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क्या बिहार फिर से बाहुबल की राजनीति के दौर में जा रहा है?

पिछली सदी के आखिरी दशक के दौरान राजनीति में बाहुबल के कई पोस्टर बॉय उभरे थे जो इस लोकसभा चुनाव में भी सक्रिय नजर आ रहे हैं. कुछ खुद तो कुछ अपनी बीवियों के सहारे

अपडेटेड 14 अप्रैल , 2024

पिछली सदी के आखिरी दशक के चर्चित बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला (विजय कुमार शुक्ला) को जब राजद ने वैशाली लोकसभा सीट से टिकट दिया तो इसमें किसी को कोई हैरत नहीं हुई. क्योंकि कुछ रोज पहले ही मुन्ना शुक्ला राबड़ी देवी के आवास से लालू यादव से मिलकर निकले थे.

हां, टिकट मिलने की इस खबर से बिहार के लोगों के बीच चर्चित उस बात को और बल मिला कि क्या बिहार फिर से 90 के दशक में लौट रहा है, जब राजनीति में बाहुबलियों का जोर रहता था. इनमें आनंद मोहन, शहाबुद्दीन और पप्पू यादव के साथ मुन्ना शुक्ला जैसे लोगों का भी नाम हुआ करता था.

दिलचस्प है कि इस लोकसभा चुनाव में मुन्ना शुक्ला के साथ ये तीनों किरदार या उनसे जुड़े लोग भी किसी न किसी रूप में सक्रिय हैं और उनके साथ-साथ शेखपुरा से चर्चित बाहुबली अशोक महतो भी इस चुनाव में सक्रिय हो गए. उन्होंने चुनावी टिकट के लिए फटाफट शादी की और उनकी नवब्याहता अनीता देवी को राजद ने टिकट दे दिया. कहा जाता है कि 17 साल जेल में गुजारने के बाद हाल ही में रिहा हुआ अशोक महतो पहले अपने लिए टिकट चाह रहे थे, मगर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने उन्हें इशारा किया था कि टिकट उन्हें नहीं मिल सकता, अगर वे चाहें तो उनकी पत्नी को टिकट मिल सकता है.

ऐसे में अब तक अविवाहित रहे 62 साल के अशोक महतो ने आनन-फानन में शादी रचा ली. इस वाकये से लोगों को सीवान की सांसद रहीं कविता सिंह की कहानी याद आ गई. चुनाव लड़ने के नाम पर इसी तरह आनन-फानन में उनकी शादी 2011 में सीवान के बाहुबली अजय कुमार सिंह से हो गई.

फिर वे अपनी सास की मृत्यु के बाद खाली हुई दरौंदा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ीं और जीतीं. फिर सांसद भी बनीं. बताते हैं कि उस वक्त भी नीतीश कुमार ने अजय कुमार सिंह से कहा था कि अगर वे शादी कर लेते हैं तो उनकी पत्नी को टिकट मिल सकता है. ऐसे में बिना लग्न-मुहूर्त के अजय ने शादी कर ली थी.

इस लोकसभा चुनाव में छह बाहुबली नेता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी रूप में मैदान में हैं. इनमें आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद शिवहर से, अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी मुंगेर और अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती पूर्णिया से चुनावी मैदान में हैं. पप्पू यादव पूर्णिया से और मुन्ना शुक्ला वैशाली से चुनाव लड़ रहे हैं. इनके अलावा दिवंगत हो चुके बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब भी सीवान लोकसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं. 

लवली आनंद के साथ आनंद मोहन

लोग इस दौर की शुरुआत आनंद मोहन की जेल से रिहाई से जोड़कर देख रहे हैं. पिछले साल नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने कानून में विशेष संशोधन कर आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता तैयार किया था. इसके बाद आनंद मोहन सपरिवार नीतीश के साथ हो गए. दो बार विधायक और एक बार सांसद रह चुकीं उनकी पत्नी लवली आनंद को जदयू ने शिवहर सीट से टिकट दे दिया. इसके लिए वहां से सांसद रहीं भाजपा नेता रमा देवी का टिकट भाजपा ने काट लिया. वे मोतिहारी से एक बार और शिवहर से तीन बार सांसद रह चुकी हैं. 

अजब संयोग यह है कि रमा देवी खुद भी नब्बे के दशक के दबंग राजनेता बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रह चुकी हैं. इन्हीं बृज बिहारी प्रसाद पर लवली आनंद के पति आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी के बाहुबली नेता छोटन शुक्ला की हत्या का आरोप लगाया जाता है. इन्हीं छोटन शुक्ला की अंतिम यात्रा के जुलूस का नेतृत्व कर रहे आनंद मोहन पर डीएम कृष्णैया की हत्या का आरोप जाता है. उन पर उस भीड़ को उकसाने का आरोप सिद्ध हुआ था, जिसने कृष्णैया की पीट-पीट कर हत्या कर दी. इसी आरोप के साबित होने के बाद आनंद मोहन लंबे समय तक जेल में रहे और हाल ही में रिहा हुआ.  

यह दिलचस्प संयोग यहीं खत्म नहीं होता. इस मामले की कड़ी वैशाली से राजद का टिकट पाने वाले मुन्ना शुक्ला से भी जुड़ती है, जो छोटन शुक्ला के भाई हैं. वे रमा देवी के पति बृजबिहारी की हत्या के मामले में लंबे समय तक जेल में रहे. मुन्ना शुक्ला पर डीएम कृष्णैया की हत्या का भी आरोप लगा था, हालांकि वे इस मामले में बरी हो गए. बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के आरोप में उन्हें निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. हालांकि पटना हाईकोर्ट ने बाद में उन्हें सजामुक्त कर दिया.

मुन्ना शुक्ला तीन बार विधायक चुने गए, मगर कभी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाए. दिलचस्प तथ्य यह है कि बृजबिहारी की हत्या के बाद लालू यादव और मुन्ना शुक्ला के आपसी संबंध काफी खराब हो गए थे. मगर अब भूमिहारों को अपने पक्ष में करने में जुटे लालू-तेजस्वी और मुन्ना शुक्ला के आपसी संबंध बेहतर हुए हैं. इसके बावजूद कि मुन्ना शुक्ला ने लालू से मिलने के बाद बाहर निकल कर एक दलित जाति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी कर दी थी. इसको लेकर विवाद भी हुआ. ऐसा लगता था कि इस मसले पर शायद मुन्ना शुक्ला की उम्मीदवारी खतरे में पड़ जाएगी, मगर ऐसा नहीं हुआ.

मुन्ना शुक्ला की तरह पप्पू यादव भी लालू से मिलने गए थे. पप्पू इंडिया गठबंधन की तरफ से पूर्णिया लोकसभा का टिकट चाहते थे. मगर लालू चाहते थे कि पप्पू मधेपुरा या सुपौल से चुनाव लड़ें और राजद में शामिल हो जाएं. पप्पू किसी सूरत में पूर्णिया नहीं छोड़ना चाहते थे. ऐसे में उन्होंने अपनी जनाधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में करा लिया. हालांकि कांग्रेस ने उन्हें पूर्णिया से टिकट नहीं दिया, मगर वे खुद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से चुनाव लड़ रहे हैं.

राजद ने पप्पू के बदले पूर्णिया से एक अन्य बाहुबली अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती को टिकट दिया है. बीमा भारती रुपौली विधानसभा से विधायक और बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. अवधेश मंडल अपने इलाके के बाहुबली माने जाते हैं. कई मामलों में आरोपी हैं और जेल आते-जाते रहे हैं. बीमा भारती अब तक जदयू के साथ थीं, मगर इस चुनाव में उन्होंने जदयू छोड़कर राजद का दामन थाम लिया है. कहा जाता है कि बीमा भारती की जदयू नेता और बिहार सरकार में मंत्री लेसी सिंह से अदावत है और वे भी पूर्णियां से ही हैं. उनके दिवंगत पति बुट्टन सिंह का भी अपने इलाके में अपराध के क्षेत्र में नाम था. उन पर भी हत्या समेत कई गंभीर आरोप थे. उनकी मृत्यु के बाद राजनीति में आई लेसी सिंह धमदाहा से कई दफा विधायक और बिहार सरकार में कई बार मंत्री रह चुकी हैं.

अपने पति अवधेश मंडल के साथ बीमा भारती

इस कड़ी में आखिरी नाम शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब का आता है, जिनके पुत्र ओसामा भी आपराधिक मामलों में शामिल होने लगे हैं. उन पर रंगदारी मांगने का आरोप लगा है. शहाबुद्दीन लंबे अरसे तक राजद से जुड़े रहे. सीवान से सांसद भी रहे. उनकी पत्नी हिना शहाब को भी राजद ने तीन बार टिकट दिया मगर वे जीत नहीं पाईं. ऐसे में इस बार राजद ने अपने नेता अवध बिहारी चौधरी को चुनाव लड़ने का संकेत दे दिया, वे प्रचार अभियान भी चलाने लगे. ऐसे में हिना शहाब ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. हालांकि राजद ने सीवान सीट से अपने आधिकारिक उम्मीदवार की अब तक घोषणा नहीं की है. 

बिहार में इस तरह आधा दर्जन बाहुबली पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के चुनावी मैदान में उतरने से लोगों को लगने लगा है कि कहीं बिहार में फिर से पिछली सदी के आखिरी दशक का दौर तो वापस नहीं आएगा. इस मामले पर बात करने पर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म, बिहार से जुड़े राजीव कुमार कहते हैं, "राजनीति में अपराधीकरण का एक नया रास्ता आई ईजाद कर लिया गया है. इसमें बाहुबली कानूनी पेचीदगों से बच जाते हैं. इसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन राजनीतिक दलों की जो सबसे पहले इनको चुनती हैं और बाद में इसका इल्जाम जनता पर थोप देती हैं. जबकि विकल्प नहीं होने के कारण जनता मजबूरी में इन्हें चुनती है. इस प्रकार राजनीति में अपराध का ग्राफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से घटने के बदले बढ़ ही रहा है. 2004 से हमने देखा है कि हर लोकसभा में दागी पिछले के मुकाबले अधिक बढ़ रहे हैं."

आंकड़े भी राजीव की बातों की गवाही देते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के 40 सांसदों में से 31 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. इनमें संगीन अपराध वाले निर्वाचित सांसदों की संख्या कुल सांसदों के आधे से अधिक थी. 2014 में बिहार के 70 फीसदी निर्वाचित सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे. इनमें 50 फीसदी के खिलाफ संगीन अपराध वाले मामले थे.

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