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बीजेपी अपनी पहले की कौन-सी 'गलती' सुधारकर इस बार बंगाल जीतने की तैयारी कर रही है?

18 अप्रैल को बीजेपी के बंगाल प्रभारी सुनील बंसल ने एक बंद कमरे की मीटिंग की, जिसमें उन्होंने आगामी बंगाल चुनाव को लेकर कई अहम फैसले लिए

सुनील बंसल, बीजेपी के बंगाल प्रभारी (फाइल फोटो)
सुनील बंसल, बीजेपी के बंगाल प्रभारी (फाइल फोटो)
अपडेटेड 24 अप्रैल , 2025

अप्रैल की 18 तारीख को पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व की बंद कमरे में बैठक हुई. इस मीटिंग ने 2026 के बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों के चयन रणनीति में संभावित बदलाव को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है.

यह बैठक बीजेपी के साल्ट लेक स्थित दफ्तर में हुई, जहां पार्टी के सभी जिला अध्यक्ष और पदाधिकारी मौजूद थे. इसमें बीजेपी के राज्य प्रभारी सुनील बंसल की कई टिप्पणियों को छोटे, लेकिन अहम संकेतों के रूप में देखा जा रहा है.

बंसल की ये टिप्पणियां बीजेपी द्वारा अपने कैंडिडेट को फाइनल करने के लिए अपनाए जा सकने वाले मानदंडों की ओर इशारा करती हैं. इन टिप्पणियों में सबसे अहम रहा जिला इकाइयों को दिया गया निर्देश. इसमें कहा गया है कि जिला इकाइयों को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दो या तीन ऐसे लोगों की पहचान करनी है जो पिछले कुछ सालों से बीजेपी से जुड़े हुए हैं.

वे ऐसे लोग होने चाहिए जो राज्य में भगवा दल के उतार-चढ़ाव के दौरान पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं, और भविष्य में भी उनके पार्टी छोड़ कर जाने की संभावना नहीं है. बंसल ने कहा कि इन लोगों को पार्टी की गतिविधियों में सबसे आगे लाया जाना चाहिए. उन्होंने सुझाव दिया कि वे एक कोर ग्रुप बना सकते हैं, जिसमें से 2026 के चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा.

बैठक में मौजूद एक सीनियर पार्टी पदाधिकारी ने कहा, "यह शायद बंसल जी का ये कहने का तरीका था कि इन नामों पर उम्मीदवारी के लिए विचार किया जाएगा. उन्होंने स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा, लेकिन संदेश साफ था- अन्य पार्टियों या यहां तक ​​कि हमारे जैसी विचारधारा का पालन करने वाले अन्य संगठनों से उम्मीदवारों को आयात करने के दिन शायद खत्म हो गए हैं. बदनामी या हाल ही में हुई पहचान से ज्यादा वफादारी और जमीनी स्तर पर जुड़ाव मायने रखेगा."

अगर इसे लागू किया जाता है, तो यह 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नजरिए से एक नाटकीय बदलाव होगा, जब पार्टी ने बड़ी संख्या में दलबदलुओं को मैदान में उतारा था. उनमें से कई हाल ही में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) से बीजेपी में आए थे.

जबकि इस रणनीति ने बीजेपी को राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरने में मदद की, जिसने 294 सीटों में से 77 सीटें जीतीं, लेकिन इसने पार्टी के भीतर अस्थिरता के बीज भी बोए. इसके कारण कई उम्मीदवारों की हार हुई, जबकि बीजेपी के बैनर तले जीतने वाले कई लोग बाद में टीएमसी में वापस चले गए. फिलहाल, बंगाल विधानसभा में बीजेपी के 65 विधायक ही हैं.

वैचारिक प्रतिबद्धता और दीर्घकालिक निष्ठा पर बंसल के जोर को एक सुधारात्मक उपाय के रूप में देखा जा रहा है, शायद यह उनके पूर्ववर्ती कैलाश विजयवर्गीय के दृष्टिकोण का एक खंडन भी है, जो 2021 के चुनाव के दौरान बीजेपी के बंगाल पर्यवेक्षक थे. राज्य इकाई में कई लोगों का मानना ​​है कि हाई-प्रोफाइल दलबदलुओं के जरिए तेजी से विस्तार पर विजयवर्गीय का ध्यान संगठनात्मक सामंजस्य और मतदाता विश्वास के मामले में पार्टी को महंगा पड़ा.

बंसल द्वारा की गई दूसरी अहम घोषणा सभी जिला अध्यक्षों को 2026 का चुनाव लड़ने से रोकना था. जबकि यह नियम कथित तौर पर पार्टी के जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा नवनिर्वाचित जिला अध्यक्षों को पहले ही बता दिया गया था, बंसल ने बैठक के दौरान साफ शब्दों में इसे दोहराया. इस तरह, उन्होंने किसी भी अस्पष्टता के लिए दरवाजा बंद कर दिया.

सूत्रों के अनुसार, इसके पीछे तर्क यह सुनिश्चित करना है कि जिला अध्यक्ष चुनाव से पहले संगठन के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करें, न कि निजी चुनावी महत्वाकांक्षाओं पर ध्यान लगाए.

एक और अहम कदम के तहत बंसल ने प्रत्येक जिला इकाई को तीन सदस्यीय समिति बनाने का निर्देश दिया, जिसमें एक राज्य महासचिव, एक सीनियर पार्टी नेता और पार्टी की आईटी टीम का एक सदस्य शामिल होंगे. ये लोग चुनाव पूर्व गतिविधियों की एक सीरीज की अगुआई करेंगे. इसी तरह की संरचना को राज्य स्तर पर दोहराया जाना है. समिति के किसी भी सदस्य को उम्मीदवारी के लिए नहीं माना जाएगा, जिससे संगठनात्मक जिम्मेदारी और चुनावी महत्वाकांक्षा के बीच एक स्पष्ट रेखा खींची जा सके.

इन तीन बिंदुओं - लंबे समय से वफादार रहे लोगों को प्राथमिकता देना, जिला अध्यक्षों को चुनावी मुकाबले से अयोग्य ठहराना और गैर-चुनावी संगठनात्मक टीमों का गठन करना - को एक साथ देखने से पता चलता है कि बीजेपी अगला बंगाल विधानसभा चुनाव बहुत अलग रणनीति के साथ लड़ने की तैयारी कर रही है.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना ​​है कि यह बीजेपी के वैचारिक मूल को मजबूत करने और इसके विधायी और संगठनात्मक ताकत को और कम होने से रोकने के उद्देश्य से एक रणनीतिक बदलाव की शुरुआत है. बैठक से जुड़े एक सीनियर नेता कहते हैं, "संदेश स्पष्ट है. हम अब दलबदल के जरिए अल्पकालिक लाभ के पीछे नहीं भाग रहे हैं. हम अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं, यानी उन प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की ओर जो बारिश हो या धूप, पार्टी के साथ खड़े रहे हैं."

अर्कमय दत्ता मजूमदार.

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