देश के शीर्ष उपभोक्ता निगरानी संगठन, सीसीपीए ने डार्क पैटर्न को लेकर गाइडलाइन्स जारी की हैं. इनका मकसद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर चल रही धोखाधड़ी को रेगुलेट करना है ताकि उपभोक्ता या कोई यूजर इनके जाल में न फंसे. इन गाइडलाइन्स को कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट, 2019 की धारा 18 के तहत सीसीपीए ने 30 नवंबर, 2023 को नोटिफाई किया था.
डार्क पैटर्न ग्राहकों को गुमराह करने और उन्हें सही विकल्प चुनने से रोकने के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म द्वारा उपयोग की जाने वाली एक तरह की रणनीति है. नोटिफाई की गई गाइलाइंस भारत में व्यवस्थित रूप से वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करने वाले सभी प्लेटफॉर्म्स पर लागू होंगी, फिर चाहे वो एडवरटाइजर्स हों या सेलर्स.
ये गाइडलाइन्स डार्क पैटर्न में शामिल होने पर सीधे-सीधे रोक लगाती हैं. इनके अनुसार, "कोई भी व्यक्ति, या प्लेटफॉर्म किसी भी तरह डार्क पैटर्न से जुड़े कामों में शामिल नहीं हो सकेगा."
सीसीपीए ने डार्क पैटर्न को परिभाषित करते हुए कहा कि वैसे पैटर्न्स जिनकी मदद से कंपनियां यूजर को गुमराह करती हैं और अपने व्यावसायिक फायदे के लिए वो वस्तु या सेवा बेचती हैं, जिसकी उन्हें जरूरत नहीं होती, तो ऐसे पैटर्न्स को डार्क पैटर्न्स कहा जाएगा. सीसीपीए का कहना है कि ये डार्क पैटर्न्स उपभोक्ता की आजादी और उनके चयन करने के अधिकारों का हनन करता है.
डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ने एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) के साथ मिलकर 13 जून, 2023 को डार्क पैटर्न पर सभी साझेदारों के साथ परामर्श किया था. इसके बाद, विभाग ने 28 जून, 2023 को एक टास्क फोर्स का गठन किया जिसके सुझावों के आधार पर, विभाग ने 7 सितंबर को ड्राफ्ट गाइडलाइन्स जारी की थीं. इन ड्राफ्ट गाइडलाइन्स में, केंद्र सरकार ने 10 डार्क पैटर्न की सूची दी थी लेकिन अंतिम सूची को 13 तक बढ़ा दिया गया है.
इन्हीं 13 डार्क पैटर्न्स की एक सूची सीसीपीए की गाइडलाइन्स में भी साझा की गई है. ये हैं - फॉल्स अर्जेंसी, बास्केट स्नीकिंग, कन्फर्म शेमिंग, फोर्स्ड एक्शन, सब्सक्रिप्शन ट्रैप, इंटरफ़ेस इंटरफेरेंस, बेट एंड स्विच, ड्रिप प्राइसिंग, डिस्गाइज्ड एडवर्टाइजमेंट्स, नैगिंग, ट्रिक क्वेश्चन, सास बिलिंग और रोग मैलवेयर. आइए एक-एक कर समझते हैं इनका मतलब.
1. फॉल्स अर्जेंसी - यूजर को गैरजरूरी चीजें खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना. यह दो तरीके से किया जाता है. पहला, उपयोगकर्ता के निर्णय में हेरफेर करने के लिए किसी प्रोडक्ट या सेवा की झूठी लोकप्रियता दिखाना; और दूसरा किसी प्रोडक्ट के स्टॉक्स सीमित होने की बात कहना. जाहिर है, दोनों ही स्थितियों में एक अर्जेंसी की भावना भड़काई जाती है.
2. बास्केट स्नीकिंग - यूजर की सहमति के बिना किसी प्लेटफ़ॉर्म से चेकआउट करते वक्त उनके चुने हुए प्रोडक्ट्स में किसी तरह की सर्विस या डोनेशन को ऐड कर देना. आपने अक्सर देखा होगा कि ब्लिंकिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भूखे बच्चों को खिलाने के नाम पर अतिरिक्त रुपए जोड़ दिए जाते हैं और ज्यादातर लोग उस पर ध्यान दिए बगैर पेमेंट कर देते हैं. इसे ही बास्केट स्नीकिंग कहते है.
3. कन्फर्म शेमिंग - इसका मतलब है यूजर के मन में डर या शर्म या उपहास या अपराध की भावना पैदा करने के लिए कोई फ्रेज, वीडियो, ऑडियो या किसी अन्य माध्यम का उपयोग करना ताकि यूजर को एक निश्चित तरीके से बिहेव करने के लिए तैयार किया जा सके. इसका मकसद यही होता है कि यूजर को प्लेटफ़ॉर्म से कोई प्रोडक्ट या सर्विस बेची जा सके या किसी सर्विस की मेम्बरशिप जारी रखने के लिए तैयार किया जा सके. सीधे शब्दों में कहें तो कंपनियां इन तौर-तरीकों का इस्तेमाल मुख्य रूप से कंज्यूमर की पसंद को खारिज करके व्यावसायिक लाभ कमाने के लिए करती हैं.
4. फोर्स्ड एक्शन - यह ऐसी स्थिति है जब यूजर को अपना सामान खरीदने के अलावा कोई दूसरा सामान भी खरीदने के लिए कंपनी मजबूर करती है. इसके अलावा किसी और सर्विस (जिसकी जरूरत उसे है भी नहीं) की सदस्य्ता लेने को भी कंपनी यूजर को कहती है जिसमें उसे अपनी निजी जानकारी साझा करनी पड़ जाती है. कई बार आपने फर्जी वेबसाइट पर इस तरह का कुछ देखा होगा जब आप जो पेज खोलना चाहते हैं वो आपको कहीं और ही रीडायरेक्ट कर देते हैं और जब तक उस नए पेज पर लॉगिन ना कर लें तब तक आप अपना मनचाहा पेज नहीं खोल पाएंगे.
5. सब्सक्रिप्शन ट्रैप - इसके अंदर मोटे तौर पर 3-4 बातें आती हैं, जिनमें पहली तो है पेड सब्सक्रिप्शन को रद्द करने की प्रक्रिया को असंभव या काफी जटिल बना देना. दूसरी है सब्सक्रिप्शन ख़त्म करने का ऑप्शन ही छिपा देना. इसके अलावा फ्री सब्सक्रिप्शन के लिए पेमेंट डिटेल्स मांगना और फ्री ट्रायल ख़त्म करने की प्रक्रिया को भ्रामक रखना.
6. इंटरफेस इंटरफेरेंस - अपने हिसाब से प्रोडक्ट की किसी जानकारी को बताना या छिपाना. कंपनियां अक्सर ऐसा करने के लिए अपने इंटरफ़ेस को इस तरह डिज़ाइन करवाती हैं कि यूज़र जो ढूंढना चाहता है, उसे उसकी जगह कोई और ही प्रोडक्ट्स दिखते हैं. यह प्रोडक्ट्स यूजर के सर्च रिजल्ट से मिलते-जुलते होते हैं और ट्रैप में फंसकर यूजर वही प्रोडक्ट खरीद लेता है.
7. बेट एंड स्विच - यूजर की सर्च के मुताबिक रिजल्ट्स की वरीयता बदल देना.
8. ड्रिप प्राइसिंग - यह वैसी स्थिति है जब प्रोडक्ट की कीमत को लेकर स्पष्टता ना बरती जाए. ऐसे मामलों में प्राइस के कुछ एलिमेंट्स को पहले से नहीं बताया जाता या खरीददारी के बाद बताया जाता है. इसके अलावा 'ड्रिप प्राइसिंग' में ऐसे भी प्रोडक्ट या सर्विस आते हैं जिनको 'फ्री' बोलकर एडवर्टाइज किया जाता है लेकिन इस्तेमाल करने के दौरान पैसे मांग लिए जाते हैं. इसके अलावा ऐसी शर्तें लगाई जाती हैं जिसमें पेमेंट करने के बावजूद किसी यूजर को उस सर्विस का इस्तेमाल करने से तब तक रोका जाता है, जब तक कि वो कुछ और ना खरीद ले.
9. डिस्गाइज्ड एडवर्टाइजमेंट्स - ऐसे ऐड्स जिन्हें कंटेंट की शक्ल में ही इंटरफेस में छिपा दिया जाता है. आपको लगेगा कि यह भी कंटेंट का हिस्सा है मगर वो एडवरटाइजमेंट होता है.
10. नैगिंग - 'नैगिंग' का सीधे शब्दों में मतलब होता है परेशान करना. यह भी एक तरह का डार्क पैटर्न है जिसमें बार-बार यूज़र से पेमेंट करने के लिए कहा जाता है या सर्विस को बार-बार बीच में ही डिसरप्ट कर दिया जाता है. इस डिसरप्शन को हटाने के लिए क्लोजिंग विंडो भी अक्सर स्पष्ट नहीं होता है.
11. ट्रिक क्वेश्चन - प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी भ्रामक भाषा का इस्तेमाल जिससे यूजर वह काम करने की तरफ प्रोत्साहित हो जो कंपनियां चाहती हैं.
12. सास बिलिंग - 'सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस' (SaaS) बिजनेस मॉडल में अपने बिज़नेस के सॉफ़्टवेयर को क्लाउड पर डाला जाता है और यूजर्स इसे मंथली या ईयरली मेम्बरशिप के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके तहत यूजर्स को अपने फिजिकल डिवाइस पर कुछ भी डाउनलोड और इंस्टॉल करने की जरूरत नहीं है और सिर्फ इंटरनेट की मदद से इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. इस मॉडल में कंपनियों के धांधली का तरीका कुछ इस तरह है कि आपका 'फ्री ट्रायल' ख़त्म होने के वक्त वह आपको इसकी सूचना नहीं देंगी और आपके कार्ड से पैसे ऑटो-डेबिट हो जाएंगे. फ्री ट्रायल के अलावा सब्सक्रिप्शन के साथ भी यह खेल कंपनियां करती हैं कि वे आपको सब्सक्रिप्शन ख़त्म होने की सूचना ना देकर और अगला सब्सक्रिप्शन रिन्यू कर देती हैं और पैसे काट लेती हैं. इसी दुष्चक्र को SaaS बिलिंग कहते हैं.
13. रोग मैलवेयर - रोग या दुष्ट मैलवेयर दरअसल रैंसमवेयर या स्केयरवेयर का इस्तेमाल करके यूजर को धोखे से यह विश्वास दिलाता है कि उनके कंप्यूटर पर कोई वायरस है. इसका उद्देश्य उन्हें नकली मैलवेयर हटाने वाले टूल के लिए पेमेंट करने के लिए राजी करना है जो असल में उनके कंप्यूटर पर मैलवेयर इंस्टॉल कर देता है.
जैसा कि कहा गया है, कंज्यूमर प्रोटेक्ट एक्ट, 2019 इनमें से किसी भी डार्क पैटर्न पर भारी जुर्माना लगाएगा. कानून के निर्देशों नहीं मानने की स्थिति में छह महीने तक की कैद, 20 लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों ही हो सकता. इसके अलावा, उपभोक्ताओं के हितों को प्रभावित करने वाला झूठा या भ्रामक विज्ञापन देना भी एक दंडनीय अपराध है, जिसमें दो साल तक की कैद और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. अगर अपराध बार-बार किया गया तो जेल की अवधि और जुर्माना भी बढ़ जाएगा.