
"दोनों जोड़कटवा, केके पाठक और अतुल प्रसाद मिलके शिक्षा व्यवस्था के सुधार के नाम पर 50 हजार से अधिक नौकरी यूपी वालों को दे दी. इन लोगों ने बिहार के नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ किया है. इतना ही नहीं यह दो हजार करोड़ से अधिक का घोटाला है. अभी बड़ी संख्या में अवैध बहाली के मामले सामने आ रहे हैं. जिनका नाम अवैध बहाली में आ रहा है, उनको तो हटा रहे हैं, मगर जिनकी इस बहाली में भूमिका है, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? मैं इस पूरे मामले को सदन में मजबूती से उठाऊंगा."
तिरहुत स्नातक विधान पार्षद सीट पर हुए उपचुनाव में सनसनीखेज जीत दर्ज करने वाले वंशीधर ब्रजवासी ने यह टिप्पणी इंडिया टुडे से खास बातचीत में की है. इस उपचुनाव में उन्होंने बिहार के दोनों राजनीतिक गठबंधन एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवारों को तो हराया ही है, साथ ही नये राजनीतिक दल जनसुराज को भी पराजित किया है.
पहले शिक्षक रहे ब्रजवासी की जीत में उनके क्षेत्र के शिक्षकों की बड़ी भूमिका मानी जाती है. कहा जा रहा है कि चूंकि ब्रजवासी को शिक्षकों के हित में किये गये संघर्ष की वजह से जुलाई, 2024 में बर्खास्त कर दिया था, इसलिए शिक्षकों ने उन्हें बिहार के उच्च सदन में भेजकर उनका अहसान भी चुकाया है और सदन में अपनी आवाज बुलंद करने की भी जिम्मेदारी दी है.
ब्रजवासी के करीबी दीनबंधु कहते हैं, "ब्रजवासी जी को विधान परिषद में भेजना है, इसका फैसला शिक्षकों ने जुलाई महीने में ही कर लिया था. उनकी बर्खास्तगी के बाद 28 जुलाई को राज्य भर के शिक्षकों की बैठक हुई और उसमें यह तय किया गया कि सरकार ने भले ही ब्रजवासी जी को नौकरी से हटा दिया है, मगर हमलोग उन्हें एमएलसी का चुनाव लड़ायेंगे. इसे शिक्षकों ने अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया था. अगस्त महीने से ही हमलोग उनके चुनाव की तैयारियों में जुट गये, उसी का नतीजा है कि ब्रजवासी जी को यह जबरदस्त जीत मिली."
टीईटी-एसटीईटी शिक्षक संघ से जुड़े अश्विनी पांडेय भी कहते हैं, "इस चुनाव में सबसे अच्छी बात यह हुई कि राज्य में शिक्षकों के सभी गुट आपसी मतभेद मिटाकर एकजुट हो गये. पिछले चार महीनों में हमलोगों का एक ही लक्ष्य था, ब्रजवासी जी को जिताना. पिछले कुछ महीनों में जिस तरह से शिक्षकों के वाजिब अधिकारों की कटौती की जा रही थी, उन्हें बार-बार अपमानित किया जा रहा था, उन्हें जरूरी छुट्टियों से भी वंचित किया जा रहा था, ऐसे में सभी शिक्षक व्यवस्था से नाराज थे. वह सारा गुस्सा इस चुनाव में निकला."

ब्रजवासी कहते हैं, "यह जीत दरअसल उस लोक की भी जीत है, जिस पर लगातार तंत्र हावी हो रहा था. लोक ने अपनी ताकत दिखाई है और साबित किया है कि संघर्ष करने वाले लोगों की जगह भी समाज में हैं."
2005 से पंचायत शिक्षक की नौकरी करने वाले वंशीधर ब्रजवासी एक सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं. उनके पिता भी शिक्षक थे. वे निषाद जाति से संबंधित हैं. उनके परिवार में कभी कोई राजनीति में नहीं रहा. मगर शिक्षक की नौकरी में आते ही उन्होंने शिक्षकों की आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी. उन्होंने परिवर्तनकामी प्रारंभिक शिक्षक संघ की स्थापना की और नियोजित शिक्षकों के लिए वेतनमान की मांग करते हुए राजधानी पटना में तीन-चार दफा बड़े-बड़े आंदोलन किए. ये आंदोलन कई दफा 12-12 दिन चले.
दीनबंधु बताते हैं, "पिछले साल जुलाई महीने से शिक्षा विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने सुधार के नाम पर सख्ती शुरू की, तो सारे शिक्षक संघ निष्क्रिय हो गये. मगर इसी बीच शिक्षा विभाग में सुधार के नाम पर भ्रष्टाचार भी शुरू हो गया. फिर ब्रजवासी जी ने इस भ्रष्टाचार का विरोध करना शुरू कर दिया."
ब्रजवासी बताते हैं, "मुझे सबसे अधिक परेशानी इस बात से हुई कि शिक्षकों के लिए आयोजित बीपीएससी की परीक्षा को तीन घंटे विलंबित कर दिया गया, सिर्फ इसलिए कि यूपी से आनेवाली एक ट्रेन तीन घंटे की देरी से चल रही थी. प्रतियोगिता परीक्षा के इतिहास में मैंने ऐसा पहली बार देखा था."
दीनबंधु बताते हैं, "इन विरोधों की वजह से पहले इनका वेतन रोका गया, ये चुप नहीं हुए तो निलंबित कर दिया गया. फिर इनका डेपुटेशन किसी और जगह कर दिया गया. ये ज्वाइन करने नहीं गये तो फिर जुलाई, 2024 में इन्हें बर्खास्त कर दिया गया." इसके बाद शिक्षकों ने इसे अपनी लड़ाई का मुद्दा बना लिया.
जनसुराज से जुड़ते-जुड़ते रह गये
दीनबंधु बताते हैं कि जब शिक्षकों ने तय किया कि ब्रजवासी जी चुनाव लड़ेंगे तो जनसुराज की तरफ से फोन आया कि प्रशांत जी इनसे मिलना चाहते हैं. हमलोग मिलने भी गये. हमने सोचा कि जनसुराज के संगठन और आईपैक का साथ मिल जायेगा तो सुविधा रहेगी. ब्रजवासी जी पटना में आयोजित जनसुराज के युवा सम्मेलन में भी गये थे, रामगढ़ उपचुनाव में भी गये. मगर जनसुराज से उन्हें सांगठनिक सहयोग नहीं मिल रहा था, उनसे पैसे खर्च करने की उम्मीद की जा रही थी. नॉमिनेशन के पहले भी हमलोगों ने उन्हें संदेश भिजवाया था, मगर जब उधर से ग्रीन सिग्नल नहीं मिला तो हमलोगों ने निर्दलीय नॉमिनेशन कर दिया.
जनसुराज के साथ खट्टे अनुभवों के बारे में ब्रजवासी कहते हैं, "मैंने कभी जनसुराज ज्वाइन नहीं किया, प्रशांत किशोर के बुलावे पर सिर्फ इसलिए गया कि बिहार की जनता दोनों मौजूदा विकल्पों से ऊब चुकी है, ऐसे में लगा कि जनसुराज बेहतर विकल्प हो सकता है. लेकिन जब मैंने इस संगठन को नजदीक से देखा तो पाया कि यह जनसुराज नहीं धनसुराज है. प्रशांत किशोर पोलिटीशियन नहीं हैं, ये बस इवेंट मैनेजर हैं. ये फ्रॉड किशोर हैं. ये लोग बिहार के बुद्धिजीवियों की क्रेडिबिलिटी को बेचने का काम करते हैं."
दरअसल चुनाव के बीच में उन्हें जनसुराज के साथ कुछ दिनों के लिए जुड़ने का नुकसान होने लगा था. दीनबंधु बताते हैं, "ब्रजवासी जी जब जनसुराज युवा सम्मेलन में भाग लेने पटना गये थे, तो उन्होंने मीडिया से कहा था, 'शिक्षकों के आगे रास्ता ही क्या है, जनसुराज ही रास्ता है.' उस वक्त के हिसाब से उन्होंने यह कहा था. चुनाव में जब दो-तीन दिन बचे तो वाट्सएप पर इस क्लिप को चलाकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की गई कि ब्रजवासी ने जनसुराज उम्मीदवार विनायक गौतम को समर्थन दे दिया है. हमने फिर अपने स्तर पर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की. हमारे पास जनसुराज जैसा नेटवर्क तो नहीं था, मगर शिक्षकों के नेटवर्क पर हमने ब्रजवासी जी का वीडियो चलाया कि यह वीडियो काफी पहले का है. वे अभी इस बात से सहमत नहीं हैं. उन्होंने किसी का समर्थन नहीं किया, वे खुद मैदान में हैं."

बाद में ब्रजवासी की टीम ने भी एक इमोशनल वीडियो चलाया, जिसकी इस जीत में बड़ी भूमिका मानी जाती है. वे चुनाव से एक दिन पहले सोशल मीडिया पर सपरिवार लाइव हुए. उन्होंने कहा, "अपनी नौकरी की शुरुआत में मैं आपके लिए सड़कों पर उतरकर लड़ाई लड़ता था. तब उस लड़ाई में मेरा बच्चा भी मेरी गोद में होता था. अब उसी लड़ाई की वजह से मेरा पूरा परिवार सड़क पर है." यह कह कर वे रोने लगे. इसके बाद शिक्षकों का वोट पूरी तरह से उनके पक्ष में एकजुट हो गया.
जीत के बाद क्या करेंगे?
इस सवाल पर ब्रजवासी कहते हैं कि डोमिसाइल बिहार के युवाओं का बड़ा मुद्दा है. आज की तारीख में बिहार का युवा ओड़िशा में शिक्षक नहीं बन सकता. फिर बिहार के युवाओं की क्यों कुर्बानियां दे. सिर्फ इसलिए कि हमारे सीएम राष्ट्रीय नेता बनना चाहते हैं? हम इसकी लड़ाई लड़ेंगे. इसके अलावा जितने भी संविदा कर्मी है, जिनकी जवानी को यह सरकार पांच-दस हजार पर निचोड़ रही है. हम इसकी खुली छूट सरकार को नहीं देंगे. चाहे पंचायत रोजगार सेवक हो, इंदिरा आवास सहायक हो, डाटा एंट्री ऑपरेटर हो, तालीमी मरकज हो, कृषि सलाहकार हो, जितने ऐसे लोग हैं, इनकी लड़ाई होगी. क्योंकि वेलफेयर स्टेट इसकी इजाजत नहीं देता.
ब्रजवासी अपनी जीत में शिक्षकों के साथ-साथ जनवादी आंदोलनकारियों की भी भूमिका मानते हैं. वे बताते हैं कि ऐसे तमाम लोग जो संघर्ष को पसंद करते हैं, उनकी मेरी जीत में भूमिका है. क्योंकि मेरे पास न जाति का सपोर्ट था, न किसी पोलिटिकल पार्टी का. यह इन सभी लोगों की जीत है, मेरी कोई व्यक्तिगत जीत नहीं है. मैं किसी पार्टी में जाऊंगा भी नहीं, क्योंकि मेरी पहचान संघर्ष की पहचान है, मैं इसे पुख्ता करना चाहता हूं. किसी पार्टी में जाने के बाद दिल की जगह दिमाग को फिट करके बोलना पड़ता है, यह राजनीतिक मजबूरी मुझे स्वीकार्य नहीं है.
इस जीत के बाद मुजफ्फरपुर के प्रबुद्ध लोग ब्रजवासी में बड़ी संभावनाएं देखने लगे हैं. ऐसे ही एक सामाजिक कार्यकर्ता ब्रजेश कहते हैं, "डोमिसाइल को लेकर जिस तरह झारखंड में जयराम महतो सनसनी की तरह सफल हुआ, ब्रजवासी भी उसी तरह हमारे सामने आये हैं. उनके तेवर कमाल के हैं, वे निषाद जातीय समूह के हैं, जिनकी राजनीतिक पहचान बन रही है. पढ़े-लिखे भी हैं. ये उत्तर बिहार की राजनीति की नई उम्मीद बन सकते हैं."
इस मसले पर ब्रजवासी कहते हैं, "मुझे जनवाद को साकार करना है. बिहार के जितने संघर्ष करने वाले लोग हैं, जिन्हें राजनीति के व्यापारियों ने इसे बेचने का जो फार्मूला बना लिया है, उसको बेकार करना है और राजनीति में संघर्ष करने वाले लोगों को स्थापित करने के लिए मुझसे जो होगा करूंगा. रोटी के लिए, सम्मान के लिए कोई कहीं लड़ेगा तो ब्रजवासी उसके साथ खड़ा रहेगा."
वे इस गीत को गाकर अपनी बात खत्म करते हैं,
जब तक रोटी के प्रश्नों पर
पड़ा रहेगा भारी पत्थर,
मेंहदी नहीं रचाना तुम.
मेरी गली में खुशी खोजने
कभी अगर जो आना तुम...