दिसंबर की 16 तारीख को पीएम म्यूजियम और लाइब्रेरी (पीएमएमएल) सोसाइटी के सदस्य रिजवान कादरी ने जवाहरलाल नेहरू से जुड़े निजी दस्तावेजों को वापस करने की मांग की है. उन्होंने आरोप लगाया कि 2008 में यूपीए शासनकाल के दौरान '51 बक्सों' में भरकर नेहरू के ये निजी खत सोनिया गांधी के पास पहुंचाए गए थे. ऐसे में पीएमएमएल की मांग है कि इन खतों को वापस किया जाए या इन्हें स्कैन करने की इजाजत दी जाए, क्योंकि ये पहले ही म्यूजियम का हिस्सा थे और इतिहास और शोध के लिहाज से काफी अहम हो सकते हैं.
कादरी की इस मांग के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी कांग्रेस को घेरने में लग गई. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद संबित पात्रा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सोनिया गांधी के आवास पर भेजे गए ये पत्र महज पत्र नहीं हैं, बल्कि ऐतिहासिक दस्तावेज हैं और देश को ये जानने का हक है कि एडविना माउंटबेटन सहित कई लोगों के साथ हुए इन पत्राचारों में क्या बातचीत हुई. बहरहाल, नेहरू के निजी पत्राचार पर मचे बवाल के बीच आइए जानते हैं कि उन्होंने एडविना को जो पत्र लिखे, उनमें क्या है और 80 साल बाद भी ये चर्चा में क्यों हैं?
कादरी जिन दस्तावेजों की बात कर रहे हैं, उनमें नेहरू के वे खत रखे हुए हैं जो उन्होंने एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टीन, जयप्रकाश नारायण, पद्मजा नायडू, विजयलक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, बाबू जगजीवन राम और गोविंद बल्लभ पंत को लिखे थे. आरोप है कि 2008 में यूपीए शासनकाल के दौरान तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इन पत्रों को 51 डब्बों में भरकर अपने आवास पर मंगा लिया था. इन्हीं खतों की वापसी के लिए कादरी ने 10 दिसंबर को राहुल गांधी को एक पत्र लिखा. इससे पहले सितंबर में वे सोनिया को भी इस सिलसिले में खत लिख चुके हैं.
कादरी बताते हैं, "सितंबर 2024 में भी मैंने सोनिया गांधी को लेटर लौटाने के लिए पत्र लिखा था, लेकिन उनसे कोई जवाब नहीं मिलने पर मैंने अब राहुल को पत्र लिखा है." खतो-किताबत के मसले पर मची जंग में ये बात भी पहली दफा रिकॉर्ड में आई है कि सोनिया गांधी ने साल 2008 में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी से जवाहरलाल नेहरू से जुड़े कागजात ले जाने के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त किया था.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पात्रा ने बताया कि इस साल फरवरी में पीएमएमएल सोसाइटी की बैठक के दौरान इस मुद्दे को पहली बार सार्वजनिक किया गया था. उन्होंने कहा, "जवाहरलाल नेहरू के समय में जब ईमेल और मोबाइल फोन नहीं थे, तब पत्राचार के जरिए ही संचार होता था. जवाहरलाल नेहरू के पत्रों को 1971 में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी को दान कर दिया गया था. बाद में 2008 में तत्कालीन यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रतिनिधि एमवी राजन ने उनकी समीक्षा की, उन्होंने नेहरू के खतों की स्टडी की और उनमें से कई अहम पत्रों को चिह्नित किया."
पात्रा ने आरोप लगाया कि पांच मई, 2008 को एनएमएलएल के तत्कालीन निदेशक की मंजूरी के बाद एमवी राजन नेहरू और इन विभिन्न हस्तियों के बीच हुए खतो-किताबत सहित बड़ी संख्या में अहम दस्तावेजों को 51 डिब्बों में भरकर सोनिया गांधी के आवास पर ले गए थे. पात्रा ने यह भी जानने की इच्छा जाहिर की कि आखिर इन पत्रों में ऐसा क्या है जिसे सोनिया गांधी ने अपने पास रख लिया.
इधर, बीजेपी की इस मांग पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक मणिकम टैगोर ने कहा कि यह ध्यान भटकाने की रणनीति है और बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को हमेशा ही प्रधानमंत्री नेहरू से परेशानी रही है.
एडविना-नेहरू के बीच पत्राचार में क्या बातें हुईं!
नेहरू और एडविना के बीच जो खतो-किताबत हुई, उनकी सारी बातें फिलहाल सार्वजनिक नहीं हैं. लेकिन एडविना माउंटबेटन की बेटी पामेला हिक्स ने उनमें कुछ पत्र देखे थे, जिनके बारे में पामेला ने अपनी किताब डॉटर ऑफ एम्पायर: लाइफ एज़ ए माउंटबेटन में जिक्र किया है.
पामेला ने लिखा है कि उनकी मां और नेहरू के बीच "गहरा रिश्ता" था, जो तब शुरू हुआ जब वह अपने पति और भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड लुईस माउंटबेटन के साथ 1947 में इंडिया आईं.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पामेला ने नेहरू-एडविना के पत्रों को देखकर महसूस किया कि "वे (नेहरू) और उनकी मां (एडविना) एक दूसरे से कितना प्यार करते थे और एक दूसरे का कितना सम्मान करते थे." पामेला आगे बताती हैं कि एडविना को "पंडितजी में वह दोस्ती और आध्यात्मिक समानता और बुद्धिमता मिली, जिसकी उन्हें चाहत थी."
पामेला ने आगे लिखा, "यह तथ्य है कि न तो मेरी मां और न ही पंडितजी के पास शारीरिक संबंध बनाने का समय था, वे शायद ही कभी अकेले होते थे. वे हमेशा कर्मचारियों, पुलिस और अन्य लोगों से घिरे रहते थे."
लेकिन जब एडविना माउंटबेटन भारत छोड़ने वाली थीं, तो वे नेहरू के लिए एक पन्ना की अंगूठी छोड़ना चाहती थीं. हालांकि वे इस बात को भी बखूबी जानती थीं कि नेहरू इसे किसी हाल में नहीं लेंगे, इसलिए उन्होंने इसे उनकी बेटी इंदिरा गांधी को दे दिया था.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एडविना के लिए नेहरू का विदाई भाषण भी काफी दिलचस्प है, जिसकी चर्चा पामेला ने अपनी पुस्तक में की है. नेहरू ने उस भाषण में कहा, "आप जहां भी गई हैं, आपने सांत्वना, आशा और प्रोत्साहन दिया है. इसलिए, क्या यह आश्चर्य की बात है कि भारत के लोग आपसे प्यार करते हैं और आपको अपना ही मानते हैं और आपके जाने पर दुखी हैं?"
इंदिरा गांधी ने ये पत्र पीएमएमएल को दिए
साल 2023 में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) का नाम बदलकर पीएमएमएल कर दिया गया था. बहरहाल, गांधी परिवार को लिखे अपने पत्र में कादरी ने जिक्र किया कि नेहरू के निजी कागजात उनकी बेटी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में पीएमएमएल को "उपहार के बजाय सुरक्षित रखने के लिए" दिए थे. इसी पत्र में उन्होंने ये भी लिखा कि 2008 में सोनिया गांधी ने दान किए गए कागजात के 51 कार्टन अपने साथ ले लिए.
इस विवाद में कादरी का तर्क है कि चूंकि ये पत्र "भारतीय इतिहास के एक अहम कालखंड के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं, इसलिए इन्हें पीएमएमएल के अभिलेखागार में वापस किया जाना चाहिए. पत्र में कहा गया है, "हम समझते हैं कि ये दस्तावेज नेहरू परिवार के लिए निजी अहमियत रखते होंगे. हालांकि, पीएमएमएल का मानना है कि इन ऐतिहासिक सामग्रियों को अधिक व्यापक रूप से सुलभ बनाने से विद्वानों और शोधकर्ताओं को बहुत लाभ होगा."
बहरहाल, इस पूरे मामले पर अब दो पक्ष हैं. एक नैतिकता का हवाला देने वाले, जिनका मानना है कि ये पत्र नेहरू ने निजी तौर पर लिखे थे और इन्हें सार्वजनिक करना ऐसे व्यक्ति की निजता में दखलअंदाजी का मामला हो सकता है जो अब खुद की पैरवी करने के लिए जीवित नहीं है. जबकि दूसरा पक्ष, भारत की आजादी के समय के हालात और कूटनीति को समझने के लिए इन पत्रों को सार्वजनिक करना जरूरी समझता है.