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कारगिल विजय : पाकिस्तान ने भूखा रखा, नशे के इंजेक्शन दिए लेकिन पायलट नचिकेता ने तब भी मुंह बंद रखा!

कारगिल की जंग के दौरान भारतीय पायलट लेफ्टिनेंट नचिकेता का फाइटर जेट क्रैश हो गया था और इसके बाद उन्हें कुछ दिन पाकिस्तान की कैद में बिताने पड़े थे

भारत में वापसी के बाद पायलट लेफ्टिनेंट नचिकेता तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज के साथ
भारत में वापसी के बाद पायलट लेफ्टिनेंट नचिकेता तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिज के साथ
अपडेटेड 29 जुलाई , 2024

भारत में कारगिल विजय दिवस की 25वीं सालगिरह 26 जुलाई को मनाई गई है. पाकिस्तान के साथ करीबन तीन महीने चली इस जंग की शुरुआत से लेकर टाइगर हिल पर तिरंगा फहराकर भारत की जीत के ऐलान तक अनगिनत किस्से हैं कारगिल वॉर के.

हमेशा की तरह और किसी भी जंग के सामान्य नियम के तहत भारत और पाकिस्तान दोनों को इस जंग से बहुत कुछ खोना पड़ा. ऐसे समय में, जब सरहद पर दागा गया एक गोला, दोनों ही देशों के भीतर रोटियों और किताबों की आम पहुंच पर असर डालता हो, इस युद्ध के कई घाव भारत-पाकिस्तान में बतौर निशान जिंदा हैं.

इन 25 सालों में पाकिस्तान ने भारत के साथ कभी कोई सीधी जंग मोल नहीं ली. इसकी वजह हैं भारत के वो जवान जो सिर पर कफ़न बांधकर पाकिस्तान से भिड़े. इन्हीं जवानों में भारत की वायु सेना का एक ऐसा पायलट भी था जिसने लड़ाई में आसमान से तो अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया ही, जब वो पाकिस्तान की जमीन पर बंदी बनाया गया तब भी पूरे देश की तरफ से पाकिस्तान को जवाब दिया.

हम बात कर रहे हैं इंडियन एयर फोर्स के पायलट नचिकेता की जिन्होंने पाकिस्तान की जमीन पर बतौर युद्ध बंदी तमाम मुश्किलें बर्दाश्त कीं लेकिन पाकिस्तानी सेना के लाख पूछने पर भी उन्हें कोई जानकारी नहीं दी. इंडिया टुडे से हुई एक बातचीत में लेफ्टिनेंट नचिकेता ने बताया कि कैसे एक मिशन को पूरा करते हुए वे पाकिस्तान की ज़मीन पर पहुंच गए, और कैसे एक पाकिस्तानी सिपाही बंदूक की नली उनके मुंह में डालकर फायर करने ही वाला था जब उसके अधिकारी ने उसे रोक दिया.

इंडियन एयर फोर्स का मिग-21 फाइटर जेट

सिंगल इंजन क्रैश डाउन 

कारगिल में भारत की सेना एक ऐसे युद्ध से निपट रही थी जिसे पड़ोसी मुल्क दुनिया के सामने घुसपैठ की शक्ल देना चाहता था. कश्मीर के इन पहाड़ों की चोटियों पर चुपचाप जाकर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को भारतीय सेना तो खदेड़ ही रही थी लेकिन इसमें इंडियन एयर फ़ोर्स की भूमिका बहुत असरदार साबित हुई थी.

इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तान को जवाब देने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया जिसका नाम था ‘ऑपरेशन वाइट ओशन’, जिसे आमतौर पर ऑपरेशन सफेद सागर के नाम से भी जाना जाता है. इसकी कमान वायु सेना की जिस टुकड़ी के पास थी उसमें ही बतौर फाइटर पायलट लेफ्टिनेंट नचिकेता की तैनाती थी. बटालिक सेक्टर में इस स्क्वाड्रन का बेस बनाया गया. कारगिल की जंग शुरू हुए करीब दो हफ्ते बाद 26 मई 1999 को इस ऑपरेशन की शुरुआत हुई. ऑपरेशन के बिल्कुल शुरुआती चरण में लेफ्टिनेंट नचिकेता को एक मिशन के तहत अपने मिग-27 फाइटर जेट के साथ उड़ान भरनी थी.

इसी दौरान उनका फाइटर जेट क्रैश हुआ, वे पाकिस्तान में बंदी बनाए गए और फिर कुछ दिनों बाद उनकी भारत वापसी हुई. यहां आने के बाद नचिकेता की इंडिया टुडे से लंबी बातचीत हुई थी. इसी में वे बताते हैं, "उस दिन हमारे साथ तीन अन्य लड़ाकू पायलटों ने श्रीनगर से हवाई उड़ान भरी थी. हमारा लक्ष्य मुन्थो ढालो नाम की जगह थी जो पाकिस्तान लॉजिस्टिक बेस का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. हम चार हवाई जहाजों के एक सेट में यात्रा कर रहे थे. हम लोग लगातार रॉकेट से निशाना साध रहे थे. कुछ देर बाद मेरा इंजन ख़राब हो गया. मेरे पास विमान से बाहर कूदने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. विमान से कूदने के कुछ सेकेंड बाद मैंने देखा कि विमान पहाड़ी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था."

करीब 900 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ रहे फाइटर जेट से पायलट नचिकेता ने जब 17 हज़ार फीट की ऊंचाई से निशाना लिया तो रॉकेट लॉन्च के तुरंत बाद उन्हें वापस अपनी पोजीशन पर पहुंचना था. इसे फाइटर जेट पायलट की भाषा में ‘डाइव पैटर्न अटैक’ कहते हैं. इसमें टार्गेट को जब तक हमले का अंदाजा होता है तब तक फाइटर जेट वापस अपनी फायरिंग पोजीशन में पहुंच चुका होता है. इससे एक मदद ये भी मिलती है कि अगर निशाना चूक जाए तो पायलट के पास दुश्मन के जवाबी हमले से पहले तुरंत दोबारा रॉकेट लॉन्च करने का मौका रहे. उस दिन  भी नचिकेता यही करना चाहते थे. लेकिन बहुत ज्यादा ऊंचाई और स्पीड की वजह से उनका फाइटर जेट डाइव लगा नहीं सका और ‘फ्लेम आउट' (इंजन में आग लग गई) हो गया.

उस समय आज के मॉडर्न फाइटर जेट की तरह दो इंजन नहीं हुआ करते थे. सिंगल इंजन मिग जैसे ही बंद हुआ नचिकेता समझ गए कि अब केबिन से इजेक्ट होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. नचिकेता ने इजेक्शन बटन दबा दिया और अगले ही सेकेंड वो अपने फाइटर जेट से दूर पैराशूट के सहारे नीचे लैंड कर रहे थे.

कारगिल युद्ध के दौरान मिग-21 मिसाइल दागता हुआ

लेकिन ये ज़मीन पाकिस्तान की थी!

नचिकेता जब ज़मीन पर उतरे तो उन्हें थोड़ी देर में ही समझ आ गया कि वो पाकिस्तान के सरहदी इलाके में उतरे हैं. ऐसे में क्या ही किया जा सकता है. पायलट नचिकेता ने सबसे पहले अपना पैराशूट छुपाया और इलाके की थाह लेने के लिए आगे बढ़े. इंडियन एयर फ़ोर्स के फाइटर पायलट के पास उड़ान के दौरान हमेशा एक माइक्रो पिस्टल होती है जो इन्हीं हालात में मदद के लिए रखी जाती है.

नचिकेता की पिस्टल में आठ राउंड थे. उधर पैराशूट उतरता देखकर पाकिस्तानी बॉर्डर फ़ोर्स के सिपाही पायलट की सरगर्मी से तलाश कर रहे थे. ज्यादा समय नहीं लगा जब नचिकेता को पाकिस्तानी सिपाहियों ने चारों तरफ से घेर लिया. लेकिन पायलट नचिकेता अब भी हार मानने को तैयार नहीं थे. उन्होंने अपनी पिस्टल से आठ राउंड फायर किए. पाकिस्तानी सिपाहियों को फायर से अंदेशा हो गया था कि पायलट के पास एक पिस्टल के सिवाय और कोई हथियार नहीं. वो भी पिस्टल के राउंड खत्म होने का ही इंतज़ार कर रहे थे. इधर नचिकेता के राउंड खत्म हुए और उधर पाकिस्तानी सिपाहियों ने आकर नचिकेता को पकड़ लिया. 

किसी देश के साथ चलते युद्ध में दुश्मन देश का फ़ौजी पायलट मिल जाए तो जंग का सारा गुस्सा दुश्मन के सिपाही उस पर उतारते ही हैं. एक झल्लाए हुए पाकिस्तानी सिपाही ने नचिकेता के सामने आकर अपनी ए.के 47 की नाल भारतीय पायलट के मुंह में घुसेड़ दी. पायलट नचिकेता बताते हैं, “मैं ट्रिगर पर पड़ी उसकी उंगली को देख रहा था. सोच रहा था कि वह इसे खींचेगा या नहीं. लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था.” नचिकेता ने बताया कि विरोधी दस्ते के कैप्टन ने उस युवा सैनिक को ट्रिगर दबाने से रोक दिया. पाकिस्तानी सेना के कैप्टन ने अपने सहयोगियों को समझाया कि भारतीय पायलट एक सैनिक के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहा है. इसके बाद नचिकेता को बंदी बनाकर शिविर स्थल पर ले जाया गया.

लेफ्टिनेंट नचिकेता अपने परिवार के साथ

अब शुरू हुआ टॉर्चर

पाकिस्तानी मिलिट्री इंटेलिजेंस समझती थी कि नचिकेता के पास कितनी ज़रूरी जानकारियां हैं. उन्हें पाकिस्तानी शिविर में लाया गया. खूब टॉर्चर किया गया, लेकिन उन्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया. इसके बाद नचिकेता को C130 प्लेन से पहले इस्लामाबाद और फिर रावलपिंडी ले जाया गया. वहां उन्हें आईएसआई को सौंप दिया गया. जब नचिकेता किसी भी तरह से कोई जानकारी देने को तैयार नहीं हुए तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उन्हें नशे के इंजेक्शन लगाए ताकि वो कुछ बोलें. लेकिन वे कुछ नहीं बोले. नचिकेता कहते हैं, "इजेक्शन के कारण पीठ में दर्द हो रहा था और ठंड जूतों में घुस रही थी."

पाकिस्तान में नचिकेता को किस तरह की प्रताड़ना से गुजरना पड़ा इसका अंदाजा हम उनकी इस बात से ही लगा सकते हैं. पायलट नचिकेता बताते हैं, “सेल में बिना दाना-पानी के अकेले रहना पड़ा. यह बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि वे आपको मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक रूप से तोड़ना चाहते हैं ताकि आप कुछ उगलना शुरू कर दें. लेकिन, मैं फिर से भाग्यशाली रहा. क्योंकि इसके बाद थर्ड डिग्री टॉर्चर शुरू होना था. अभी तक जो हुआ था, उसे वे यह कहकर बच सकते थे कि मैं सहयोग नहीं कर रहा था, भागने की कोशिश कर रहा था. लेकिन अब जो होता (थर्ड डिग्री) उससे शरीर पर निशान पड़ जाते हैं. लेकिन वो स्टेज आने से पहले मुझे भारत वापस भेजने का फैसला आ गया था.”

पाकिस्तान से वापसी के बाद पायलट नचिकेता

आखिरकार हुई वतन वापसी

इस बीच भारत की सरकार ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नचिकेता की रिहाई का मुद्दा उठा. पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव पड़ा. लिहाजा पाकिस्तान ने खुद के बचाव के लिए भारतीय पायलट को रिहा करने का फैसला किया. आईएसआई की कैद से नचिकेता निकले और फिर इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन रेड क्रॉस सोसाइटी के जरिए उन्हें भारतीय दूतावास के हवाले कर दिया गया.

जब नचिकेता की वतन वापसी हुई तो पूरे देश ने एक हीरो की तरह उनका स्वागत किया. और इसके कुछ ही दिनों के बाद भारत ने टाइगर हिल पर तिरंगा लहराकर कारगिल युद्ध में जीत का ऐलान कर दिया. इस 84 दिन लंबी लड़ाई में कैप्टन नचिकेता इकलौते थे, जो युद्ध बंदी हो गए थे और जिन्हें सकुशल रिहा करवा लिया गया था. कारगिल की जंग में पाकिस्तान के तीन से चार हजार जवान मारे गए थे और भारत के कुल पांच सौ सत्ताईस जवान शहीद हुए, जबकि तेरह सौ से ज्यादा जवान घायल हुए. 

ये इन्हीं जवानों और इनकी बहादुरी का हासिल है कि पाकिस्तान ने कारगिल के बाद भारत से कभी जूझने की कोई कोशिश नहीं की. केवल भारत और पाकिस्तान के ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के जंगी इतिहास में कारगिल की लड़ाई को दुनिया की सबसे कठिन लड़ाइयों में से एक माना जाता है.

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