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क्या सुप्रीम कोर्ट में रद्द हो सकता है वक्फ कानून; संसद से पास, लेकिन अब आगे क्या?

संसद से पास वक्फ कानून के लागू होते ही यह मामला सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है, अब सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में फैसला लेना है

सुप्रीम कोर्ट में नव अधिसूचित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है
सुप्रीम कोर्ट में नव अधिसूचित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है
अपडेटेड 15 अप्रैल , 2025

वक्फ बिल के संसद के दोनों सदनों से पास होकर कानून बनने के करीब 14 दिन बाद 16 अप्रैल को देश के सर्वोच्च अदालत में इस पर जिरह होगी. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में 3 न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी.

यह सुनवाई इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि वक्फ अधिनियम से जुड़े इस संशोधन के कारण कई राज्यों और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति बन गई है. लेकिन, क्या सुप्रीम कोर्ट में संसद से पास यह कानून रद्द हो सकता है, आखिर इस मामले में अब आगे क्या होगा?

हालिया वक्फ कानून के लागू होने तक की कहानी  

पिछले साल अगस्त की 8 तारीख को पहली बार लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया गया. इस बिल के संसद में पेश होते ही देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. इसके बाद बिल के ड्राफ्ट को संसद की जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी यानी JPC को भेज दिया गया.

इस साल जनवरी की 27 तारीख को एक दर्जन से ज्यादा संशोधनों के बाद JPC ने बिल के ड्राफ्ट को मंजूरी दे दी. हालांकि, JPC में शामिल विपक्षी सांसद इस बिल में और ज्यादा बदलाव चाहते थे. इसी वजह से उन्होंने बिल के खिलाफ मजबूती से विरोध जताया.

इन विरोध के बावजूद सरकार ने 13 फरवरी को JPC की रिपोर्ट संसद में पेश की और 6 दिन बाद 19 फरवरी को कैबिनेट से इस बिल को मंजूरी मिल गई. 2 अप्रैल को लोकसभा और 3 अप्रैल को राज्यसभा से ये बिल पास हो गया. इसके बाद राष्ट्रपति के दस्तखत होते ही बिल कानून बन गया.

अब इस कानून के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी CPI और तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टी तमिलगा वेट्ट्री कषगम यानी TVK ने भी चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. इन दोनों के अलावा भी कई और लोगों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 16 अप्रैल को सुनवाई करेगी.

संसद से पास वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाओं का मुख्य आधार क्या है और इसमें क्या दलील दी गई है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मुस्लिम समुदाय के प्रति राजनीतिक दुराग्रह और उत्पीड़न वाला बताया है. याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में ये बातें कही हैं-
1. हिन्दू और सिख धर्मों की संपत्तियों के प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप नहीं है, ऐसे में मुस्लिम धर्म से जुड़ी संपत्तियों को लेकर केंद्र का नया वक्फ कानून संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता के अधिकारों का उल्लंघन है.
2. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति, अनुच्छेद-26 यानी धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन है.
3. दानदाता को 5 साल से अधिक मुस्लिम होने की शर्त और गैर-मुस्लिमों को वक्फ के माध्यम से दान से वंचित करना भेदभावपूर्ण है.
4. इस्लाम धर्म के लिए इस्तेमाल की जा रही संपत्ति को वक्फ की संपत्ति मानने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद-300-ए का उल्लंघन है.
5. वक्फ कानून में कलेक्टर को पावर मिलने और ऑडिट कराने के सरकारी हस्तक्षेप से अनुच्छेद-25, 29 और 30 का उल्लंघन होगा.
6. संविधान की अनुसूची-7 में राज्य सूची की एंट्री-11 के तहत श्मशान घाट का विषय राज्य सरकारों के अधीन है. इस पर संसद से कानून बनाना गलत है.
7. वक्फ की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के रजिस्ट्रेशन कराने की अनिवार्यता और लिमिटेशन कानून लागू होने से वक्फ की संपत्तियों पर कानूनी विवाद और मुकदमेबाजी बढ़ेगी.

केंद्र सरकार वक्फ कानून के समर्थन में क्या तर्क दे सकती है?

विराग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाओं के विरोध में सरकार निम्न तर्क दे सकती है-
1. केशवानंद भारती मामले में संविधान पीठ के 1973 के फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट और संसद के बीच काम का बंटवारा है. वक्फ कानून से संविधान के बेसिक ढांचे सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होता है.
2. संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची की एंट्री-5 और 28 के अनुसार संसद को वक्फ से जुड़े विषय पर कानून बनाने का अधिकार है.
3. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के उल्लंघन के आरोप गलत हैं. वक्फ बिल पर जेपीसी में लंबा विमर्श हुआ था, जहां 15-11 सांसदों के बहुमत से सरकार ने 14 संशोधन स्वीकार किए थे.
4. संसद ने 1954 और 1995 में कानून बनाए थे. नए कानून में साल 2013 के अधिकांश संशोधनों को पलट दिया गया है. संसद कानून में अगर कोई संशोधन कर सकती है तो उन्हें वापस पलट भी सकती है.
5. कलेक्टर और अन्य अधिकारी राज्य सरकार के अधीन काम करते हैं. वक्फ की संपत्तियों पर भी केंद्र सरकार का अधिकार नहीं होगा. राज्यों को वक्फ कानून में विधानसभा से स्थानीय स्तर पर संशोधन का अधिकार है, लेकिन इनके लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होगी. इसलिए वक्फ कानून संघीय व्यवस्था के खिलाफ नहीं है.
6. यह कानून धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के संरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ नहीं है. इस कानून से महिलाओं और मुस्लिमों में हाशिये के लोगों जैसे शिया, बोहरा और आगाखानी जैसे समुदायों का विकास होगा.
7. संरक्षित स्मारकों और अनुसूची-5 और 6 के तहत आदिवासी इलाकों में वक्फ संपत्ति का दखल खत्म होने से संविधान और कानून का शासन प्रभावी होगा.
8. वक्फ की संपत्ति के प्रबंधन में मुतवल्ली (प्रशासक) और वाकिफ (लाभार्थी) दोनों ही मुस्लिम समुदाय से होंगे. संपत्तियों के पंजीकरण, बेहतर प्रबंधन और मुकदमेबाजी कम होने से इनका इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए होगा, इसलिए इस कानून को मुस्लिमों के मामले में अनुचित हस्तक्षेप नहीं माना जाना चाहिए.  

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जो कैविएट दायर किया है, उसका क्या मतलब है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि सिविल प्रोसिजर कोड यानी CPC 1908 के कानून की धारा 148-ए में कैविएट का प्रावधान है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने निर्मल चंद्र दत्ता मामले में कहा था कि कैविएट से सामने वाले पक्ष को मुकदमे की जानकारी और अलर्ट मिल जाता है.

सुप्रीम कोर्ट नियम 2013 के ऑर्डर-15 रुल-2 और ऑर्डर-21 रुल-3 के प्रावधानों के अनुसार कैविएट दायर करने के बाद दूसरे पक्ष को मामले में पेश होने का अधिकार मिल जाता है. कैविएट के कानूनी अधिकार का इस्तेमाल आमतौर पर संपत्ति से जुड़े मुकदमों में होता है, जिससे कि सामने वाला पक्ष अदालत से एकतरफा आदेश हासिल नहीं कर सके.

दिल्ली हाईकोर्ट में अनुच्छेद-226 के तहत दायर पीआईएल की कॉपी सरकार को भी देनी पड़ती है, लेकिन अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से अगर नोटिस जारी होता है तभी सरकार को याचिका की कॉपी देनी पड़ती है.

वक्फ मामले में कैविएट दायर करने की वजह से सरकार का पक्ष सुनने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट के जज स्थगन की अर्जी पर कोई आदेश पारित करेंगे.

संसद से पास होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट वक्फ कानून को किन तीन सवालों के आधार पर परखेगी?

संसद से पास वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाएगी, ये तो बाद की बात है. हालांकि, इस कानून की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट तीन सवालों के आधार पर इसे परखेगी-
पहला- जिस व्यक्ति या संस्था ने कानून पारित किया है, उसे इसका अधिकार था या नहीं था? यानी विधायी सक्षमता यानी लेजिस्लेटिव कंपीटेंस का सवाल.
दूसरा- संसद से पास यह कानून संविधान के किसी प्रावधान या मौलिक अधिकारों का तो उल्लंघन नहीं करता. साथ ही क्या यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ तो नहीं है.
तीसरा- क्या संविधान को नजरअंदाज कर मनमाने ढंग से कानून पारित किया गया है.

वक्फ पर सुप्रीम कोर्ट में अब आगे क्या होगा, इस कानून के रद्द होने की कितनी संभावना है?

सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक इस मामले में दायर याचिकाओं के तहत कुछ इस तरह कार्रवाई हो सकती है- 
1. राष्ट्रपति की मंजूरी और नोटिफिकेशन के बाद कानून पूरे देश में लागू हो गया है, लेकिन याचिकाकर्ता कानून पर रोक लगाने की मांग पर जोर देंगे. 
2. नए कानून के अनेक प्रावधानों पर नियम बनने हैं और इस कानून का क्रियान्वयन राज्य सरकारों को करना है. वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिमों को शामिल करने पर सबसे ज्यादा आपत्ति है. इस प्रावधान को तुरंत लागू नहीं करने पर सरकार सहमति दे सकती है.
3. कई सांसदों ने राष्ट्रपति की मंजूरी के पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी जो संवैधानिक दृष्टि से गलत है. राज्य सरकारें भी अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर नहीं कर सकतीं. ऐसी याचिकाओं के खिलाफ सरकार और अन्य पक्ष विरोध कर सकते हैं.
4. केंद्र सरकार के समर्थन में भी कुछ राज्य सरकारें अर्जी लगा सकती हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार, राज्य सरकार, याचिकाकर्ता और विरोधी पक्ष का जवाब सुनना होगा. नागरिकता कानून, पूजा स्थल उपासना कानून जैसे अनेक मामलों में पिछले कई सालों से सुप्रीम कोर्ट में मुकदमेबाजी हो रही है. ऐसे में वक्फ मामले के निपटारे में भी कई वर्ष लग सकते हैं.
5. पुराने वक्फ कानून को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दिल्ली हाईकोर्ट में लंबित हैं जिनके ट्रांसफर की मांग हो सकती है.
6. सुप्रीम कोर्ट में दायर नई याचिकाओं में पुराने वक्फ कानून 1995 की धारा-4 से 8, 28, 52, 54, 83, 85, 89 और 101 को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ताओं के अनुसार वक्फ कानून के तहत जारी कोई भी अधिसूचना, आदेश या नियम हिंदुओं और गैर-मुस्लिमों की संपत्ति पर लागू नहीं हो सकते. मुस्लिमों के वक्फ बोर्ड को विशेष दर्जा देना संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. कुल मिलाकर ऐसी याचिकाओं से विवादों का पिटारा खुल सकता है.  
7. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खन्ना जल्द रिटायर हो रहे हैं. इसलिए आगे चलकर नई बेंच में सुनवाई होगी. उसके बाद मामले की सुनवाई के लिए 5 जजों के संविधान पीठ के गठन की मांग भी हो सकती है.

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