भारत का सबसे साक्षर और जागरूक माना जाने वाला केरल इन दिनों ड्रग्स के जाल में फंसता दिखता रहा है और इसके चलते राज्य में हिंसक घटनाएं भी बढ़ गई हैं. हालात की गंभीरता का अंदाजा आबकारी मंत्री एमबी राजेश के 24 मार्च को विधानसभा में दिए गए बयान से लगाया जा सकता है, जिसमें उन्होंने बताया कि जनवरी-फरवरी में 588 बच्चों (18 साल से कम उम्र के) ने सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों से उपचार लिया.
राजेश ने बताया कि 2024 में 2,880 बच्चों को नशा मुक्ति के लिए भर्ती कराया गया, जो पिछले साल (1,982 बच्चे) से 45 फीसदी अधिक है. ड्रग्स के कारण होने वाले अपराध खौफनाक हैं. 24 फरवरी को, तिरुवनंतपुरम के उपनगर वेंजरनमूडू में एक 23 साल का युवक पुलिस के सामने आया और उसने दावा किया कि उसने अपनी दादी, मां, प्रेमिका और 13 साल के भाई सहित छह लोगों की हत्या की है. पुलिस ने बताया कि वह नशे का आदी है और ड्रग्स की खरीद-फरोख्त से बढ़ते कर्ज ने उसे अपराध करने के लिए मजबूर किया.
जनवरी 2024 और जनवरी 2025 के बीच आबकारी विभाग की तरफ से ड्रग्स की भारी खेप भी तस्करी की समस्या की ओर इशारा करती है. इस खेप में 4,370 किलो गांजा, 35 किलो एमडीएमए (जिसे आम तौर पर एक्स्टेसी के नाम से जाना जाता है), 5.8 किलो मेथामफेटामाइन, 7.7 किलो हशीश तेल, 502 ग्राम एलएसडी (लिसर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड), 264 ग्राम ब्राउन शुगर, 600 ग्राम चरस और 368 ग्राम नाइट्राजेपाम शामिल है.
साल 2024 में राज्य में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत 27,530 मामले दर्ज किए गए. साल 2023 में 30,232 और 2022 में 26,619 मामले दर्ज किए गए.
हाल ही में किए गए पुलिस सर्वे में राज्य के 472 पुलिस थाना क्षेत्रों में ड्रग्स के 1,377 तस्करी के अड्डों की पहचान की गई है, जिनमें से तिरुवनंतपुरम जिले में 235 अड्डे हैं.
केरल विधानसभा में ड्रग्स के बढ़ते इस्तेमाल पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने विजयन सरकार से कड़ी कार्रवाई की मांग की, जबकि केरल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यह पता लगाने के लिए राज्यव्यापी अध्ययन का निर्देश दिया है ड्रग्स की गिरफ्त में आने वाले बच्चों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी कैसे हो रही है.
कुछ महीने पहले, आबकारी विभाग की ओर से 62,691 लोगों पर किए गए सर्वे से पता चला कि 9 फीसदी लोगों ने 10 साल की उम्र से पहले ही ड्रग्स का सेवन शुरू कर दिया था, 70 फीसदी 15 साल की उम्र तक और 20 फीसदी 19 साल की उम्र तक ड्रग्स लेने लगे थे. लगभग 46 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने दिन में कई बार ड्रग्स लिया है; 35 फीसदी ने कहा कि उन्होंने तनाव दूर करने के लिए इनका इस्तेमाल किया; 79 फीसदी को दोस्तों और परिचितों ने और 5 फीसदी को परिवार के सदस्यों ने ड्रग्स से परिचित कराया.
आबकारी मंत्री एम.बी. राजेश कहते हैं, "केरल धीरे-धीरे साइकेडेलिक दुनिया की ओर बढ़ रहा है और ड्रग सिंडिकेट राज्य पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहा है. हम स्थानीय समुदायों और कानून लागू करने वाली एजेंसियों की निगरानी के ज़रिए ड्रग्स के खिलाफ समाज में एक प्रतिरोध लाना चाहते हैं."
एक वरिष्ठ आबकारी अधिकारी ने समस्या की बदलती प्रकृति की ओर इशारा करते हुए कहा, "युवा लोग अब सिगरेट और शराब की तुलना में सिंथेटिक ड्रग्स को प्राथमिकता देते हैं. किशोरों को 'वाहक' (ड्रग्स पहुंचाने वाले) के रूप में काम करने के बदले में मुफ़्त में ड्रग्स की आपूर्ति की जाती है."
कोच्चि स्थित प्रतिष्ठित मनोचिकित्सक डॉ. सीजे जॉन बताते हैं, "केरल में ड्रग्स का इस्तेमाल जिस तरह बढ़ रहा है, उसके चलते अब किशोर लड़कों की सख्त निगरानी की जानी चाहिए. ऐसा नहीं किया गया तो एक पूरी पीढ़ी हमेशा के लिए खो जाएगी. ज्यादातर किशोरों का उनके दोस्तों के ग्रुप में ड्रग्स से राब्ता होता है."
दरअसल आबकारी विभाग ने तिरुवनंतपुरम के कुछ स्कूलों को जांच के दायरे में लाने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर कुछ उच्च-स्तरीय संस्थानों के प्रबंधन की ओर से आपत्तियां आईं.