पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने केरल में नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर ने कांग्रेस का गढ़ माने जानी वाली तिरुवनंतपुरम सीट पर मौजूदा सांसद शशि थरूर को जबरदस्त टक्कर दी थी, और इसे कांटे का मुकाबला बना दिया था.
चंद्रशेखर की इस मजबूती को देखते हुए अब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया जाना बीजेपी के लिए एक नई शुरुआत का संकेत है, जहां वो 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों में मजबूत प्रदर्शन करना चाहती है. हालांकि अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए कई दूसरे दिग्गज भी मैदान में थे, लेकिन बाजी पूर्व केंद्रीय मंत्री ने मारी.
इन दावेदारों में वी. मुरलीधरन, एमटी रमेश और शोभा सुरेंद्रन जैसे बीजेपी के बड़े नाम शामिल थे, लेकिन 24 मार्च को जब अध्यक्ष पद के लिए चंद्रशेखर के नाम पर मुहर लगी तो इसके विरोध में कोई आवाज नहीं उठी.
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने चंद्रशेखर के अलावा दूसरे विकल्पों से इसलिए किनारा किया क्योंकि उनमें से कोई भी चुनावी साल में पार्टी के अलग-अलग गुटों को साथ लेकर चलने में सक्षम नहीं दिख रहा था. लेकिन यहां सवाल है कि 60 साल के चंद्रशेखर, जो एक उद्योगपति भी हैं, पार्टी की उम्मीदों पर किस हद तक खरा उतरेंगे?
इससे पहले चंद्रशेखर केरल में बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए गठबंधन के उपाध्यक्ष रह चुके हैं. पेशे से टेक्नोक्रेट चंद्रशेखर न्यूज चैनल एशियानेट न्यूज के मालिक हैं. जूपिटर कैपिटल कंपनी के स्वामित्व वाला यह राज्य में शीर्ष मलयालम न्यूज चैनल है.
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में वे तिरुवनंतपुरम सीट पर कांग्रेस के शशि थरूर से 16 हजार से कुछ अधिक वोटों से हार गए थे, और इस तरह बीजेपी वहां अपनी दूसरी लोकसभा सीट जीतते-जीतते रह गई थी. बीजेपी के लिए एकमात्र जीत सुरेश गोपी की रही, जिन्होंने त्रिशूर सीट से पार्टी का खाता खोला. यह जीत बीजेपी के लिए इसलिए ऐतिहासिक थी, क्योंकि यह पहली बार था जब पार्टी ने केरल में कोई लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया था.
बहरहाल, इस साल दिसंबर में स्थानीय निकाय चुनाव और 2026 की शुरुआत में राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में चंद्रशेखर के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. बीजेपी का लक्ष्य पहले स्थानीय चुनावों में असरदार प्रदर्शन करना होगा, और फिर 2026 के विधानसभा चुनावों में कम-से-कम 30-50 सीटें जीतना होगा. मौजूदा समय में 140 सदस्यीय विधानसभा में भगवा दल की कोई मौजूदगी नहीं है. हालांकि, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का मानना है कि चंद्रशेखर चुनावों में पार्टी की जबरदस्त अगुआई कर सकते हैं.
केरल के ही एक सीनियर बीजेपी लीडर ने इंडिया टुडे को बताया, "राजीव चंद्रशेखर के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि वे गुटबाजी से ऊपर हैं और उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं है. वे सटीकता से काम करते हैं." नकारात्मक पहलुओं पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, "चंद्रशेखर को जननेता के रूप में नहीं देखा जाता और जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं से जुड़ने की उनकी क्षमता सवालों के घेरे में होगी."
इधर, चंद्रशेखर ने बीजेपी के 'डबल इंजन' सरकार के नैरेटिव को आगे बढ़ाते हुए एक असरदार शुरुआत करने की कोशिश की. अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने राज्य के लोगों, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा, "केरल को एक विकसित राज्य बनना चाहिए ताकि राज्य के लोग समृद्ध हों. लेकिन इसके लिए एनडीए को यहां सत्ता में होना चाहिए. मेरा लक्ष्य इसे पूरा करना है, और मैं इसे पूरा करने के बाद ही पीछे हटूंगा. मैं हर समय लोगों के साथ रहूंगा."
केरल के सामाजिक और प्रशासनिक ताने-बाने में नायर समुदाय का एक प्रभावशाली स्थान है. चंद्रशेखर इसी समुदाय से आते हैं. इससे पहले राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी के. सुरेंद्रन संभाल रहे थे, जिन्होंने पांच वर्षों तक पार्टी की अगुआई की. पिछले साल त्रिशूर से बीजेपी को पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने का श्रेय भी पूर्व अध्यक्ष को ही दिया जाता है.
बहरहाल, हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी समिति के पूर्व सदस्य संदीप जी वारियर ने चंद्रशेखर की नियुक्ति को "केरल बीजेपी का कॉर्पोरेट एक्विजिशन (अधिग्रहण)" करार दिया. वारियर ने कहा, "एक मीडिया टायकून ने केरल बीजेपी को खरीद लिया है. अब पार्टी केरल में कॉर्पोरेट शैली का पालन करेगी और अपने नए प्रदेश अध्यक्ष के निर्देशों के अनुसार अवसरवादी रुख अपनाएगी."
चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन हासिल है, और अब केरल में उनकी राजनीतिक सोच-समझ की परीक्षा भी होने वाली है. बीजेपी ने पहले से ही विधानसभा चुनावों के लिए जमीनी स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है, जिसमें निर्वाचन क्षेत्रों को उनकी जीत की संभावना के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है.
भगवा दल का फोकस 50 विधानसभा सीटों को पार्टी के लिए निश्चित जीत में बदलने पर होगा. हालांकि यह काफी चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) की ताकत और कांग्रेस की अगुआई वाले विपक्षी गठबंधन की वापसी करने की जबरदस्त चाह को देखते हुए यह आसान नहीं होगा.