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गिरते शेयर बाजार को ‘ब्लैक मंडे 2.0’ क्यों कहा जा रहा, इसने कैसे 38 साल पुरानी यादों को ताजा किया?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 'टैरिफ बम' ने दुनिया को हिलाकर रख दिया है. इसका असर भारत पर भी देखने को मिल रहा है. सोमवार को सेंसेक्स खुलते ही 4 हजार अंक तक गिरा, जिससे बाजार में त्राहिमाम मच गया. 

राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ लगाने के बाद भारतीय बाजार में भी भारी गिरावट (सांकेतिक फोटो)
राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ लगाने के बाद भारतीय बाजार में भी भारी गिरावट (सांकेतिक फोटो)
अपडेटेड 7 अप्रैल , 2025

अप्रैल की 7 तारीख की सुबह सेंसेक्स में 4 हजार अंकों की भारी गिरावट देखने को मिली. इससे पहले कोरोना महामारी के दौरान 23 मार्च 2020 को भारत में राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद सेंसेक्स में 3935 अंकों की गिरावट हुई थी. 

अब 5 साल बाद एक बार फिर उसी तरह के हालात देखने को मिल रहे हैं. सिर्फ भारत नहीं बल्कि चीन, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देशों के शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखने को मिली है. अमेरिकी बाजार में भारी बिकवाली जारी है. दुनियाभर के शेयर बाजार में मचे उथल-पुथल से निवेशकों की चिंता बढ़ गई है और 38 साल पुराने ‘ब्लैक मंडे’ की यादों को ताजा कर दिया है. आखिर इस 'ब्लैक मंडे' टर्म का मतलब क्या है, और यह कहां से आया है?

ब्लैक मंडे के इतिहास के बारे में जानने के लिए घड़ी की सुई को करीब 38 साल पीछे मोड़ना पड़ेगा. यह 19 अक्तूबर, 1987 की तारीख थी, और दिन सोमवार का था. लेकिन इस दिन कुछ ऐसा होना था, जो इसे इतिहास में एक संदर्भ बिंदु के रूप में स्थापित कर देने वाला था. फोर्ब्स के मुताबिक, इस तारीखी दिन डो जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज (डीजेआईए) का शेयर एक ही दिन में करीब 23 फीसद तक गिर गया.

डीजेआईए एक स्टॉक मार्केट इंडेक्स है जो न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज (एनवाईएसई) और नेस्डेक पर कारोबार करने वाली 30 बड़ी, सरकारी स्वामित्व वाली ब्लू-चिप कंपनियों को ट्रैक करता है. डो जोन्स का नाम चार्ल्स डो के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने साल 1896 में अपने बिजनेस पार्टनर एडवर्ड जोन्स के साथ मिलकर यह इंडेक्स बनाया था. इसे डो-30 के नाम से भी जाना जाता है, और इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था का एक व्यापक पैमाना माना जाता है.

बहरहाल, उस दिन डीजेआईए में जो गिरावट हुई, वो बहुत हद तक अप्रत्याशित थी. इतनी कि बाजार में एक दिन में ऐसी गिरावट संभव नहीं मानी जाती थी, क्योंकि आंकड़ों के मुताबिक, इस तरह की गिरावट या कहें विचलन (डेविएशन) काफी रेयर थे. और डेटा इस तरह के विचलन को 'ट्वेंटी टू स्टैंडर्ड डेविएशन प्वॉइंट इवेंट' पर रखते थे, जो काफी दुर्लभ मानी जाती है.

वह गिरावट कितनी बड़ी थी, और वो इवेंट कितना दुर्लभ था, इसे वॉल स्ट्रीट जर्नल के रिपोर्टर रोजर लोवेनस्टीन ने साल 2000 में आई अपनी एक पुस्तक 'व्हेन जीनियस फेल' में दर्ज किया था. उन्होंने लिखा,"अर्थशास्त्रियों ने बाद में यह पता लगाया कि बाजार की ऐतिहासिक अस्थिरता के आधार पर,अगर ब्रह्मांड के निर्माण के बाद से बाजार हर दिन खुला रहता, तो भी एक दिन में इसके इतना गिरने की आशंका नहीं होती. वास्तव में, अगर ब्रह्मांड का जीवन एक अरब बार दोहराया गया होता, तब भी इस तरह की गिरावट सैद्धांतिक रूप से 'असंभव' ही थी."

ब्लैक मंडे और उसके पीछे के बड़े कारण

लेकिन फिर भी ऐसा हुआ तब इस घटना को 'ब्लैक मंडे' कहा गया. उस समय इस गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारक थे. मसलन, साल 1987 की पहली तीन तिमाहियों में आर्थिक विकास दर काफी धीमी हो गई थी, और मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही थी. इसके अलावा निवेशक 1970 के दशक की हालिया मुद्रास्फीति (सरल शब्दों में कहें तो महंगाई) के अनुभव को देखते हुए घबराए हुए थे. 19 अक्तूबर,1987 यानी सोमवार से पहले वाले सप्ताह में शेयर बाजार में करीब 10 फीसद की गिरावट आई थी. इससे भी निवेशकों की चिंताएं बढ़ गई थीं. लेकिन इस गिरावट के सबसे बड़े कारकों में से एक पोर्टफोलियो इंश्योरेंस स्ट्रैट्जी भी थी.

दरअसल, पोर्टफोलियो इंश्योरेंस एक हेजिंग रणनीति है. अब यहां आगे बढ़ने से पहले थोड़ा हेजिंग के बारे में समझते हैं. हेजिंग शब्द का मतलब होता है - बाड़ा लगाना. जैसे गांवों में लोग अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों में बाड़े लगा देते हैं. शेयर बाजार के संबंध में अगर हेजिंग की बात करें तो इसका सीधा-सा मतलब एक रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम है, जिसका इस्तेमाल निवेशक प्रतिकूल समय में अपने नुकसानों को कम करने के लिए करते हैं.

इस रणनीति में आमतौर पर 'पुट ऑप्शन' और 'फ्यूचर' जैसे डेरिवेटिव शामिल होते हैं. अगर कोई निवेशक स्टॉक का मालिक है, तो वह उन्हीं स्टॉक के 'पुट ऑप्शन' खरीद सकता है. पुट ऑप्शन खरीदने का फायदा यह है कि जब शेयर की कीमत में गिरावट होती है, तो इसके मूल्य बढ़ जाते हैं. इस तरह स्टॉक की कीमतों में गिरावट की स्थिति में पुट ऑप्शन से होने वाला लाभ स्टॉक से होने वाले नुकसान को बैलेंस कर सकता है.

जैसे मान लीजिए कि किसी निवेशक के पास 50,000 रुपये मूल्य की किसी कंपनी के शेयर हैं, लेकिन वह बाजार में संभावित अल्पकालीन गिरावट को लेकर चिंतित है. ऐसे में वह बचाव के लिए (जिसे स्टॉक मार्केट की भाषा में हेज करना कहते हैं) उन्हीं शेयरों पर 'पुट ऑप्शन' खरीद सकता है. यानी अगर शेयर के दाम गिरते भी हैं तो इस रणनीति के चलते उसे कम-से-कम नुकसान होगा, क्योंकि पुट ऑप्शन में यह सहूलियत है कि शेयर की कीमत गिरने पर इसके मूल्य में बढ़ोत्तरी होती है. इस तरह निवेशक का समग्र घाटा पूरी तरह तो नहीं, लेकिन कम जरूर हो सकता है.

इसी तरह, फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट (वायदा कारोबार) भी है, जो शेयर बाजार में होने वाले वित्तीय जोखिमों से बचने का एक बेहतर तरीका होता है. आइए इसे उदाहरण से समझते हैं. मान लीजिए कि एक निवेशक ने एक निश्चित तारीख पर एक तय अवधि के लिए 50 रुपये प्रति शेयर के मूल्य पर किसी कंपनी के 100 शेयरों के लिए फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीदा. तो जब तक वो कॉन्ट्रैक्ट खत्म नहीं हो जाता, वह निवेशक उसी कीमत पर शेयर खरीदना जारी रख सकता है, भले ही उस शेयर की मौजूदा कीमत आसमान छुए या गर्त में चली जाए.

मान लीजिए उस शेयर का दाम 60 रु. हो गया, तो इस स्थिति में उस निवेशक को 1000 रुपये का लाभ होगा. लेकिन अब फर्ज कीजिए कि उस शेयर की कीमत 40 रुपये प्रति शेयर हो गई, तो इस स्थिति में 1000 रुपये का नुकसान हो गया. लेकिन चूंकि कॉन्ट्रैक्ट में दर्ज है प्रति शेयर 50 रु., तो उस निवेशक को इसी तय कीमत पर तब तक शेयर खरीदना होगा, जब तक कॉन्ट्रैक्ट की अवधि बची हुई है. 

इस तरह पोर्टफोलियो इंश्योरेंस भी एक हेजिंग रणनीति है जिसका इस्तेमाल स्टॉक के मूल्य में गिरावट आने पर स्टॉक को बेचे बिना पोर्टफोलियो के घाटे को सीमित या कम करने के लिए किया जाता है. इसे बनाए रखने के लिए पोर्टफोलियो प्रबंधकों को बाजार के उतार-चढ़ाव पर हेज को एडजस्ट (समायोजित) करने की जरूरत होती है.

ब्लैक मंडे से पहले के सालों में पोर्टफोलियो बीमा का इस्तेमाल लोकप्रियता हासिल कर चुका था, और अक्टूबर 1987 तक, इस योजना के तहत दसियों अरब डॉलर का प्रबंधन किया जा चुका था.

चूंकि इस योजना के तहत निवेशक अपने घाटे को सीमित करते हुए ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते थे, इसलिए हरेक निवेशक के लिए पोर्टफोलियो बीमा रणनीति का इस्तेमाल करना पूरी तरह से तर्कसंगत था. लेकिन इसमें मुश्किल यह थी कि एक पूरे सिस्टम - व्यापी आधार पर एक समान रणनीति का इस्तेमाल करके इतनी अधिक पूंजी लगाना एक तरह से जोखिम से भरा हो सकता था. उदाहरण के रूप में इसे ऐसे समझिए कि क्या हो अगर एक क्रूजशिप पर सवार सभी लोग एक ही लाइफबोट में सवार होने की कोशिश करें?

बहरहाल, ब्लैक मंडे से पहले के हफ्तों में जब बाजार में उतार-चढ़ाव बढ़ गया, तो पोर्टफोलियो बीमा रणनीति ने निवेश प्रबंधकों को अपनी हेजिंग बढ़ाने के लिए, दूसरे शब्दों में कहें तो खुद को सुरक्षित करने के प्रयास में पैसे जुटाने के लिए होल्डिंग्स बेचने पर मजबूर कर दिया. गिरते बाजार में बिक्री से होने वाले नुकसान ने पोर्टफोलियो बीमा एल्गोरिदम को और ज्यादा हेजिंग करने के लिए और भी ज्यादा संपत्ति बेचने के लिए प्रेरित किया.

घाटे के इस फीडबैक लूप ने और भी ज्यादा बिक्री को जन्म दिया, जिससे और ज्यादा नुकसान हुआ. नतीजतन, और भी बिक्री बढ़ी, और भी ज्यादा नुकसान हुआ. इसी तरह इस प्रक्रिया में बाजार में तारीखी तौर पर 23 फीसद की गिरावट दर्ज की जा चुकी थी.

साल 1987 में मॉर्गन स्टेनली में क्राइसिस मैनेजमेंट के प्रमुख रहे रिचर्ड बुक्सटेबर ने अपनी किताब 'ए डीमन ऑफ आवर ओन डिजाइन' में इस घटना के बारे में लिखा, "अगर एक छोटा पोर्टफोलियो इस तरह की (पोर्टफोलियो बीमा योजना) रणनीति का इस्तेमाल करता है, तो लिक्विडिटी कोई समस्या नहीं होगी. लेकिन अगर बाजार में हर कोई ऐसा करने की कोशिश कर रहा है, तो यह एक बुरे सपने की तरह साबित हो सकता है. कुछ-कुछ वैसा ही, कि एक क्रूजशिप पर सवार सभी लोग एक ही लाइफबोट में सवार होने की कोशिश करें, लेकिन क्या वह तैर पाएगी?" 

और भी रहे हैं ब्लैक मंडे

वैसे तो "ब्लैक मंडे" शब्द का इस्तेमाल सामान्यतः 1987 में शेयर बाजार में हुई गिरावट के लिए किया जाता है, लेकिन इसे सप्ताह के पहले दिन कीमतों में आई किसी भी तरह की अचानक और एकदिनी गिरावट के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है.

इस सिलसिले में पहला ब्लैक मंडे 28 अक्तूबर, 1929 को माना जाता है. इसी दिन से उस घटना की शुरुआत मानी जाती है, जिसकी वजह से अमेरिका में चर्चित आर्थिक महामंदी आई थी. उस दिन शेयरों में तकरीबन 12.8 फीसद की गिरावट आई थी. इसके अगले दिन यानी 29 अक्तूबर भी काफी मुश्किल भरा रहा, जब अमेरिकी शेयर बाजार में एक बार फिर 12 फीसद की गिरावट हुई. इसे ब्लैक ट्यूजडे (ब्लैक मंगलवार) कहा गया.

अगस्त 2015 में, चीन के शेयर बाजारों में इसी तरह की एक गिरावट देखी गई. तब इसे जानकारों ने "चीन का ब्लैक मंडे" कहा. 5 अगस्त, 2024 को भी एशियाई शेयर बाजारों खासकर जापान का निक्‍केई इंडेक्स 12.40 फीसद की गिरावट में बंद हुआ. कोरिया का कोस्पी इंडेक्स भी 8 फीसद के गर्त में है. वहीं हांगकांग के हैंगसेंग इंडेक्स में भी 2.20 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है. चीन के शंघाई कंपोजिट में भी 1.27 फीसद की गिरावट है.

ब्लैक मंडे क्या सिखाता है?

ब्लैक मंडे का पहला सबक यह है कि रेयर और असंभव घटनाएं भी घटित हो सकती हैं, और वे हर समय होती हैं. आतंकवादी हमले, युद्ध, भूकंप, सुनामी, महामारी, मर्डर हॉर्नेट्स (एक तरह की जायंट खतरनाक मक्खी) का संक्रमण, शिपिंग नहरों में फंसी नावें और शेयर बाजार में अचानक होने वाली गिरावट जैसी चीजें हर समय होती रहती हैं. इसलिए बेहतर है कि लोग अपने निवेश पोर्टफोलियो को इन सब चीजों को ध्यान में रखकर होशियारी से निवेश करें.

दूसरा सबक यह है कि बाजार मुश्किल से मुश्किल घटनाओं से उबर जाता है. पिछले 40 सालों में इस तरह की कई घटनाएं सामने आई हैं. मसलन, ब्लैक मंडे, 9/11, आर्थिक मंदी और महामारी. लेकिन इन सब के बावजूद, ब्लैक मंडे के बाद से शेयर बाजार 20 गुना से अधिक बढ़ गया है. इसका मतलब है कि सफल निवेश के लिए दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है. अल्पकालिक उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज करने की कोशिश करें, भले ही वे चरम पर हों.
 

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