scorecardresearch

अखिलेश यादव को आलोक रंजन की जरूरत क्यों है?

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने यूपी के रिटायर्ड मुख्य सचिव आलोक रंजन को पार्टी की तरफ से राज्यसभा उम्मीदवार बनाकर एक साथ कई निशाने साधे हैं

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ राज्य सभा चुनाव के लिए नामांकन करते आलोक रंजन ( नीले सूट में)
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ राज्य सभा चुनाव के लिए नामांकन करते आलोक रंजन ( नीले सूट में)
अपडेटेड 16 फ़रवरी , 2024

उत्तर प्रदेश में खाली होने वाली 10 राज्यसभा सीटों के लिए 12 फरवरी को समाजवादी पार्टी ने जिन तीन नामों को घोषित किया, उनमें सबसे चौंकाने वाला नाम रिटायर्ड नौकरशाह और राज्य के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का था.

हालांकि, 1978 बैच के आईएएस अधिकारी आलोक रंजन समाजवादी पार्टी के नेताओं के बीच एक जाना पहचाना चेहरा हैं लेकिन इन्हें राज्य सभा का टिकट थमा कर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने यह साफ कर दिया है कि वे पार्टी के ‘थिंक टैंक’ में अहम भूमिका में भी हैं. 

आलोक रंजन के सपा सुप्रीमो के करीब आने की कहानी 10 वर्ष पहले शुरू होती है जब सपा सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर अखिलेश यादव को वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बुरी हार का सामना करना पड़ा था. यह अखिलेश यादव के राजनीतिक जीवन की पहली बड़ी राजनीतिक हार थी. सपा केवल पांच लोकसभा सीटें ही जीत सकी थी. इसके बाद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपने मुख्यमंत्री पुत्र अखि‍लेश यादव को मनमुताबिक अफसरों की टीम बनाने की छूट दी. 

अखि‍लेश ने 31 मई, 2014 को तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी को हटाकर उनकी जगह आलोक रंजन को यूपी का नया मुख्य सचिव बनाया. नई दिल्ली के प्रतिष्ठ‍ित सेंट स्टीफेंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के बाद 1976 में लखनऊ निवासी आलोक रंजन ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम)अहमदाबाद से एमबीए किया. मार्केटिंग में विशेषज्ञता रखने वाले आलोक ने 1978 में पहले ही प्रयास में भारतीय प्रशासनिक सेवा - आईएएस- में चौथा स्थान पाकर अपने प्रशासनिक जीवन की शुरुआत की थी. 

और पढ़ें - क्या भाजपा के ‘मंदिर कार्ड’ की काट खोज पाएगा अखि‍लेश का केदारेश्वर महादेव मंदिर?

अखिलेश पुराने अफसरों की कार्यप्रणाली से इतने आजिज आ चुके थे कि 31 मई, 2014 की दोपहर बतौर मुख्य सचिव उस्मानी एसजीपीजीआई गवर्निंग बॉडी की बैठक करने के बाद लंच करने लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थ‍ि‍त अपने घर पहुंचे थे कि उसी दौरान उन्हें मुख्य सचिव के पद से हटने की जानकारी दी गई. उधर, मुख्य सचिव की कुर्सी पाने से पहले आलोक रंजन कृषि उत्पादन आयुक्त और औद्योगिक उत्पादन आयुक्त के रूप में बेहतर काम करके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की गुडबुक में आ चुके थे. 

सपा सरकार में कृषि उत्पादन आयुक्त पद पर रहते हुए किसानों को खाद और बीज की व्यवस्था के लिए ‘इनपुट कैलेंडर’, दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी ‘कामधेनु योजना’ की शुरुआत कर यूपी को दूसरे प्रदेशों के बीच एक अलग जगह दिलाई थी. ऐसे में नए मुख्य सचिव के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पहली पसंद आलोक रंजन ही थे. 

मुख्य सचिव की कुर्सी संभालते ही आलोक रंजन ने नए तौर तरीके अपना कर जनता के बीच अधिकारियों की एक सक्रिय, प्रभावी और संवेदनशील छवि बनाने का कार्य शुरू कर दिया था. पहली बार उन्होंने लखनऊ में हाइप्रोफाइल लाल बहादुर शास्त्री भवन या यूपी सचिवालय स्थि‍त अपने दफ्तर में जनता दरबार लगाना शुरू किया. यह पहला मौका था जब किसी मुख्य सचिव ने इस तरह अपने कार्यालय में जनता दरबार लगाना शुरू किया था. इसके साथ ही उन्होंने जिलों के दौरे करके लापरवाह अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू की. आलोक रंजन ने तत्कालीन सपा सरकार की जनता के बीच छवि सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.लखनऊ विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर राजेश्वर कुमार बताते हैं, “मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यूपी में अखिलेश यादव सरकार के प्रति एक नकारात्मक माहौल बना था. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बदायूं रेप केस में भी सरकारी तंत्र की लापरवाही सामने आई थी. ऐसे में मुख्य सचिव के रूप में आलोक रंजन के सामने सपा सरकार की छवि सुधारने की बेहद कठिन चुनौती थी. रंजन ने सरकारी तंत्र को चुस्त किया तो दूसरी ओर विकास योजनाओं को गति देकर अखिलेश सरकार की छवि सुधारने में केंद्रीय भूमिका निभाई.” 

आलोक रंजन ने मुख्यमंत्री अखि‍लेश यादव की प्राथमिकता वाली योजनाओं के पूरा होने की समयसीमा निर्धारित की और इनकी नियमित मानीटरिंग की व्यवस्था लागू की. सपा सरकार के तहत लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और लखनऊ मेट्रो से लेकर डायल 100 कार्यक्रम तक कई प्रमुख परियोजनाएं रंजन के कार्यकाल के दौरान समय पर हकीकत में बदलीं. इसके बाद वे अखिलेश यादव के सबसे नजदीकी अफसर के रूप मे सामने आए. 67 वर्षीय रंजन ने मई 2014 से जून 2016 तक तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अधीन राज्य के मुख्य सचिव के रूप में कार्य किया और सेवानिवृत्ति पर उन्हें कैबिनेट मंत्री के दर्जे के साथ मुख्यमंत्री का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया. वे मार्च 2017 में सपा सरकार के कार्यकाल के अंत तक इस पद पर रहे. राजेश्वर कुमार बताते हैं, “यह आलोक रंजन और उनके नेतृत्व में अफसरों की टीम का ही कमाल था कि जनता सपा से तो नराज थी लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव से खुश थी. अगर वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह परिवार में आपसी विवाद सतह पर नहीं आता तो सपा को सत्ता से बाहर करना आसान न होता.”

मार्च, 2017 में सत्ता गंवाने के बाद भी अखिलेश यादव का आलोक रंजन पर भरोसा बरकरार रहा. जल्द ही रंजन अखिलेश यादव की ‘थिंक टैंक’ और ‘रणनीति बनाने वाली’ टीम का हिस्सा बन गए. आलोक रंजन ने सपा के 2022 विधानसभा चुनाव घोषणापत्र का मसौदा तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दस्तावेज़ जारी करने के समय वे अखिलेश के साथ थे. इस पूर्व नौकरशाह ने विधानसभा चुनाव के दौरान नीति और शासन के मुद्दों पर सत्तारूढ़ भाजपा का मुकाबला करने के लिए पार्टी के तर्क और डेटा तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  

वि‍धानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में वि‍भिन्न मुद्दों पर अखिलेश यादव द्वारा रखी जा रही राय के लिए महत्वपूर्ण इनपुट जुटाने में भी आलोक रंजन की बड़ी भूमिका है. राजेश्वर कुमार बताते हैं, “आलोक रंजन की नौकरशाही में तगड़ी पकड़ है. इनके कई जूनियर अखिकारी पीएमओ और केंद्रीय मंत्रालयों में तैनात हैं.राज्यसभा में पहुंचकर आलोक रंजन सपा सुप्रीमो की केंद्रीय राजनीति के मुद्दों तक पहुंच बनाने में बड़ी भूमिका निभाएंगे.” 

राज्य सभा चुनाव के लिए आलोक रंजन के नामांकन को सोशल इंजीनियरिंग की दिशा में सपा के प्रयासों के हिस्से के रूप में भी देखा जा रहा है. राज्य की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव जिले के मूल निवासी रंजन कायस्थ जाति वर्ग से आते हैं, जो विशेष रूप से मध्य यूपी में बड़ी संख्या में सीटों पर प्रभावशाली है. कायस्थों को यूपी में भाजपा का वफादार समर्थक आधार माना जाता है. हाल ही में विश्व कायस्थ संस्थान ने राज्य में अपनी एक इकाई स्थापित की है और रंजन को इसका अध्यक्ष बनाया है. 

रिटायर होने के बाद से, रंजन ने सार्वजनिक नीति और नेतृत्व पर चार किताबें भी लिखी हैं. वे वर्तमान में आईआईएम लखनऊ में विजिटिंग प्रोफेसर हैं और लखनऊ के अन्य शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े हुए हैं. जैसा अनुमान है कि अगर चुनाव के हालात नहीं पैदा हुए तो सपा आलोक रंजन समेत अपने तीनों उम्मीदवारों को राज्यसभा भेजने में कामयाब हो जाएगी.जाहिर है कि उन्हें देश के उच्च सदन में जाकर केंद्रीय राजनीति में सपा की छवि निखारने का कुछ वैसा ही करिश्मा करना होगा जैसा  वर्ष 2014 में यूपी का मुख्य सचिव बनने के बाद किया था. 

Advertisement
Advertisement