यह सत्ता विरोधी लहर का डर है या अपनी लोकप्रियता साबित करने की परीक्षा! वजह जो भी हो, लेकिन यह साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव में अपनी पारंपरिक सीट पटपड़गंज के बजाय जंगपुरा से चुनावी खम ठोकेंगे.
अगले साल की शुरुआत में प्रस्तावित दिल्ली चुनाव के लिए आप ने 9 दिसंबर को उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की है. इसमें सिसोदिया के जंगपुरा सीट से चुनाव लड़ने पर मुहर लगी. इस सूची में कुल 20 सीटें हैं जिनमें 18 पर नए चेहरे हैं. इसमें प्रसिद्ध यूपीएससी शिक्षक अवध ओझा का भी नाम है.
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोंडा के रहने वाले ओझा दो दिसंबर को आप में शामिल हुए थे. पार्टी ने उन्हें पटपड़गंज से उम्मीदवार बनाया है. लेकिन ऐसा क्यों हुआ कि अपनी पारंपरिक सीट पटपड़गंज से 2013 से लगातार तीन बार जीत हासिल करने वाले दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री सिसोदिया को सीट बदलने की नौबत आन पड़ी! यहां एक सवाल ये भी है कि ओझा को आखिर क्यों वहां से टिकट दिया गया?
दिल्ली विधानसभा के लिए हुए पिछले तीन चुनावों (2013, 2015 और 2020) में सिसोदिया ने पटपड़गंज से जीत हासिल की है. हालांकि, 2020 में हुआ मुकाबला आसान नहीं था. सिसोदिया को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता रविंदर सिंह नेगी से कड़ी टक्कर मिली, लेकिन आखिर में सिसोदिया महज 3200 वोटों से जीत हासिल करने में सफल रहे. सिसोदिया के लिए यह उनके पिछले दो प्रदर्शनों की तुलना में सांसें रोकने वाला था. उन्होंने 2015 में करीब 28,700 वोटों से और 2013 में 11,500 वोटों से पटपड़गंज सीट जीती थी.
इस बार सिसोदिया के सीट बदलने के पीछे की वजहों को खंगालते हुए मिंट ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा, "आदर्श रूप से, सिसोदिया के लिए पटपड़गंज पहली पसंद होनी चाहिए थी. लेकिन सत्ता विरोधी लहर का खतरा, हाल ही में कानूनी अड़चनें, खासकर दिल्ली आबकारी नीति मामले के संबंध में जिसमें वे जमानत पर हैं, और भ्रष्टाचार के आरोपों पर विपक्ष के आक्रामक रुख ने शायद सिसोदिया को अपनी सीट बदलने के लिए प्रेरित किया है".
आप जंगपुरा को एक "सुरक्षित" विधानसभा सीट मानती है. पार्टी को उम्मीद है कि नेहरू नगर, सनलाइट कॉलोनी, निजामुद्दीन बस्ती और दरियागंज जैसे इलाकों में दलित और मुस्लिम आबादी सिसोदिया को आसान जीत दिलाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में आप के एक नेता ने कहा, "जंगपुरा को हमेशा से एक सुरक्षित सीट माना जाता रहा है. 2020 में कालकाजी से मैदान में उतरने से पहले यह आतिशी (मौजूदा सीएम) की भी पहली पसंद थी. यहां की डेमोग्राफी (जनसांख्यिकी) में सभी वर्गों का मिश्रण है, इसके अलावा एक बड़ी सिख और मुस्लिम आबादी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में फैली हुई है. इसके अलावा, सीटों में बदलाव यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी था कि उनका (सिसोदिया) चुनावी करियर मुश्किल में न फंसे".
इधर, सिसोदिया ने भी पटपड़गंज से चुनाव नहीं लड़ने के अपने फैसले के बार में बात की. उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को लिखे अपने पत्र में इस निर्वाचन क्षेत्र को अपने राजनीतिक जीवन की जन्मभूमि करार देते हुए कहा कि उन्होंने इसे इसलिए छोड़ा क्योंकि पिछले हफ्ते पार्टी में शामिल हुए अवध ओझा ने वहां से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी.
सिसोदिया ने लिखा, "जब अवध ओझा ने पार्टी में शामिल होने का फैसला किया और पटपड़गंज से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई, तो मैं उनके नजरिए से बहुत प्रभावित हुआ. मुझे लगा कि मुझे उनकी इच्छा का सम्मान करना चाहिए कि वे अपनी यात्रा यहीं से शुरू करें."
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओझा को पटपड़गंज से चुनाव लड़ाने का फैसला सीट की बदली हुई डेमोग्राफी के आधार पर लिया गया, जिसमें पूर्वांचली समुदाय पर फोकस किया गया है. यह समुदाय शहर के मतदाताओं का करीब 42 फीसद हिस्सा है.
पूर्वांचली समुदाय दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से करीब आधे निर्वाचन क्षेत्रों में नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, जिनमें बुराड़ी, लक्ष्मी नगर और द्वारका जैसे प्रमुख इलाके शामिल हैं. पूर्वांचल इलाके में उत्तर प्रदेश का पूर्वी हिस्सा और बिहार का पश्चिमी छोर आता है.
हालांकि, दिल्ली में प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने सिसोदिया के सीट बदलने के फैसले की आलोचना की. जहां बीजेपी ने सिसोदिया को 'भगोड़ा' करार दिया और कहा कि उनकी सीट में बदलाव चुनावों से पहले आप में बेचैनी को बताता है, वहीं कांग्रेस ने कहा कि सिसोदिया को अपना निर्वाचन क्षेत्र इसलिए बदलना पड़ा क्योंकि वे पटपड़गंज के लोगों की समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं थे.
पिछले तीन चुनावों में पटपड़गंज सीट की स्थिति
2013 में आप के गठन के बाद पार्टी ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा. सिसोदिया तब पटपड़गंज सीट से उम्मीदवार थे. यह सीट पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के तहत आती है. दिसंबर 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में सिसोदिया ने अपने विरोधी और बीजेपी के उम्मीदवार नकुल भारद्वाज को 11,500 वोटों से हराया.
फरवरी, 2015 के विधानसभा चुनावों में सिसोदिया ने एक बार फिर पटपड़गंज सीट से जीत हासिल की. इस बार उन्होंने बीजेपी के विनोद कुमार बिन्नी को 28,700 मतों के अंतर से हराया. हालांकि, 2020 में हुआ पिछला चुनाव पिछले दो के मुकाबले थोड़ा मुश्किल साबित हुआ, और सिसोदिया महज 3200 वोटों से जीत दर्ज करने में सफल रहे. इस बार उन्होंने बीजेपी के ही कैंडिडेट रविंदर सिंह नेगी को हराया.
पिछले तीन चुनावों में जंगपुरा सीट की स्थिति
जंगपुरा निर्वाचन क्षेत्र को पारंपरिक रूप से सिख, पंजाबी बहुल क्षेत्र माना जाता है. सीट की बनावट को ध्यान में रखते हुए आप ने 2013 में अपने पहले चुनाव में मनिंदर सिंह धीर को मैदान में उतारा था. वे जीते और दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष भी बने. हालांकि, 2015 के चुनाव से पहले वे पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए.
इसके बाद आप ने प्रवीण देशमुख की ओर रुख किया, जिन्हें प्रवीण कुमार के नाम से जाना जाता है. वे 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के दिनों से आप से जुड़े हुए हैं और इलाके के स्वयंसेवकों की एक टीम का नेतृत्व करते हैं. 2013 में धीर के अभियान के पीछे भी वही थे. धीर को 2013 में 37 फीसद वोट मिले थे, जबकि प्रवीण ने 2015 में 48 फीसद वोट हासिल की. 2020 के चुनाव में उन्होंने आंकड़े को और बेहतर किया और इसे 50 फीसद तक बढ़ाया.
9 दिसंबर को मनीष की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद कुमार ने एक्स पर लिखा, "हम उन्हें भारी मतों से विजयी बनाएंगे. मैं इस लड़ाई में मनीष जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा हूं."