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'घोल' में ऐसा क्या खास है कि इसे गुजरात की राजकीय मछली घोषित किया गया है?

राजकीय मछली घोषित किए जाने के बाद अब गुजरात में 'घोल' को पकड़ने पर पाबंदी लग जाएगी

Ghol Fish
घोल मछली
अपडेटेड 8 दिसंबर , 2023

हाल ही में गुजरात ने काले धब्बों वाली क्रोकर को राजकीय मछली का दर्जा दिया है. ऐसा इसकी खासियत, ऊंची कीमत और संरक्षण की जरूरत को देखते हुए किया गया है. स्थानीय तौर यह मछली 'घोल' नाम से ज्यादा चर्चित है. इस मछली को पानी से बाहर निकालने पर यह टर्र-टर्र की आवाज निकालती है, इसलिए इसे क्रोकर नाम मिला हुआ है. 

वैसे तो गुजरात में कई कीमती और ज्यादा लोकप्रिय मछलियां मिलती हैं, जिनमें प्रोम्फ्रेट, बांबे डक और रिब्बनफिश जैसी मछलियां हैं. पर घोल में ऐसी क्या खास बात है कि उसे इन सब मछलियों से ऊपर तरजीह देते हुए राजकीय मछली बना दिया गया?

मछुआरों के लिए यह मछली किसी लॉटरी से कम नहीं है. ऊंची कीमत पर बिकने के कारण इसे समुद्री सोना (सी गोल्ड) भी कहा जाता है. मुख्य रूप से हिंद प्रशांत क्षेत्र में पाई जाने वाली इस मछली का प्राकृतिक वास फारस की खाड़ी से लेकर जापान तक है.

चीन और अन्य एशियाई देशों के बाजारों में तो इसकी पर्याप्त मांग है ही, इस मछली के मांस का निर्यात यूरोपीय और मध्य-एशियाई देशों में भी किया जाता है. गुजरात की बात करें तो एक किलो घोल मछली खरीदने के लिए आपको 5 से 15 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं. 

25 किलोग्राम तक की वजन वाली इस मछली का ड्राई एयर ब्लैडर सर्वाधिक कीमती होता है. निर्यात बाजार में इसकी कीमत 25,000 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच सकती है. ऐसा देखा गया है कि ड्राई एयर ब्लैडर की विशेष रूप से चीन में अत्यधिक मांग है. इस मछली में अन्य पोषक तत्वों के अलावा मैग्नीशियम, आयोडिन, ओमेगा-3 और आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह स्वाद के मामले में भी अलहदा स्थान रखती है. चिकित्सा और प्रसाधन के क्षेत्रों में इस मछली का इस्तेमाल होता है. 

आंखों के लिए स्वास्थ्यकर यह मछली उसकी रोशनी बनाए रखने में भी सहायता करती है. साथ ही, उम्र बढ़ने और झुर्रियों को रोकने के लिये भी घोल मछली में मौजूद कोलेजन की मात्रा काफी असरकारी होती है. इसके अलावा यह त्वचा की टोन को भी बरकरार रखती है. 

शिशुओं को यदि यह मछली नियमित रूप से खिलाई जाए तो इसमें मौजूद ओमेगा-3 की मात्रा शिशुओं की इंटेलिजेंस कोशेंट (IQ) को बेहतर कर सकती है. साथ ही, यह उनके मस्तिष्क कोशिकाओं के विकास में भी सहायता कर सकती है.

पर, इतने सारे गुणों वाली यह मछली आईयूसीएन की सूची में संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल है. गुजरात सरकार के घोल को राजकीय मछली घोषित करने के बाद इसके शिकार पर पाबंदी लगाई जा सकेगी. वर्तमान में यहां पांच शार्क प्रजातियों के शिकार पर पाबंदी है.  

हालांकि समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों का कहना है कि जाल में फंसी घोल मछली जैसे ही पानी से बाहर लाई जाती हैं, उनकी मौत हो जाती है. जबकि शार्क के साथ ऐसा नहीं होता. इसलिए शार्क को पकड़ने के बाद उसे वापस छोड़ने तक जिंदा रहती है लेकिन घोल इस मामले में उतनी भाग्यशाली नहीं है.

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