यह चर्चा का विषय है. लोग अपने देसज अंदाज में कहने लगे हैं कि नीतीश डिरेल हो गए हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि एनडीए नीतीश कुमार के विकल्प की तलाश करे."

हालांकि जहां तक बीजेपी का सवाल है, अंदरूनी खबर यह है कि नीतीश कुमार का वीडियो वायरल होने पर कुछ देर के लिए पार्टी नेतृत्व जरूर पशोपेश में आ गया था. मगर आखिरकार कुर्मी-कुशवाहा और दलित वोटों के मद्देनजर बीजेपी ने तय किया कि वे नीतीश का नेतृत्व स्वीकार करते रहेंगे और उनका बचाव भी करते रहेंगे.

इस मसले पर जब टिप्पणी मांगी गई तो बीजेपी प्रवक्ता असितनाथ तिवारी ने कहा, "नीतीश जी को ध्यान नहीं था कि राष्ट्रगान शुरू हो गया है, जैसे ही अधिकारी ने ध्यान दिलाया वे सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए. गैरजरूरी मुद्दे को हवा देकर राजद अपने जंगलराज वाले मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना चाहता है."

ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष ने फिलहाल यह रणनीति बनाई है कि वह कांग्रेस और राजद की राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान के अपमान से जुड़ी पुरानी घटनाओं का जिक्र कर इस मसले को काउंटर करेगी. इस तरह की कोशिशें शुरू भी हो गई हैं. फिलहाल नीतीश को बदले जाने की संभावना नहीं के बराबर दिखती है.

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