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बिहार : नीतीश के मंत्रिमंडल में विस्तार के बहाने क्या बीजेपी उन्हीं के वोटबैंक में सेंध लगाने जा रही है?

26 फरवरी को बिहार में एनडीए सरकार में तीसरा कैबिनेट विस्तार हुआ, जिसमें 7 नए मंत्री बने. बीजेपी ने इनमें से तीन मंत्री कुर्मी, कुशवाहा और अति पिछड़ी जाति से बनाकर लोगों को चौंका दिया है

26 फरवरी को बिहार में एनडीए सरकार के कैबिनेट का तीसरा विस्तार हुआ
26 फरवरी को बिहार में एनडीए सरकार के कैबिनेट का तीसरा विस्तार हुआ
अपडेटेड 28 फ़रवरी , 2025

फरवरी की 26 तारीख को बिहार में 13 महीने पुरानी एनडीए सरकार में तीसरा कैबिनेट विस्तार हुआ. इसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के छह नए मंत्री बने हैं. एक अन्य मंत्री बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के इस्तीफे के बाद खाली हुई जगह पर बने. 26 फरवरी को इन सभी सात मंत्रियों ने शपथ ली.

बिहार सरकार के मंत्रिमंडल में अब 36 मंत्री हैं, जिनमें बीजेपी के 21, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 13 और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के एक और एक निर्दलीय मंत्री शामिल हैं. इस तरह इस साल अक्टूबर-नवंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से आठ महीने पहले बिहार सरकार में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या जदयू के मुकाबले डेढ़ गुनी हो गई है.

26 फरवरी की सुबह जब मंत्रिमंडल के विस्तार की खबरें सामने आ रही थीं तब ये कयास लगाए जा रहे थे कि सात खाली जगहों में पांच बीजेपी और दो जदयू के खाते में जा सकती हैं. मगर सात के सात मंत्री बीजेपी के ही होंगे, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.

इस विस्तार में बीजेपी ने जहां अपने कोर वोटर ब्राह्मण, बनिया और अन्य सवर्णों को तरजीह दी, वहीं सात में से तीन मंत्री कुर्मी, कुशवाहा (बिहार की राजनीति में जातियों का लव-कुश समीकरण) और अति पिछड़ी जाति से बनाकर लोगों को चौंकाया, क्योंकि पारम्परिक रूप से ये तीन जातियां जदयू की कोर वोटर मानी जाती हैं. ऐसे में यह भी चर्चा है कि क्या बीजेपी अपने सहयोगी जदयू के आधार वोट में भी सेंधमारी करने की कोशिश कर रही है?

इस मंत्रिमंडल में सबसे चौंकाने वाला नाम अमनौर के विधायक कृष्ण कुमार मंटू उर्फ मंटू पटेल का है. महज एक हफ्ता पहले पटेल की अगुआई में पटना के मिलर स्कूल ग्राउंड में कुर्मी एकता रैली का आयोजन हुआ था. 19 फरवरी को हुई इस रैली में हालांकि कोई बड़ा कुर्मी नेता तो नहीं आया था, मगर राज्य भर से जो कुर्मी जाति के लोग पहुंचे थे उन्होंने मंटू पटेल को भावी मुख्यमंत्री बताया था.

मंच पर कुछ वक्ताओं ने भी ऐसी ही बातें कहीं. यह भी कहा गया कि नीतीश कुमार के बाद मंटू पटेल ही कुर्मी जाति के ऐसे नेता हैं, जो जाति के लोगों को जोड़ कर रख सकते हैं. पटेल ने हालांकि अपने संबोधन में कहा कि वे नीतीश की विरासत को आगे बढ़ाएंगे.

विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी ने मंटू पटेल के बहाने एक तरह से कुर्मी जाति की राजनीतिक विरासत पर अपनी दावेदारी पेश की है. नीतीश की बढ़ती उम्र और बीमारी की खबरों के बीच जहां उनके पुत्र निशांत कुमार राजनीति में सक्रिय होते दिख रहे हैं, वहीं बीजेपी यह भी जताने की कोशिश कर रही है कि वह भी कुर्मियों की इच्छाओ-आकांक्षाओं को लेकर संवेदनशील है.

बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषक रमाकांत चंदन कहते हैं, "जब बीजेपी नीतीश के साथ नहीं थी, तब पार्टी ने सम्राट चौधरी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाकर 'लव-कुश' वोटरों पर अपनी दावेदारी पेश कर ही दी थी. इसके अलावा पार्टी ने उसी समय शंभू पटेल और भीम सिंह जैसे नेताओं को राज्यसभा भी भेजा था. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने कुर्मी जाति के मंटू पटेल और कुशवाहा जाति के सुनील कुमार को मंत्री बनाकर अपनी उसी पहल को विस्तार दिया है."

दरअसल कुर्मी, कुशवाहा, अति पिछड़ा वर्ग और ग्रामीण महिलाओं के जरिए नीतीश कुमार ने बिहार में अपना वोट बैंक तैयार किया है. मगर इस बार के मंत्रिमंडल विस्तार में जहां बीजेपी ने अपने कोर समर्थक सवर्ण और वैश्य समुदाय के चार लोगों जिवेश मिश्रा, राजू सिंह, संजय सरावगी और मोती लाल प्रसाद को मंत्री बनाया है. वहीं कुर्मी मंटू पटेल और कुशवाहा सुनील कुमार के साथ-साथ अति पिछड़ा विजय कुमार मंडल को भी मंत्री बनाया है.

मगर जब बीजेपी नीतीश कुमार के विरोध में थी तब पार्टी की उनके वोट बैंक में सेंधमारी तो समझ में आती है, अभी तो नीतीश एनडीए में हैं, फिर क्यों बीजेपी नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है? इस सवाल के जवाब में रमाकांत कहते हैं, "देखिए बीजेपी यह समझ रही है कि यह नीतीश का अंतिम कार्यकाल है. ऐसे में वो उनके वोटबैंक में अपनी दावेदारी तो पेश करेगी न, ताकि यह वोट बैंक देर-सवेर बीजेपी के खाते में शिफ्ट हो जाए. नीतीश कुमार के बाद यह वोट बैंक छिटके नहीं, कहीं इधर-उधर न जाए, इसकी तैयारी बीजेपी ने शुरू कर दी है."

हालांकि बीजेपी ने जहां नीतीश कुमार के आधार वोट बैंक पर अपनी दावेदारी पेश करनी शुरू कर दी है, वहीं जदयू के कुछ बड़े कुर्मी नेता इस कोशिश में हैं कि नीतीश के बाद भी उनका आधार वोट बैंक जदयू के साथ जुड़ा रहे. इसी कोशिश के तहत पहले कुर्मी जाति के ही मनीष कुमार वर्मा जैसे नीतीश के करीबी पूर्व आईएएस अधिकारी को पार्टी में बड़ी भूमिका दी गई और फिर अब नीतीश के पुत्र निशांत को राजनीति में सक्रिय किया जा रहा है.

श्रवण कुमार जो पार्टी में कुर्मी जाति के बड़े नेता और राज्य सरकार में मंत्री हैं, इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, "अभी नीतीश के विचारों पर हम पार्टी को उनके बाद भी बीस साल और चला सकते हैं." यह इस बात का साफ इशारा है कि पार्टी के कुर्मी नेता जदयू को आसानी से टूटने नहीं देंगे और नीतीश कुमार द्वारा तैयार किए गए पार्टी के आधार वोट को आसानी से नहीं गंवाएंगे.

हालांकि बीजेपी इन आरोपों से इनकार करती है. पार्टी के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी कहते हैं, "यह एनडीए का मंत्रिमंडल है और इसके मुखिया नीतीश कुमार हैं. मंत्रिमंडल को उन्होंने अपने हिसाब से विस्तार दिया है. यह उनके अधिकार का विषय है. इसे और किसी भी रूप में नहीं देखा जाना चाहिए."

इस मंत्रिमंडल विस्तार के बाद एक सवाल यह भी उठ रहा है कि सातों मंत्री बीजेपी के बनने का मतलब कहीं यह तो नहीं कि नीतीश बीजेपी के दबाव में हैं, क्योंकि अब मंत्रिमंडल में 36 में से 21 मंत्री बीजेपी के हैं और जदयू के सिर्फ 13 मंत्री हैं. हालांकि इस सवाल के जवाब में जानकार कहते हैं कि यह दबाव से अधिक इस बात का संकेत है कि नीतीश के खाते में जो दो मंत्री आ सकते थे, उन्हें शामिल कर वे पार्टी में असंतोष को बढ़ावा देना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने सारी की सारी सीटें बीजेपी को दे दी.

रमाकांत चंदन कहते हैं, "जदयू दो मंत्री बना सकती थी. मगर अभी जो जदयू के मंत्रिमंडल का आकार है उसमें उसने कमोबेश सभी जातियों को शामिल कर लिया है. अगर पार्टी किसी दो व्यक्ति को इसमें शामिल करती तो ताना बाना गड़बड़ा सकता था. इसलिए चुनाव से पहले कोई असंतोष न उभरे नीतीश ने दोनों मंत्री पद बीजेपी को देने का फैसला किया."

बहरहाल, इस मंत्रिमंडल विस्तार से एक बड़ा संकेत यह भी सामने आ रहा है कि अब चुनाव समय से ही होंगे. दिल्ली चुनाव में जीत, नीतीश की प्रगति यात्रा की समाप्ति और महाकुंभ मेले के बहाने हुए हिंदुत्व के उभार के बाद कई जानकार यह कहने लगे थे कि हो सकता है एनडीए इस सकारात्मक माहौल को भुनाने के लिए जल्द चुनाव करा ले. मगर अब जो नए मंत्री बने हैं उन्हें कुछ तो काम करने का वक्त चाहिए. इसलिए यह लगभग तय है कि चुनाव इस साल अक्तूबर-नवंबर में समय पर ही होंगे.

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