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UCC लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड; लिव-इन पर क्या बदला नियम?

उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. इसके लागू होते ही उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशन में रहने वाले लोगों के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो जाएगा

उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर रजिस्ट्रेशन जरूरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
उत्तराखंड में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर रजिस्ट्रेशन जरूरी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
अपडेटेड 27 जनवरी , 2025

जनवरी की 28 तारीख को पीएम मोदी देहरादून जा रहे हैं. इससे ठीक एक दिन पहले 27 जनवरी को दोपहर 12.30 बजते ही सीएम पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता पोर्टल की शुरुआत की. 

इसके साथ ही उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया. अब राज्य में बिना शादी किए एक साथ रहने वाले पुरुषों और महिलाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी हो गया है.

इतना ही नहीं परिवारिक संपत्ति से लेकर शादी-ब्याह तक के नियम भी बदल गए हैं. अब उत्तराखंड में लागू होने वाले इस विवादित कानून के बारे में जानते हैं...

उत्तराखंड में लागू होने वाला समान नागरिक संहिता कानून क्या है?

यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून को लागू करने से पहले उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा, "यूनिफॉर्म सिविल कोड धर्म, लिंग, जाति या समुदाय के आधार पर भेदभाव से मुक्त एक समान समाज की नींव स्थापित करेगी." दरअसल, भारत में दो तरह के कानून हैं- 1. क्रिमिनल 2. सिविल. 

मर्डर, मारपीट, चोरी, हत्या, अपहरण, धमकी जैसे मामलों में पुलिस क्रिमिनल कानून के आधार पर कार्रवाई करती है. जबकि संपत्ति, परिवारिक मामलों में सिविल कानून के आधार पर फैसले लिया जाता है. 

क्रिमनल कानून सभी लोगों के लिए एक समान होते हैं. जबकि सिविल मामले अलग-अलग धर्मों और समुदाय के लिए अलग हो सकते हैं. जैसे हिंदुओं की शादी और तलाक हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होते हैं. वहीं मुस्लिमों में ये पर्सनल लॉ के जरिए होता है. यूनिफॉर्म सिविल कोड एक सिविल कानून है. 

लंबे समय से भारत में ज्यादातर धर्म और समुदाय से जुड़े लोगों के लिए एक जैसा सिविल कानून लागू करने की मांग होती रही हैं. उत्तराखंड का ये कानून उसी का पहला पड़ाव है. 

इस कानून के लागू होने से उत्तराखंड में क्या-क्या बदल जाएगा?

उत्तराखंड के इस कानून की सबसे खास बात तो ये है कि ये सिर्फ राज्य में रहने वाले लोगों पर नहीं बल्कि राज्य से बाहर रहने वाले उत्तराखंड के लोगों पर भी लागू होती है. इस कानून के लागू होने से उत्तराखंड के नियम और कानून में ये बड़े बदलाव हो जाएंगे…

बेटे और बेटी के लिए समान संपत्ति का अधिकार: समान नागरिक संहिता के लागू होने से उत्तराखंड के बेटे और बेटियों को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा. चाहे वह किसी भी कैटेगरी के हों. 

विवाह के लिए प्रावधान: बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लगेगा. इस कानून के मुताबिक विवाह की कानूनी इजाजत उन्हीं लोगों को दी जाएगी जो एक साथ रहने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ हों. लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों की उम्र 18 साल होना जरूरी है. शादी के वक्त पति या पत्नी में किसी एक के जिंदा होने पर कानूनी रूप से शादी करने के लिए कोर्ट से इजाजत लेना या तलाक पत्र होना जरूरी है.  

वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को खत्म करना: इस कानून का उद्देश्य संपत्ति के अधिकारों के संबंध में वैध और नाजायज बच्चों के बीच के अंतर को खत्म करना है.

गोद लिए गए और जैविक रूप से जन्मे बच्चों को एक समान अधिकार दिए गए हैं. यह कानून यह तय करेगा कि गोद लिए गए, सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए या किसी दूसरे तरह से पैदा हुए बच्चों को समान माना जाए. 

मृत्यु के बाद समान संपत्ति अधिकार: किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद, कानूनी तौर पर उसके जीवनसाथी और बच्चों को समान रूप से संपत्ति का अधिकार मिलेगा. इसके अलावा मृत व्यक्ति के माता-पिता को भी समान अधिकार दिए जाएंगे. पिछले कानून में ये अधिकार सिर्फ मृतक की मां को मिलता था. 

तलाक लेने के नियम सख्त होंगे: अब पति-पत्नी को तलाक तभी मिलेगा, जब दोनों के आधार और कारण एक जैसे होंगे. केवल एक पक्ष के कारण देने पर तलाक नहीं मिल सकेगा.

क्या ये कानून उत्तराखंड के सभी लोगों पर लागू होंगे? 

नहीं, ये कानून संविधान के अनुच्छेद 342 और अनुच्छेद 366 (25) के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों (एसटी) पर लागू नहीं होता है. इसके साथ ही भाग XXI के तहत संरक्षित प्राधिकरण-सशक्त व्यक्तियों और समुदायों को भी इसके दायरे से बाहर रखा गया है.

यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून को लेकर उत्तराखंड में विवाद क्यों हो रहा है?

यूनिफॉर्म सिविल कोड से उत्तराखंड के पहाड़ी जनजातियों को बाहर रखा गया है. ऐसे में उन समुदाय का विरोध अब खत्म हो गया है. हालांकि, यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड का सबसे ज्यादा विरोध अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं.

मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है. इस कारण शादी और परंपराओं से जुड़े मामले में सभी पर समान कानून थोपना संविधान के खिलाफ है. वे इस कानून को 1400 साल पुराने शरीया कानून के खिलाफ मान रहे हैं. 

भारत में कब से हो रही है यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून की मांग 

साल 1835, भारत पर ब्रिटिश सरकार शासन कर रही थी. इस साल सरकार ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें देशभर में एक समान कानून बनाने की बात कही गई. 1840 में इस कानून को लागू किया गया तो हर धर्म के लिए अलग-अलग कानून थे. यहीं से विवाद शुरू हो गया. 

देश की आजादी से 6 साल पहले बीएन राव कमेटी ने हिंदुओं के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने की बात की. हालांकि, तब से ही ये मांग होती रही, लेकिन इसे किसी सरकार ने लागू करने की हिम्मत नहीं की. अब उत्तराखंड इस कानून को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.

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सुरक्षाकर्मियों ने उससे पूछा, “किससे मिलना है?” आत्मविश्वास से भरी वो लड़की बोली, "पंडित जी से मिलना है." गार्ड ने लड़की को PM आवास में नहीं जाने दिया तो वह चिरौरी करने लगी. 

कुछ देर बाद इजाजत मिलते ही वह खुशी से दौड़ते हुए तीन मूर्ति भवन के कैंपस में घुस गई. उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू कहीं जाने के लिए अपनी सफेद कार में सवार हो रहे थे. पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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