scorecardresearch

इस बार देश में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ने के अनुमान क्यों लगाए जा रहे हैं!

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, उत्तर-पूर्वी भारत, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिम प्रायद्वीप और पश्चिमी तट को छोड़ दिया जाए तो शेष भारत में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ सकती है

लू से बचने के लिए खुद को तरोताजा रखती महिला (फाइल फोटो)
लू से बचने के लिए खुद को तरोताजा रखती महिला (फाइल फोटो)
अपडेटेड 18 मार्च , 2024

मार्च के शुरुआती हफ्ते में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस साल पड़ने वाली गर्मी को लेकर अनुमान जारी किया था. आईएमडी के मुताबिक, मार्च से मई तक देश के ज्यादातर हिस्से सामान्य से अधिक गर्म रह सकते हैं. इसी अवधि में 'अल नीनो' की मौजूदगी के चलते देश में लू वाले दिनों की संख्या में इजाफा हो सकता है.

आसान शब्दों में कहें तो पहले की तुलना में इस बार लोगों को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ सकता है. इस अनुमान की पुष्टि कुछ हद तक कोपरनिकस जलवायु बुलेटिन भी करता है जिसके मुताबिक, फरवरी 2024 वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया. यह औद्योगिक-पूर्व औसत तापमान से 1.77 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म था. 1850-1900 के बीच की अवधि को औद्योगिक-पूर्व समय माना जाता है. 

आईएमडी हर साल मार्च के शुरुआती हफ्ते में गर्मी के मौसम का पूर्वानुमान जारी करता है. मार्च से मई आखिर तक का समय देश में गर्मियों का समय होता है, जबकि जून से मानसून की शुरुआत हो जाती है. गर्मियों के 12 हफ्तों की ये जो शुरुआती अवधि होती है, वो लोगों के स्वास्थ्य और कृषि पर काफी अहम असर डालती है.

उदाहरण के लिए अगर मार्च में मौसम असामान्य रूप से ज्यादा गर्म हो जाए या फिर इसी दौरान खूब बारिश हो जाए तो सर्दियों में बुआई वाली उन फसलों को नुकसान हो सकता है जिनकी कटाई अप्रैल या मई के महीनों में होती है.

अल नीनो और ला नीना मौसम से जुड़ी दो ऐसी घटनाएं हैं जो वैश्विक स्तर पर मौसम और मानसून को प्रभावित करती हैं. आईएमडी के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय मोहपात्रा कहते हैं,"भले ही अल-नीनो की स्थिति कमजोर हुई है लेकिन वो अभी भी जारी है और मई तक बनी रह सकती है. अल-नीनो की घटना हीटवेव (लू) के अधिक दिनों की संख्या से भी जुड़ी है. इसलिए हम तेज गर्मी की उम्मीद कर सकते हैं."

इसके अलावा डॉ. मोहपात्रा एक कम चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण बिंदु की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "हाल के समय में देखें तो सर्दी से गर्मी के तापमान में ट्रांजिशन (संक्रमण) सामान्य के मुकाबले तेजी से हो रहा है. यह देखा गया कि वसंत जल्दी आ रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि सर्दी पहले की तुलना में जल्दी सिमट जा रही है. ग्लोबल वार्मिंग के चलते वैश्विक स्तर पर इसे देखा जा रहा है."

अल नीनो के अलावा समुद्री सतहों का बढ़ता तापमान भी गर्म मौसम रहने की पूर्वसूचना देता है. एक तरफ भारत के पश्चिम में जहां अरब सागर बहता है वहीं दूसरी ओर दक्षिण में हिंद महासागर. अरब सागर की बात करें तो इसकी सतह का तापमान सामान्य से 1.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. यह किसी भी दूसरे समुद्रों की तुलना में सबसे ज्यादा है. वहीं, हिंद महासागर का तापमान भी इस दौरान 1.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है. इस घटना और अल नीनो के चलते देश में गर्मी के प्रभाव में बढ़ोत्तरी तय मानी जा रही है. 

वहीं, लू को लेकर बात करें तो आईएमडी ने अपनी चेतावनी में यह कहा था कि इस बार की गर्मियों (मार्च से मई) के दौरान उत्तर-पूर्व भारत, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र, दक्षिण-पश्चिम प्रायद्वीप और पश्चिमी तट को छोड़ दिया जाए तो देश के अधिकांश हिस्सों में पहले से ज्यादा की संख्या में लू वाले दिन हो सकते हैं. यहां सवाल उठता है कि इसके पीछे की वजह क्या है. पर सबसे पहले अल नीनो के बारे में समझते हैं.

दरअसल, अल नीनो की घटना तब होती है जब भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र सामान्य से ज्यादा गर्म हो जाता है. इसकी वजह से पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के गर्म सतह का पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है, जिससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है. ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं.

अल नीनो के विपरीत ला नीना होता है. जहां अल नीनो भारत में शुष्क मानसून से जुड़ा है वहीं ला नीना जुलाई-अक्टूबर की अवधि के दौरान अधिक वर्षा से जुड़ी भौगोलिक घटना है जो कृषि के लिए काफी अहम होती है. अब यहां सवाल उठता है अल नीनो कैसे लू की वजह बन सकता है? 

दरअसल, अल नीनो का एक बुरा असर यह होता है कि ये अरब सागर से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं को कमजोर कर देता है. इससे दिन में आसमान बिलकुल साफ दिखता है. गर्माहट लिए सूर्य की किरणें सीधे धरती पर पहुंचती हैं और देश में प्रचंड गर्मी और लू का कारण बनती हैं. पर अल नीनो का प्रभाव केवल भारत पर ही नहीं पड़ता. इस भौगोलिक घटना के चलते पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में पेरू के तट से निकलती गर्म जलधारा के चलते हवा में गर्मी फैल जाती है. जिससे दुनिया भर में मौसम गर्म हो जाता है. 

लू की घटनाएं लोगों की मौत का कारण भी बनती रही हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में लू से होने वाली मौतों के बारे में बात करें तो साल 2016 में इससे 723 लोगों की मौत हुई थी. उस साल सर्वाधिक तापमान 48.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था.

साल 2017 में लू से 236 लोगों की मौत हुई और सर्वाधिक तापमान 47.8 डिग्री से. रहा. 2018 में 8 लोग लू से मरे और सर्वाधिक तापमान 45.6 डिग्री से. रहा. 2019 में 28 लोगों की लू से मौत हुई और सर्वोच्च तापमान 47.3 डिग्री से. रहा. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020, 2021 और 2022 में लू से किसी की मौत नहीं हुई. जबकि 2023 में तीन लोग लू से मरे और सर्वाधिक तापमान 46.8 डिग्री से. रिकॉर्ड किया गया.

Advertisement
Advertisement