
राजस्थान की भरतपुर रियासत. दो बार दिल्ली फतह करने वाली इस रियासत का अतीत चाहे कितना भी अनूठा और स्वर्णिम रहा हो, लेकिन वर्तमान काफी दागदार साबित हो रहा है. भरतपुर रियासत की आपसी कलह और जंग अब किले की दीवारों से बाहर निकलकर सड़क पर आ गई है. भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य विश्वेंद्र सिंह की उनकी पत्नी व बेटे के बीच की लड़ाई कोर्ट तक जा पहुंची है.
विश्वेंद्र सिंह ने भरतपुर के उपखंड अधिकारी ट्रिब्यूनल में 19 मई को एक प्रार्थनापत्र देकर दावा किया है कि उनकी पत्नी दिव्या सिंह और बेटा अनिरुद्ध सिंह उनके साथ मारपीट करते हैं. विश्वेंद्र सिंह ने प्रार्थनापत्र में लिखा है, “मेरी उम्र 62 साल है. मेरी पत्नी दिव्या सिंह और बेटा अनिरुद्ध मेरे साथ मारपीट करते हैं, मुझे भरपेट भोजन नहीं देते, लोगों से मिलने नहीं देते. मेरे कपड़े कुएं में फेंक दिए हैं...’’
प्रार्थनापत्र में आगे लिखा गाय है, "मैं खानाबदोश जैसा जीवन जी रहा हूं. कभी सरकारी आवास में तो कभी होटल में रहना पड़ रहा है. भरतपुर आता हूं तो घर में घुसने नहीं देते. घर में पत्नी बेटे के साथ रहना अब संभव नहीं है. इसलिए वरिष्ठ नागरिक के तौर पर मुझे पांच लाख रुपए महीना भरण-पोषण खर्च दिया जाए."
विश्वेंद्र सिंह के कोर्ट पहुंचने के साथ ही उनकी पत्नी दिव्या सिंह और बेटा अनिरुद्ध मीडिया के सामने आए. दिव्या सिंह कहती हैं, ‘‘यह पूरा मसला तब शुरू हुआ था जब वो (विश्वेंद्र सिंह) मोती महल बेच रहे थे. उन्होंने सब कुछ बेच दिया है सिर्फ एक मोती महल बचा है. हमको अपनी पुस्तैनी जायदाद की रक्षा करनी है. मैं मरते दम तक मोती महल का कंपाउंड बचाऊंगी. मेरे साथ 30 साल में क्या-क्या हुआ, मैं अगर मुंह खोल दूंगी तो मामला सुप्रीम कोर्ट चला जाएगा. 30-32 साल से मैंने इनका बिगड़ा हुआ घर संभाला है और बदले में इन्होंने मुझे अन्याय और अत्याचार के अलावा कुछ नहीं दिया.’’
विश्वेंद्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध ने भी अपने पिता पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए. अनिरुद्ध सिंह का कहना है, “मेरे पिता विश्वेंद्र सिंह दिन-रात शराब में डूबे रहते हैं. उन्होंने बंद बरेठा का महल, भरतपुर रॉयल फैमिली की छतरी और गोवर्धन का मंदिर बेच दिए हैं. अब वो भरतपुर राजपरिवार की निशानी मोती महल भी बेचना चाहते हैं, लेकिन हम उन्हें इसमें कामयाब नहीं होने देंगे.’’

यह कोई पहला मौका नहीं है जब भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्यों के बीच इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप सामने आए हैं. पिछले चार साल में कई बार ऐसे मौके आ चुके हैं जब पिता-पुत्र ने एक दूसरे के खिलाफ जमकर आरोप लगाए हैं. हालांकि, विश्वेंद्र सिंह की पत्नी दिव्या सिंह इस तरह पहली बार खुलकर सामने आई हैं.
चार साल पहले अनिरुद्ध सिंह ने अपने पिता विश्वेंद्र सिंह पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए थे. अनिरुद्ध ने विश्वेंद्र सिंह पर शराब के नशे में अपनी मां दिव्या सिंह के साथ मारपीट करने और संपत्तियां बेचने के आरोप लगाए थे. 13 अप्रैल 2023 को भरतपुर जिले के नदबई कस्बे में बाबा साहब आंबेडकर की मूर्ति लगाने को लेकर राज्य सरकार में तत्कालीन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह और उनके बेटे अनिरुद्ध सिंह आमने-सामने आ गए. अनिरुद्ध उस जगह पर पहले से तय महाराजा सूरजमल जाट की प्रतिमा लगावाना चाहते थे तो पिता ने आंबेडकर की प्रतिमा का समर्थन किया. उसे अनिरुद्ध ने महाराजा सूरजमल के अपमान से जोड़ दिया.
30 दिसंबर 2022 को विश्वेंद्र सिंह के बेटे अनिरुद्ध सिंह ने ब्रिटिश शासन की 1935 में प्रकाशित किताब ‘द इंडियन स्टेट्स’ का हवाला देते हुए कहा था कि भरतपुर रियासत के सिनसिनवार जाटों के पुरखे करौली राजपरिवार के जादौन राजपूत हैं. उनके इस बयान के बाद देशभर में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी. विश्वेंद्र सिंह ने भी अपने बेटे अनिरुद्ध सिंह को मानसिक दिवालिएपन का शिकार बताया.

भरतपुर के पूर्व राजपरिवार की इस लड़ाई पर राजनीतिक विश्लेषक त्रिभुवन कहते हैं, ‘‘भरतपुर राजपरिवार का इतिहास बहुत ही स्वर्णिम रहा है. यहां किशन सिंह जैसे समाज सुधारक हुए हैं और सूरजमल जैसे प्रतापी राजा, लेकिन इस रियासत के मौजूदा सदस्य अतीत को कलंकित करने पर उतारू हैं. अगर यह परिवार अपने पारिवारिक और विरासत के विवाद को सड़क पर लाने की जगह बंद दरवाजे में सुलझाए तो बेहतर होगा.’’
भरतपुर के पूर्व राजपरिवार का सियासत में भी खूब दबदबा रहा है. भरतपुर में 1957 से लेकर 2004 तक हुए 14 लोकसभा चुनावों में से 9 बार यहां से पूर्व राजपरिवार के सदस्य सांसद चुने गए हैं. 2004 के बाद से यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दी गई. 1989, 1999 और 2004 में विश्वेंद्र सिंह भरतपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए जबकि 1996 में उनकी पत्नी दिव्या सिंह और 1991 में उनकी बहन कृष्णेंद्र कौर दीपा यहां से सांसद रही हैं. 1957, 1962 और 1971 में यहां से बहादुर सिंह सांसद चुने गए वहीं 1967 में बच्चू सिंह यहां से सांसद रहे हैं.
1984 और 1998 में कुंवर नटवर सिंह यहां से सांसद चुने गए. 1980 में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट भरतपुर से सांसद रहे हैं. 1989 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर विश्वेंद्र सिंह ने राजेश पायलट को पटखनी दी. सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट को हराने वाले विश्वेन्द्र सिंह 2019-20 के दौरान सचिन पायलट के करीबी हो गए. 2020 में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए सचिन पायलट के साथ मानेसर जाने वालों में विश्वेंद्र सिंह भी शामिल थे. मानेसर से लौटने पर सचिन पायलट के साथ विश्वेंद्र सिंह को भी मंत्री पद से हटाया गया, लेकिन 2021 में वो पाला बदलकर गहलोत के साथ आ गए तो उन्हें फिर से मंत्री बना दिया गया. गहलोत सरकार ने उन्हीं के सुझाव पर डीग को राजस्थान का नया जिला भी बनाया. विश्वेंद्र सिंह अब भी गहलोत के काफी करीबी माने जाते हैं जबकि उनके बेटे अनिरुद्ध सचिन पायलट समर्थक रहे हैं.
भरतपुर रियासत का इतिहास
16वीं सदी में राजस्थान के पूर्वी भाग भरतपुर, धौलपुर और डीग पर जाट वंश का शासन था. यहां जाट रियासत का उद्भव औरंगजेब के शासन काल में हुआ था. बताया जाता है कि औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह दिल्ली और आगरा क्षेत्र में बसे जाटों ने किया था. 1670 ई. में गोकुल जाट ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया, लेकिन उन्हें बंदी बनाकर मार डाला गया.
इसके बाद राजा राम जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया. राजा राम ने सिकंदरा ( आगरा ) में स्थित अकबर के मकबरे को तहस-नहस कर उसकी अस्थियां निकालकर उनका हिंदू विधि विधान के साथ दाह संस्कार किया था. 1688 ई में ओरंगजेब के पोते बीदर बक्श और आमेर के राजा बिशन सिंह ने राजा राम को परास्त कर दिया. 1688 ई. में राजा राम की मृत्यु के बाद विद्रोह का नेतृत्व चूडावण जाट ने संभाला.
चूडावण ने ही भरतपुर में जाट राज्य की स्थापना की और थूण के किले का निर्माण करवाया. 1721 ई. में चूडावण के जहर खाकर आत्महत्या कर लेने के बाद उनके भतीजे बदन सिंह को जयपुर नरेश सवाई जय सिंह ने डीग की जागीर देकर ब्रजराज की उपाधि प्रदान की. बदन सिंह ने डीग, कुम्हेर, भरतपुर व बैर में नए दुर्ग बनवाए और जाट राज्य का विस्तार किया.
बदन सिंह ने वृंदावन में एक भव्य मंदिर और डीग महल बनवाया. बदन सिंह के बाद 1756 ई. में उनके बेटे सूरजमल भरतपुर रियासत के राजा बने. सूरजमल को जाटों का प्लेटो और अफलातून कहा जाता है. सूरजमल ने भरतपुर को अपनी राजधानी बनाकर भरतपुर के किले का निर्माण करवाया. पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ पेशवा से अनबन हो जाने पर सूरजमल ने युद्ध में तो भाग नहीं लिया, लेकिन भागते हुए मराठा सैनिकों को भरतपुर में शरण दी. 1754 ई. में सूरजमल ने अपनी सेना के साथ दिल्ली पर आक्रमण किया और वहां से नूरजंहा का झूला उठाकर भरतपुर ले आए.
यह झूला डीग के महलों में स्थापित किया गया है. डीग के जल महल का निर्माण सूरजमल ने ही करवाया. सूरजमल को नई प्रशासनिक व्यवस्था का जनक माना जाता है जिसके अनुसार पद का आधार योग्यता को बनाया गया. नजीब खां के खिलाफ लड़ते हुए 1763 ई. में सूरजमल की मृत्यु हो गई. उनके बाद जवाहर सिंह भरतपुर रियासत के राजा बने. जवाहर सिंह ने भी 1774 ई. में दिल्ली पर आक्रमण किया और दिल्ली के किले से अष्ट धातुओं के बने दरवाजे लेकर भरतपुर आ गए. ये वही दरवाजे थे जो चित्तौड़गढ़ के किले में लगे हुए थे. चित्तौड़गढ़ के युद्ध के बाद औरंगजेब इन दरवाजों को आगरा ले गया और वहां से इन्हें दिल्ली ले जाया गया.
जवाहर सिंह ने दिल्ली फतह की खुशी में भरतपुर के किले में जवाहर बुर्ज का निर्माण करवाया. जवाहर बुर्ज में भरतपुर के राजाओं का राज तिलक होता है. जवाहर सिंह के बाद उनके भाई रतन सिंह सिंहासन पर बैठे जिन्हें अयोग्य, लंपट और विलासी राजा माना जाता है. मथुरा में एक बाजीगर ने रतन सिंह की हत्या कर दी. इसके बाद 1769 में उनके बेटे केहरी सिंह भरतपुर के शासक बने, लेकिन चार साल बाद ही उनकी चेचक से मौत हो गई तो 1771 में उनके उत्तराधिकारी नवल सिंह भरतपर के राजा बने. 1776 में नवल सिंह की मृत्यु के बाद रणजीत सिंह भरतपुर के शासक बने.
1803 ई. में दूसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध के दौरान जसवंत राव केलकर को रणजीत सिंह ने भरतपुर में शरण दी थी जिसके कारण अंग्रेजों ने भरतपुर पर चढ़ाई कर दी. 1805 में रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उनके सबसे बड़े बेटे रणधीर सिंह भरतपुर रियासत के शासक बने. 1823 में रणधीर सिंह की मृत्यु के बाद उनके भाई बलदेव सिंह उनके उत्तराधिकारी बने. 1825 में बलदेव सिंह के बेटे बलवंत सिंह ने भरतपुर की बागडोर संभाली. बलवंत सिंह के बाद जसवंत सिंह, रामसिंह, गिर्राज कौर, किशन सिंह और बृजेंद्र सिंह ने भरतपुर रियासत पर शासन किया. आजादी के बाद भरतपुर 1947 में नव स्वतंत्र डोमिनियन का हिस्सा बना, 1948 में भरतपुर मतस्य संघ में शामिल हुआ और 1949 में इस रियासत का राजस्थान में विलय हुआ.