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मानवी मधु कश्यप : बिहार की पहली ट्रांसवुमन दारोगा ने कैसे बदली 'ताली बजाने' की परिभाषा?

यह कहानी है बिहार की पहली ट्रांसवुमन दारोगा मानवी मधु कश्यप की, जिन्होंने कई साल उपेक्षा और अपमान सहा लेकिन फिर हासिल किया सम्मान, नौकरी और अपनी पहचान उजागर करने का साहस

मानवी मधु कश्यप, भारत की पहली ट्रांसवुमन दारोगा
मानवी मधु कश्यप, भारत की पहली ट्रांसवुमन दारोगा
अपडेटेड 13 जुलाई , 2024

"अपने गांव में जब मैं चलती थी तो लोग पीछे से ताली बजाते थे, तरह-तरह के कमेंट पास करते थे. कहते थे, तुम ऐसे चलते हो, ऐसे करते हो, तुम्हारे अंदर ये परेशानी है, वो परेशानी है. हमारी कम्युनिटी को लोग इसी निगाह से देखते हैं कि ये दूसरों की खुशी में ताली बजाने वाले लोग हैं...खैर, इन्हीं लोगों के कमेंट की वजह से 2014 में मुझे अपना गांव, अपना परिवार छोड़ना पड़ा..."

"..मगर मैंने तय कर लिया कि एक दिन मैं ऐसी सफलता हासिल करूंगी कि इन्हें मेरे लिए ताली बजानी होगी. आज वो दिन आ गया है." इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए जब बिहार की पहली ट्रांसवुमन दारोगा मानवी मधु कश्यप यह सब कह रही थीं तो उनके चेहरे पर आत्मविश्वास और खुशी तो थी ही, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति होने के कारण जीवन भर सही गई पीड़ा भी बार-बार उभर कर सामने आ रही थी.

मानवी उन तीन ट्रांसजेंडर लोगों में से एक हैं, जिन्होंने हाल ही में बिहार में घोषित दारोगा परीक्षा में सफलता हासिल की है. ट्रांसवुमन वे लोग होते हैं जिनका जन्म के समय जेंडर पुरुष का होता है लेकिन समय के साथ वे खुद को एक महिला के रूप में स्थापित करते हैं. इसके लिए एक बड़ा तबका हार्मोन थेरेपी का सहारा लेता है.

बहरहाल, इन तीन लोगों में मानवी इसलिए खास हैं, क्योंकि उन्होंने मीडिया के सामने आकर पूरे आत्मविश्वास से स्वीकार किया कि वे एक ट्रांसवुमन हैं. उनके दो अन्य ट्रांसजेंडर साथी भी इस परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं और वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते. 

हैरत की बात यह है कि मानवी पटना के जिस हॉस्टल में रहकर तैयारी कर रही थीं, वहां के लोगों को भी रिजल्ट आने के बाद पता चला कि मानवी एक ट्रांसजेंडर हैं. हालांकि मानवी कहती है, "46 लड़कियों वाले उस हॉस्टल में ज्यादातर लड़कियां अच्छी हैं और मेरी पहचान जानने के बाद भी मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार कर रही हैं. उन्होंने मुझे बधाई दी. मुझे उस हॉस्टल में रहने के लिए मजबूरन अपनी पहचान छुपानी पड़ी थी. अपनी पहचान के साथ मैं उस इलाके में जहां-जहां रहने के लिए गई, लोगों ने मेरे सामने हाथ जोड़ लिये. कहा हम एक ट्रांसजेंडर को अपने हॉस्टल में नहीं रख सकते."

वे कहती है, "रहना तो दूर ज्यादातर कोचिंग वाले भी मुझे अपनी कोचिंग में पढ़ाने के लिए तैयार नहीं थे. मैं उनसे कहती थी, क्या मेरे दूसरे लोगों के साथ बैठने से सारे लोग ट्रांसजेंडर हो जायेंगे? तो वे कहते, "नहीं हम आपको जगह नहीं दे सकते..."

"...मैं निराश हो चली थी, तब मेरी एक बहन ने मुझे रहमान सर की कोचिंग में जाने की सलाह दी. यहां आई तो उन्होंने न सिर्फ मुझे जगह दी, बल्कि मेरी इच्छा जानने के बाद मेरे माथ पर लिख दिया, "जाओ तुम एसआई बनोगी."

दारोगा की कोचिंग देने वाले गुरु रहमान के साथ मानवी
दारोगा की कोचिंग देने वाले गुरु रहमान के साथ मानवी

मानवी जिन रहमान सर की कोचिंग का जिक्र कर रही हैं, बताया जाता है कि वहां जुड़कर इस वक्त 72 ट्रांसजेंडर पुलिस की नौकरी की तैयारी कर रहे हैं. इनमें 26 दारोगा की और 46 सिपाही की नौकरी के लिए प्रयास कर रहे हैं. इन्हें तैयारी कराने वाले गुरु रहमान कहते हैं, "मानवी के आने के बाद मुझे भी काफी दिनों तक संकोच रहा कि मैं इनकी पहचान सार्वजनिक करूं या न करूं. मगर एक दिन मैंने हिम्मत करके स्टूडेंट्स को बता दिया. मुझे खुशी है कि मेरे यहां के छात्रों ने इन खास लोगों का हमेशा खास ख्याल रखा. कभी इन्हें अपमानित नहीं किया."

वैसे पुलिस की नौकरी की तैयारी करने के लिए ट्रांसजेंडरों की भीड़ इसलिए भी है, क्योंकि बिहार सरकार ने पुलिस भर्तियों में हर पांच सौ सीट पर एक ट्रांसजेंडर को चुनने का फैसला किया है. यह आरक्षण इस समुदाय को 2021 के पटना हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद मिला है. इसकी मदद से मानवी से पहले एक और ट्रांसजेंडर एक्साइज कांस्टेबल बन चुकी हैं. वे फिलहाल मद्य निषेध विभाग में कार्यरत हैं.

इस आरक्षण के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय ने बड़ी लड़ाइयां लड़ी हैं. बिहार में ट्रांसजेंडरों के हक की लड़ाई लड़ रहीं रेशमा प्रसाद, जो खुद इस समुदाय से आती हैं, कहती हैं, "निश्चित तौर पर हमें पुलिस विभाग के इस आरक्षण से काफी लाभ मिला है, मगर यह एक लंबी लड़ाई है. हम चाहते हैं कि जिस तरह पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में ट्रांसजेंडर समुदाय को सरकारी नौकरियों में एक परसेंट आरक्षण मिलता है, बिहार में भी मिले. बिहार में अभी ट्रांसजेंडरों को पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में रख दिया गया है. इससे सवर्ण जाति में जन्मे ट्रांसजेंडरों को तो थोड़ा लाभ है, बाकी किसी को कोई लाभ नहीं. अति पिछड़ा और एससी-एसटी ट्रांसजेंडरों को तो नुकसान ही है. इसलिए एक परसेंट आरक्षण हमें मिलना चाहिए."

बिहार में हो रही जाति आधारित गणना के वक्त भी रेशमा ने सभी ट्रांसजेंडरों को पिछड़ा वर्ग में गिने जाने का विरोध किया था, और वे अदालत की शरण में भी गई थीं. 

हालांकि बिहार सरकार की ट्रांसजेंडरों के लिए चलाई जा रही योजनाओं से रेशमा फिलहाल खुश नजर आती हैं. मानवी भी कहती हैं, "बिहार सरकार की योजनाओं से मुझे काफी लाभ हुआ. जब मैं पहली बार पटना आई तो मुझे सरकार द्वारा ट्रांसजेंडरों के लिए चलाये जा रहे शेल्टर होम गरिमा गृह में जगह मिली. सरकार ने मुझे जेंडर संबंधी सर्जरी के लिए 2.5 लाख रुपयों की मदद की. यहीं मैंने अपने जरूरी दस्तावेजों आधार, पैन, वोटर आईडी में अपनी नई पहचान के हिसाब से बदलाव करवाया. फिर आरक्षण का लाभ मिलने से मैं आज दारोगा बन गई हूं."

बिहार में ट्रांसजेंडरों के हक की लड़ाई लड़ रहीं रेशमा प्रसाद
बिहार में ट्रांसजेंडरों के हक की लड़ाई लड़ रहीं रेशमा प्रसाद

मानवी कहती हैं, "पटना आना मेरे लिए एक सपना था. मैं जानती थी, मेरी दुनिया यहीं से बदलेगी. 2014 में जब मजबूरन मैंने अपना गांव छोड़ा तब मैं बंगाल में अपनी बहन के घर रहने गई. वहां से मैं फिर नौकरी के लिए बेंगलुरु गई, जहां मैंने एक प्राइवेट फर्म में नौकरी की. मगर मेरा लक्ष्य पढ़ाई करते हुए सरकारी नौकरी हासिल करना और अपने पसंद की जिंदगी जीना था. इसलिए मैं वहां से पटना आ गई. हालांकि बेंगलुरु में ट्रांसजेंडरों के लिए अच्छा माहौल था, मगर मुझे वह शहर कोरोना लॉक डाउन की वजह से छोड़ना पड़ा. यह भी सही है कि मेरी जिंदगी पटना आकर बदली."

इस बार दारोगा की बहाली में ट्रांसजेंडरों के लिए पांच सीटें आरक्षित थीं, मगर इनमें तीन ट्रांसजेंडरों का ही चयन हुआ. दो सीटें खाली रह गईं. ऐसा क्यों हुआ, यह पूछने पर मानवी कहती हैं, "दरअसल जब से यह दुनिया बनी है, हम ट्रांसजेंडर अपनी असली पहचान के लिए ही संघर्ष और पलायन करते रहे हैं. हमारी कम्युनिटी के लोगों को अपमान ही मिलता है. ऐसे में सुरक्षा के चक्कर में ज्यादातर ट्रांसजेंडर पढ़ाई-लिखाई छोड़कर अपने परंपरागत पेशे को अपना लेते हैं. मगर अब लगता है कि माहौल बदलेगा. ट्रांसजेंडर लोग भी पढ़ाई पर फोकस करेंगे और फिर कोई सीट खाली नहीं रहेगी."

आखिर में मानवी कहती हैं, "मैं पुलिस विभाग में इसलिए आना चाहती थी, क्योंकि इस विभाग के साथ हमारे समुदाय का बहुत सहज रिश्ता नहीं रहा. मैं अपनी कोशिशों से इस रिश्ते को बदलना और बेहतर बनाना चाहती हूं."

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