अप्रैल की 15 तारीख को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल किया है. अब 25 अप्रैल को विशेष अदालत इस चार्जशीट पर आगे की कार्रवाई को लेकर फैसला सुनाएगी.
चार्जशीट के मुताबिक राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी ने 50 लाख रुपए में 2,000 करोड़ रुपए की संपत्ति हड़पने के लिए ‘आपराधिक साजिश’ रची. लेकिन, क्या आपको पता है कि नेशनल हेराल्ड केस क्या है, ED ने राहुल और सोनिया पर जो आरोप लगाए हैं, उससे जुड़ा पूरा मामला क्या है?
नेशनल हेराल्ड से जुड़ा मनी लॉन्ड्रिंग का केस क्या है?
1938 यानी सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू होने से करीब एक साल पहले. जब जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ अत्याचार के बढ़ने से दुनिया एक बार फिर धीरे-धीरे बड़े जंग की तरफ बढ़ रही थी.
ब्रिटेन समेत यूरोपीय देश इस जंग की तैयारी में लगे थे और भारत में कांग्रेस पार्टी आजादी की मांग को मजबूती से उठा रही थी. सुभाष चंद्र बोस को हरिपुरा अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष और जवाहरलाल नेहरू को राष्ट्रीय योजना समिति का अध्यक्ष चुना गया.
अब कांग्रेस में नेहरू का कद पहले से ज्यादा बड़ा हो गया था. उन्हें अंग्रेजी शासन के खिलाफ अपनी आवाज को मजबूती से उठाने के लिए एक अखबार की जरूरत महसूस हुई. उन्होंने इसी साल अपने कुछ साथियों और करीब 5 हजार स्वतंत्रता सेनानियों की आर्थिक मदद से एक अखबार शुरू किया, जिसका नाम था- ‘नेशनल हेराल्ड’.
इस अखबार के संचालन के लिए ‘एसोसिएट जर्नल लिमिटेड’ यानी AJL के नाम से एक कंपनी बनाई गई. यही कंपनी नेशनल हेराल्ड अखबार का प्रकाशन करता थी. अखबार लॉन्च होने के कुछ समय बाद तक जवाहरलाल नेहरू अखबार के संपादक थे. शुरुआती दिनों में ही इस अखबार ने फ्रंट पेज पर ‘स्वतंत्रता संकट में है, इसे अपनी पूरी ताकत से बचाएं' इस हेडिंग के साथ एक खबर पब्लिश की.
इससे नाराज अंग्रेजी अधिकारियों ने नेहरू को कार्रवाई की धमकी दी. आगे चलकर अंग्रेजी में 'नेशनल हेराल्ड' के अलावा हिंदी में 'नवजीवन' और उर्दू में 'कौमी आवाज’ के नाम से अखबार प्रकाशित करने वाली इस कंपनी पर ब्रिटिश अधिकारियों ने बैन लगा दिया. 1945 में दोबारा इसका प्रकाशन शुरू हुआ, लेकिन बाद में ये कंपनी घाटे में आ गई.
कांग्रेस ने 2010 में इस कंपनी को 90 करोड़ रुपए कर्ज दिया, ताकी कंपनी अखबार का प्रकाशन जारी रख सके. लेकिन, बावजूद इसके अखबार का छपना बंद हो गया. दो साल बाद यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड यानी YIL नाम से एक नई कंपनी बनी और इसने AJL को खरीद लिया.
YIL के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं, जिनके पास कंपनी की 76% हिस्सेदारी है. जबकि 24% हिस्सेदारी मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास है. AJL कंपनी ने अपने 90 करोड़ रुपए लोन को उतारने के लिए YIL कंपनी को 9 करोड़ शेयर दिए. इस तरह कंपनी के कुल शेयर का करीब 99 फीसद YILके नाम आ गया. सुब्रमण्यम स्वामी ने 2013 में इसी सौदे पर सवाल उठाते हुए, इसके खिलाफ पटियाला हाउस कोर्ट में केस दर्ज कराया था.
आखिर नेशनल हेराल्ड केस में राहुल और सोनिया को क्यों आरोपी बनाया गया?
सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि कांग्रेस ने नेशनल हेराल्ड को चलाने वाली कंपनी AJL से 90 करोड़ रुपए लोन की रिकवरी का अधिकार नई कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड को दिया था.
YIL कंपनी ने कांग्रेस को 50 लाख रुपए दिए और बदले में कांग्रेस ने 90 करोड़ रुपए का लोन माफ कर दिया. इस तरह नेशनल हेराल्ड से जुड़े AJL कंपनी की 2,000 करोड़ रुपए की संपत्ति पर YIL का मालिकाना हक हो गया. ऐसे में यह पूरा सौदा ही मनी लॉन्ड्रिंग के कानून के तहत गैरकानूनी है.
अब ED ने भी अपनी चार्जशीट में स्वामी द्वारा लगाए गए आरोपों का ही जिक्र किया है. ED का कहना है कि AJL कंपनी के हजारों करोड़ की संपत्ति का मालिकाना हक YIL कंपनी ने गलत तरीके से ट्रांसफर कर लिया.
ईडी ने विशेष अदालत से सोनिया, राहुल और अन्य आरोपियों के खिलाफ पीएमएलए की धारा 4 के तहत सजा की मांग की है, जिसमें जेल की अवधि सात साल तक हो सकती है.
ED का कहना है कि सोनिया और राहुल की कंपनी YIL को कंपनी अधिनियम की धारा 25 के तहत "गैर-लाभकारी" कंपनी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन कंपनी ने "कोई सामाजिक या धर्मार्थ" काम नहीं किए हैं.
ED की कार्रवाई को कांग्रेस ने गैर-कानूनी क्यों कहा है?
कांग्रेस नेता और सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि YIL कंपनी ने कोई फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन नहीं किए हैं, बल्कि ये कॉमर्शियल था. जब प्रॉपर्टी या कैश का कोई ट्रांसफर ही नहीं हुआ, तो मनी लॉन्ड्रिंग के केस का सवाल ही नहीं बनता है.
कांग्रेस का कहना है कि एक कंपनी के कर्ज उतारने के लिए दूसरी कंपनी ने उसे पैसा दिया, उसके बदले उसे कर्ज में दबी कंपनी के शेयर दिए गए. इसमें अपराध होने की कोई संभावना ही नहीं है. YIL एक "गैर-लाभकारी" कंपनी है, जिसके कारण इसका लाभांश इसके बोर्ड सदस्यों को भी नहीं दिया जा सकता है. ऐसे में ED द्वारा PMLA एक्ट के तहत मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनाना सरासर गलत है.