पिछले हफ्ते अहमदाबाद में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की 84वीं राष्ट्रीय सभा और कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की विस्तारित बैठक खत्म हुई. इस दौरान तीन बड़े प्रस्ताव पास किए गए. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर इनकी झलक दी: एससी/एसटी/ओबीसी के लिए 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण, जातिगत जनगणना, इन समुदायों की आबादी के हिसाब से बजट आवंटन, और निजी शिक्षण संस्थानों में इन वर्गों के लिए आरक्षण का अधिकार.
यह सभा साबरमती नदी के किनारे हुई, जहां कभी कांग्रेस रहे अध्यक्ष महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल, दोनों ने ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग छेड़ी थी. लेकिन आज का सवाल इतिहास से ज्यादा भविष्य का है. गुजरात में इस राष्ट्रीय सभा का मकसद था कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना. 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 182 सीटों में से सिर्फ 17 पर जीती थी, और पिछले दो साल में विधायकों के बीजेपी में जाने से यह संख्या 12 पर सिमट गई.
2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने देशभर में अपनी सीटें दोगुनी कीं, लेकिन गुजरात की 26 में से सिर्फ एक सीट जीती. यह जीत पिछले दशक की हार के बाद राहत की सांस थी, लेकिन इस साल फरवरी के स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन और खराब हुआ.
गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल ने माना, "हमें शहरी इलाकों में और मेहनत करनी होगी. हमारी संगठनात्मक ताकत शहरी सीटों पर कमजोर है."
सम्मेलन खत्म होने के बाद गुजरात के युवा कांग्रेसी नेता एक ऐसी रणनीति की तलाश में हैं, जिससे पार्टी महत्वाकांक्षी नौजवान वोटरों को लुभा सके. सिर्फ आजादी की लड़ाई में कांग्रेस की भूमिका या छह दशक तक देश पर राज करने की बात अब काम नहीं आएगी.
पुरानी शान पर गर्व करने वाली कांग्रेस के सामने आज एक नई चुनौती है—शहरी नौजवानों को यह भरोसा दिलाना कि वह उनके आज को बेहतर कर सकती है और उनका कल संवार सकती है. तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने सभा में कहा, "हमारा इतिहास गौरवशाली है, लेकिन आज का नौजवान वोटर जो बहुमत में है, इतिहास को ज्यादा तवज्जो नहीं देता. वह जानना चाहता है कि हम आज उनके लिए क्या करेंगे और कल कैसा बनाएंगे. हमारे प्रस्तावों को इसी कसौटी पर परखा जाएगा."
गुजरात में 40-50 विधानसभा सीटें ‘शहरी’ मानी जाती हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, गुजरात में 42.6 फीसदी शहरीकरण है, जो राष्ट्रीय औसत 31 फीसदी से कहीं ज्यादा है. लेकिन चुनौती सिर्फ शहरी वोटर नहीं हैं. बाकी आबादी की यह चाह कि वे भी शहरी भाइयों जैसी तरक्की करें, कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह बनी है.
गुजरात एक औद्योगिक राज्य है, जहां कारोबार और पैसे की चमक को सराहा जाता है. बीजेपी इस भावना को बखूबी भुनाती है. शहरी ढांचे और बड़े औद्योगिक विकास पर उसका जोर निचले आय वर्ग के लोगों को आकर्षित करता है, जो कुछ बड़े नामों की चमक में अपनी उम्मीदें देखते हैं.
लेकिन वहीं कांग्रेस का इस खाई को पाटने का वादा आंतरिक गुटबाजी और करिश्माई नेतृत्व की कमी में फंस जाता है. गुजरात कांग्रेस ने यह कमजोरी मानी है और वह केंद्रीय नेतृत्व से यह दिशा पाने की उम्मीद कर रही है कि इन नौजवानों तक कैसे पहुंचा जाए, जिन्होंने कभी कांग्रेस की सरकार नहीं देखी.
अहमदाबाद सम्मेलन में 28 पन्नों का ‘न्याय संकल्प’ प्रस्ताव पास हुआ. इसके मुख्य बिंदु थे- संवैधानिक और लोकतांत्रिक अखंडता, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रीय एकता, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) का पुनरुद्धार, और महंगाई, बेरोजगारी व भ्रष्टाचार को खत्म करने की प्रतिबद्धता.
कांग्रेस ने बीजेपी की तर्ज पर इतिहास को फिर से परिभाषित करने की कोशिश की. उसने बार-बार बताया कि सरदार पटेल और जवाहरलाल नेहरू में कोई मतभेद नहीं थे, बल्कि धर्मनिरपेक्ष भारत के साझा सपने पर आधारित आपसी सम्मान था.
गुजरात के एक मझोले कांग्रेसी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "सरदार पटेल के साथ अन्याय की बात बीजेपी का पुराना हथकंडा था, जो अब बासी हो चुका है. आज का वैश्विक और शिक्षित नौजवान वोटर आजादी की लड़ाई या शुरुआती सालों में देश निर्माण को ही कांग्रेस को बीजेपी का विकल्प मानने की वजह नहीं मानता. वह एक ऐसी पार्टी चाहता है, जो उनके भविष्य की योजना दे, उनकी जिंदगी बेहतर करे, महिलाओं के लिए सड़कों पर सुरक्षा दे, उनकी कमाई बढ़ाए और ताकत का एहसास कराए."
सम्मेलन के भाषणों और अनौपचारिक चर्चाओं से गुजरात के कांग्रेस नेताओं को जवाब मिले या नहीं, यह आने वाले महीनों में साफ होगा. पार्टी का पहला इम्तिहान शहरी स्थानीय निकाय चुनाव होंगे. शहरी मुद्दों पर शहरी वोटरों का भरोसा जीतना अभी कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है.