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देश का सबसे लंबा समुद्री पुल होने के अलावा 'अटल सेतु' की और क्या हैं खासियतें?

अटल सेतु के निर्माण में पेरिस के एफिल टॉवर से 17 गुना ज्यादा स्टील और न्यूयॉर्क की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से चार गुना ज्यादा कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ है

अटल सेतु / फोटो-X/@MIB_India
अटल सेतु / फोटो-X@MIB_India
अपडेटेड 12 जनवरी , 2024

पहले से गतिशील मुंबई को और रफ्तार देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 'अटल सेतु' का लोकार्पण कर रहे हैं. दिसंबर, 2016 में शिलान्यास के दो सालों बाद इसपर काम शुरू हुआ, और अब सात सालों के बाद यह पूरी तरह बनकर तैयार है. शिलान्यास के वक्त इसे मुंबई ट्रांसहार्बर लिंक (MTHL) कहा गया. बाद में नाम बदला, और अब इसे औपचारिक रूप से 'अटल बिहारी वाजपेयी सेवारी-न्हावा शेवा अटल सेतु' कहा जा रहा है. 

अटल सेतु / फोटो-X@MIB_India
अटल सेतु / फोटो-X@MIB_India

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले जहां सेवारी से न्हावा शेवा के बीच की दूरी को तय करने में दो घंटे का समय लगता था, अब इस पुल के बन जाने से यह दूरी 15-20 मिनटों में पाटी जा सकेगी. इसके अलावा यह पुल मुंबई से पुणे, गोवा और दक्षिण भारत की यात्रा में लगने वाले समय को भी कम करेगा. साथ ही, यह मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बीच सबसे तेज मार्ग प्रदान करेगा. इससे मुंबई बंदरगाह और जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह के बीच कनेक्टिविटी में भी सुधार होगा. लेकिन इसकी खासियतें और भी हैं.

भारत के इस सबसे लंबे पुल की बात की जाए, तो आवाजाही के लिए इस पर 6 लेन (3+3) बने हैं. करीब 22 किलोमीटर लंबे इस पुल का तीन-चौथाई हिस्सा (16.5 किमी) समुद्र पर बना है, जबकि 5.5 किमी भाग जमीन पर निर्मित है. समुद्री लंबाई के लिहाज से भी यह भारत का सबसे लंबा समुद्री पुल बन गया है. इस पुल को बनाने में कुल 17840 करोड़ से भी ज्यादा रुपये खर्च हुए हैं, जिसमें जापान इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन एजेंसी का 15,100 करोड़ का लोन शामिल है. 

इस प्रोजेक्ट को मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण (MMRDA) ने ठेकेदारों के जरिए क्रियान्वित किया है. इसे बनाने में सबसे बड़ी चुनौती इसके समुद्री हिस्से का निर्माण था. यहां इंजीनियरों और कामगारों ने समु्द्र में 47 मीटर तक खुदाई की, ताकि एक मजबूत नींव का निर्माण हो, और पायों और डेक को मजबूती मिल सके. इस दौरान इंजीनियरों को यह भी ध्यान में रखना जरूरी था कि पहले से समुद्र में मौजूद पाइपलाइंस और संचार केबलों को कोई नुकसान न पहुंचे. 

अटल सेतु / फोटो-X@MIB_India
अटल सेतु / फोटो-X@MIB_India

प्रोजेक्ट से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, "अटल सेतु में ऐसी लाइटें लगाई गई हैं, जो जलीय पर्यावरण को डिस्टर्ब नहीं करती हैं." वहीं, एमएमआरडीए के महानगरीय आयुक्त संजय मुखर्जी के मुताबिक, इस पुल के निर्माण में 170,000 टन से ज्यादा स्टील का इस्तेमाल हुआ है. देखा जाए तो यह फ्रांस में स्थित एफिल टॉवर से 17 गुना अधिक है. इसके व्यापक निर्माण को इस बात से भी समझा जा सकता है कि इसको बनाने में अमेरिका के स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से चार गुना अधिक कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ है. 

अधिकारियों के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट में कई ऐसी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल हुई हैं, जिनका प्रयोग देश में पहली बार किया गया है. इसमें ऑर्थोट्रोपिक स्टील डेक का निर्माण किया गया है, जो व्यापक फैलाव में मददगार होते हैं. समुद्री जीवन की सुरक्षा के लिए ध्वनि और कंपन को कम करने के लिए नदी सर्कुलेशन रिंगों का उपयोग किया गया है. इसके अलावा, इस पुल पर सबसे उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणाली स्थापित की गई है जो कोहरे, कम दृश्यता और निर्धारित गति सीमा से अधिक चलने वाले वाहनों का पता लगा सकती है.

इस पुल को बनाने के लिए दुनिया भर से इंजीनियर और विशेषज्ञों की मदद ली गई, जबकि बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र वो जगहें हैं, जहां से सबसे ज्यादा मजदूरों ने काम किया है. औसतन 5400 से ज्यादा लोग रोजाना इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में लगे रहें. इस दौरान छह दुर्घटनाओं में 7 मजदूरों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. 

न्यूज एजेंसी PTI के अनुसार, इस पर मोटरसाइकिल, ऑटोरिक्शा और ट्रैक्टरों का परिचालन प्रतिबंधित रखा जाएगा. कारों, टैक्सियों, हल्के मोटर वाहनों, मिनी बसों और टू-एक्सल बसों के लिए अधिकतम गति सीमा 100 किमी प्रति घंटे होगी. लेकिन पुल पर चढ़ने और उतरने पर इसे घटाकर 40 किमी प्रति घंटे करना होगा. अटल सेतु पर चलने के लिए 250 रुपये का टोल टैक्स चुकाना होगा. एमएमआरडीए ने पहले 500 रुपये का टोल टैक्स तय किया था. फिर 4 जनवरी की बैठक में टैक्स को आधा कर दिया गया.

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