scorecardresearch

हैदराबाद: चारमीनार के तल पर स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर को लेकर फिर क्यों उठा विवाद?

हैदराबाद में स्थित 'चारमीनार' के दक्षिण-पूर्वी मीनार के नीचे एक मंदिर है, जिसका नाम है - भाग्यलक्ष्मी मंदिर. धीरे-धीरे यह मंदिर राजनीतिक अहमियत हासिल करने लगा है

चारमीनार के तल पर स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर (फाइल फोटो)
चारमीनार के तल पर स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर (फाइल फोटो)
अपडेटेड 21 अप्रैल , 2025

हैदराबाद में स्थित 'चारमीनार' के दक्षिण-पूर्वी मीनार के नीचे एक मंदिर है, जिसका नाम है - भाग्यलक्ष्मी मंदिर. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI इस मंदिर को 'अवैध निर्माण' बताता है. लेकिन अब इस मंदिर ने विवाद खड़ा कर दिया है.

इसी फरवरी में मंदिर के संस्थापक रामचंद्र दास की बेटी बबीता शर्मा ने मंदिर को मिली दान-संपत्ति के बड़े पैमाने पर दुरुपयोग की शिकायत की थी. उन्होंने तेलंगाना एंडोमेंट्स ट्रिब्यूनल या धार्मिक संस्थान विवाद समाधान न्यायाधिकरण से की गई अपनी अपील में कुछ मांगों पर ध्यान देने का आग्रह किया था.

बबीता शर्मा ने न्यायाधिकरण से अनुरोध किया था कि वो एंडोमेंट्स विभाग के आयुक्त को मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का निर्देश जारी करे. साथ ही, मंदिर के प्रबंधन की देखरेख के लिए एक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दे.

शर्मा का मामला एक याचिका से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने खुद को मंदिर के संस्थापक परिवार के सदस्य के रूप में मान्यता देने की मांग की थी. इसके अलावा, उन्होंने एंडोमेंट्स विभाग की उस पुरानी घोषणा को रद्द करने की मांग की, जिसके तहत साल 1991 में राजमोहन दास को रामचंद्र दास के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी गई थी.

राजमोहन दास भाग्यलक्ष्मी मंदिर के संस्थापक रामचंद्र दास के शिष्य थे, और उनके गोद लिए हुए बेटे भी. बहरहाल, 1996 में बबीता शर्मा को औपचारिक रूप से संस्थापक परिवार का सदस्य घोषित किया गया, और 1998 में राजमोहन दास की मृत्यु के बाद उनकी संतान को संस्थापक परिवार के सदस्य के रूप में मान्यता दी गई.

इस फरवरी में बबीता शर्मा ने ट्रिब्यूनल के निर्देशों से नाराज होकर तेलंगाना हाई कोर्ट में इसके फैसले को चुनौती दी थी. 28 फरवरी को हाई कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के निर्देशों पर रोक लगा दी. असल में, ट्रिब्यूनल के आदेश ने उनकी मंदिर कस्टोडियन (संरक्षक) के रूप में मान्यता को रद्द कर दिया था और हिंदू एंडोमेंट्स कमिश्नर को एक नियमित कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया था.

इसके अलावा, ट्रिब्यूनल ने अंतरिम रूप में सहायक आयुक्त को मंदिर का संरक्षक नियुक्त किया था. शर्मा का तर्क है कि ये निर्देश ट्रिब्यूनल के दायरे से बाहर थे और कानूनी मिसाल के विपरीत थे. यह मामला हाई कोर्ट में लंबित है.

इस बीच, हजारों हिंदू त्योहारों के अवसर पर मंदिर में आते हैं. इसकी राजनीतिक अहमियत भी बढ़ गई है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और दूसरी अन्य पार्टियों के टिकट पर चुने गए लोग आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते रहते हैं. हाल ही में 22 मार्च को दो नवनिर्वाचित एमएलसी मंदिर में आए.

जब बंदी संजय कुमार और जी. किशन रेड्डी (जो बाद में केंद्रीय मंत्री बने) पिछली गर्मियों में लोकसभा चुनाव में जीत के बाद इसी तरह आए थे, तो संजय कुमार जो अब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हैं, ने कसम खाई थी कि अगर तेलंगाना में बीजेपी सत्ता में आती है तो वे इसे "सोने के मंदिर" में बदल देंगे. बीजेपी मंदिर से अपने राष्ट्रीय नेताओं की मौजूदगी में कार्यक्रम शुरू करने का भी प्रयास करती है.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि राज्य के मंत्री और सत्तारूढ़ कांग्रेस के अन्य नेता भी मंदिर में दर्शन करने आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे मंदिर को वैधता मिलती है. इसके अलावा, कुछ लोगों को आशंका है कि मंदिर के संरक्षक और एंडोमेंट्स विभाग को लेकर कानूनी लड़ाई सिर्फ मंदिर के अस्तित्व को कानूनी मान्यता देने के लिए है.

आरटीआई कार्यकर्ता एस.क्यू. मसूद कहते हैं, "त्योहारों के दौरान मंदिर का एक्सटेंशन (विस्तार) एक नया चलन है, जबकि चारमीनार पैदल यात्रीकरण परियोजना (सीपीपी) अधर में लटकी हुई है." सीपीपी की परिकल्पना स्मारक के आसपास एक सुरक्षित, सुलभ और सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन शहरी वातावरण बनाने, पैदल यात्री-अनुकूल बुनियादी ढांचे और ऐतिहासिक संरचनाओं के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए की गई थी.

हैदराबाद में दक्षिणपंथी समूहों ने अक्सर दावा किया है कि हैदराबाद को भाग्यनगर कहा जाता था, जबकि ASI के पास मौजूद ऐतिहासिक अभिलेखों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इसका समर्थन करता हो. यहां तक कि ASI के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो 1970 के दशक तक चारमीनार के तल पर मंदिर के वजूद की पुष्टि करता हो.

मंदिर की तरह, स्मारक के अंदर एक 'चिल्ला' भी मौजूद है जो अनधिकृत है. हालांकि, यह उस तरह से विस्तारित नहीं होता जैसा कि अब बीजेपी द्वारा प्रायोजित उत्सवों के अवसर पर भाग्यलक्ष्मी मंदिर होता है.

बीजेपी का कहना है कि हैदराबाद को भाग्यलक्ष्मी मंदिर के कारण भाग्यनगर के नाम से जाना जाता था, और कई मौकों पर उन्होंने यह साफ किया कि तेलंगाना में सत्ता में आने के बाद वे शहर का नाम बदलकर भाग्यनगर कर देंगे.

2026 की शुरुआत में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव होने हैं और बीजेपी पहली बार नगर निकाय पर कब्जा करने की संभावनाओं पर नजर गड़ाए हुए है, इसलिए नाम बदलने का अभियान तेज होने वाला है.

Advertisement
Advertisement