
साल 2012 की बात है. तब देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने असम के लोगों के प्रति आभार जताते हुए कहा था, "मैं इस उपमहाद्वीप के एक ऐसे हिस्से में सुदूर और धूल भरे गांव में पैदा हुआ था, जो अब भारत का हिस्सा नहीं है. कम उम्र में ही मैं बेघर हो गया और प्रवासी बन गया. असम में मुझे आखिरकार एक ऐसा घर मिला है, जिसने मुझे खांटी अपनेपन का एहसास दिलाया है."
मनमोहन सिंह का जन्म गाह में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के चकवाल जिले में पड़ता है. विभाजन के बाद सिंह अपने परिवार के साथ भारत आ गए और हल्द्वानी उनका नया ठिकाना बना. उनकी पढ़ाई-लिखाई पंजाब विश्वविद्यालय से हुई. उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में ऑनर्स और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल. की डिग्री हासिल की.
साल 1971 में सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में सरकारी सेवाओं से जुड़े. उसके बाद वे मुख्य आर्थिक सलाहकार बने, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में काम किया और योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे. इसकी वजह से उन्हें दिल्ली में ही रहना पड़ता था. डॉ. सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर के पास दिल्ली के वसंत कुंज और चंडीगढ़ के सेक्टर 11बी में दो घर हैं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब तीन दशकों तक असम के गुवाहाटी स्थित घर मनमोहन सिंह का एड्रेस रहा था. असल में यह उनका किराये का पता था, और साल 2007 में कथित तौर पर रेंट था - 700 रुपया महीना. पूरा एड्रेस कुछ यूं था : हाउस नंबर 3989, नंदन नगर, वार्ड नंबर 51, सरुमतारिया, दिसपुर, गुवाहाटी, जिला - कामरूप, (असम) - 781006. लेकिन डॉ. सिंह को गुवाहाटी के एड्रेस की जरूरत क्यों पड़ी और वो घर वास्तव में किसका था?

नंदन नगर स्थित वो मकान असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हितेश्वर सैकिया की पत्नी हेमप्रभा सैकिया के नाम पर पंजीकृत है. हालांकि मनमोहन सिंह 1991 से ही उसके किराएदार थे, लेकिन वे वहां कभी रहे नहीं. कुछ ही ऐसे मौके रहे, जब वे और उनकी पत्नी असम निर्वाचन क्षेत्र से वोट देने गए थे. वे गुवाहाटी में मतदाता के रूप में पंजीकृत थे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि सैकिया के अनुरोध पर ही डॉ. सिंह को असम से राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था.
मनमोहन सिंह का गुवाहाटी स्थित एड्रेस से जुड़ाव 1991 में शुरू हुआ, जब उन्होंने संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल किया था. डॉ. सिंह को पहली बार 1991 में असम से राज्यसभा के लिए चुना गया और जून 1995 में वे राज्य से दोबारा चुने गए. साल 1991 में ही पीवी नरसिम्हा राव ने तब एक आला अफसर पीसी अलेक्जेंडर की सलाह पर सिंह को वित्त मंत्री बनाया था. राव ने मनमोहन से कहा था कि अगर आप सफल हुए तो इसका श्रेय हम दोनों को जाएगा. अगर आप असफल हुए तो सिर्फ आपकी जिम्मेदारी होगी.
बहरहाल, डॉ. सिंह 2019 तक असम से राज्यसभा का प्रतिनिधित्व करते रहे, उसके बाद उन्हें राजस्थान भेज दिया गया. इसके पीछे वजह यही थी कि 2016 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से मिली करारी हार के बाद असम कांग्रेस के पास सिंह को राज्य से उच्च सदन में भेजने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं बची थी.
हालांकि, प्रधानमंत्री रहते हुए भी डॉ. सिंह गुवाहाटी के नंदन नगर के मकान नंबर 3989 के निवासी थे. मई, 2004 में डॉ. सिंह के प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद द टेलीग्राफ में छपी एक रिपोर्ट से गुवाहाटी स्थित उनके घर के शांत वातावरण के बारे में जानकारी मिलती है.
रिपोर्ट में लिखा है, "10 जनपथ (तब का पीएम आवास) के सामने के उन्मादी दृश्यों के विपरीत, नंदन नगर में दो मंजिला घर आज शांत था. फोटो पत्रकारों और विभिन्न टीवी चैनलों के कैमरामैन के कभी-कभार आने के अलावा यहां कोई हलचल नहीं थी."
रिपोर्ट में आगे बताया गया कि हेमप्रभा सैकिया के लिए कुछ सुरक्षाकर्मियों को छोड़कर, कोई भी वीआईपी सिक्योरिटी मौजूद नहीं थी. एक सुरक्षाकर्मी ने अखबार को बताया कि "सिंह के सुरक्षाकर्मी तभी तैनात होते हैं जब वे यहां होते हैं."
प्रधानमंत्री बनने के बाद साल 2007 में डॉ. सिंह नंदन नगर स्थित अपने घर आए थे. टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंह के अपार्टमेंट में सजावट बहुत कम थी. फर्नीचर के नाम पर दो सोफे, एक चाय की मेज, एक बिस्तर और गुरु ग्रंथ साहिब सहित कुछ पुस्तकों से भरी एक रैक ही थी. दीवारों पर सिर्फ गुरु नानक की एक तस्वीर और प्रधानमंत्री की खुद की तस्वीर सजी हुई थी.
डॉ. सिंह ने अपनी तस्वीर उठाई और कुछ देर तक उसे निहारते रहे, फिर अपने सहयोगियों को बताया कि यह तस्वीर कहां खींची गई थी. द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन यूपीए सरकार के प्रवक्ता और मंत्री रिपुन बोरा ने बताया कि प्रधानमंत्री डॉ. सिंह उस दिन सीएलपी की बैठक के दौरान असम के साथ अपने जुड़ाव को लेकर "बहुत भावुक" हो गए थे, और उन्होंने कहा था कि वे अपना बाकी जीवन यहीं बिताना चाहते हैं.
मनमोहन सिंह के असम से सांसद होने से राज्य को फायदा मिला. 1991 से ही सिंह अपनी एमपी लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में करते रहे. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. सिंह ने लोअर प्राइमरी स्कूल के पुनर्निर्माण, एक सिविल अस्पताल में ब्लड बैंक की स्थापना और ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर एक पार्क बनाने में योगदान दिया.
इसके अलावा गुप्त काल के पुरातात्विक स्थल मदन कामदेव मंदिर के खंडहरों का जीर्णोद्धार भी डॉ. सिंह की एमपी लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से किया गया. यह मंदिर खजुराहो मंदिर से मिलता जुलता है. असम से कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने अप्रैल में राज्य के लिए सिंह के योगदान को याद करते हुए कहा था, "बोगीबील पुल, ढोला सादिया पुल, जोरहाट में राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान, उत्तर पूर्व सीमांत रेलवे, उत्तर पूर्व औद्योगिक विकास नीति इन सभी का विकास उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन में हुआ." इसी साल अप्रैल में ही मनमोहन सिंह ने राज्यसभा सांसद के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था.
राज्य विधानसभा की प्लेटिनम जुबली पर 2012 में दिए गए भाषण में असम के लोगों का शुक्रिया अदा करते हुए डॉ. सिंह ने कहा था, "आप सभी ने जो दोस्ती, स्नेह और गर्मजोशी मुझे दी है, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता और न ही कभी भूलूंगा." उन्होंने अपना भाषण "नमोस्कार" कहकर शुरू किया. डॉ. सिंह ने आगे कहा,"मैं अपने दत्तक गृह राज्य असम में एक बार फिर आकर वास्तव में बहुत खुश हूं."
पूर्व प्रधानमंत्री के निधर पर असम सरकार ने भी उनके सम्मान में सात दिवसीय शोक की घोषणा की है. नंदन नगर के मकान नंबर 3989 ने 26 दिसंबर को अपने एक प्रमुख रेजीडेंट को खो दिया है, और इस तरह तीन दशकों से अधिक पुराना रिश्ता टूट गया. लेकिन असम और उसके लोग हमेशा उस नेता को याद रखेंगे जिसने चुपचाप रहकर इसके विकास और भलाई के लिए काम किया.