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औरंगजेब पर मचे घमासान के बीच RSS और BJP को क्यों याद आया दारा शिकोह?

नागपुर में औरंगजेब के कब्र हटाने को लेकर हुए विवाद के बीच RSS ने औरंगजेब के भाई दारा शिकोह को ‘सच्चा हिंदुस्तानी’ बताया है.

इस तस्वीर में एक ओर दारा शिकोह (बाएं) और दूसरी तरफ औरंगजेब (दाएं) नजर आ रहे हैं. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)
इस तस्वीर में एक ओर दारा शिकोह (बाएं) और दूसरी तरफ औरंगजेब (दाएं) नजर आ रहे हैं. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)
अपडेटेड 27 मार्च , 2025

मार्च की 23 तारीख को RSS के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने मुगल बादशाह औरंगजेब और उनके भाई दारा शिकोह के बीच अंतर बताते हुए कहा, “लोगों ने औरंगजेब को एक हीरो और आइकॉन बना दिया, लेकिन उसके भाई दारा शिकोह को नहीं. जबकि दारा शिकोह सामाजिक सौहार्द्र में यकीन रखता था. वह गंगा-जमुनी संस्कृति की वकालत करता था.” 

नागपुर में मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग पर हुई हिंसा के बाद RSS नेता होसबले का ये बयान आया है. दारा शिकोह को बाकी मुगल शासकों से अलग पहचान देने की कोशिश करना RSS और BJP के लिए कोई नई बात नहीं है. 2020 में BJP के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने दारा शिकोह की कब्र को खोजने के लिए एक कमेटी बनाई थी. लेकिन, सवाल ये है कि RSS और BJP को औरंगजेब के भाई से इतना लगाव क्यों है और ये उन्हें क्यों ‘सच्चा हिंदुस्तानी’ बताने की कोशिश करते हैं?

मुगल बादशाह औरंगजेब वर्सेस दारा शिकोह पर जारी बहस की क्रोनोलॉजी -

2015: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने करीब एक साल हुआ था. अगस्त में NDMC के अधिकारियों ने इस बात का ऐलान किया कि नई दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा जा रहा है. इसके बाद ही औरंगजेब को लेकर बहस तेज हो गई. 

2017: RSS प्रचारक चमन लाल की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें कई घंटों तक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह पर अलग-अलग लोगों ने अपनी बात रखी. दारा शिकोह पर आयोजित इस परिचर्चा ने RSS प्रचारकों के बीच इस विमर्श को मजबूती से स्थापित किया. 

2019: इस साल RSS ने दारा शिकोह प्रोजेक्ट को गंभीरता से आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल को सौंपी. इसके बाद कृष्ण गोपाल ने इस विषय पर देशभर में कई बैठकें और वर्कशॉप आयोजित की. इनमें गोपाल ने उन्हें ‘असली हिंदुस्तानी” बताते हुए कहा, “वे एक ऐसे मुसलमान थे, जो भारतीय परंपराओं से प्यार करते थे और उन्होंने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया था.”

2020: अब दारा शिकोह के जीवन और शिक्षाओं के प्रचार के लिए RSS ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके तहत दारा शिकोह के कामों पर रिसर्च को बढ़ावा देने की कोशिश शुरू हुई. साथ ही उनकी किताबों को अलग-अलग लैंग्वेज में ट्रांसलेट किया जाने लगा. 

इसी साल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने अपने यहां ‘इंटरफेथ अंडरस्टैंडिंग सेंटर’ का नाम बदलकर दारा शिकोह सेंटर करने का फैसला किया. इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी यानी AMU ने इस सेंटर के तहत आपसी संवाद के लिए हिंदू इतिहास और आस्था पर रिसर्च करने वाले मुस्लिम और ईसाई विद्वानों और शिक्षाविदों का एक पैनल बनाया.  

नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को दारा शिकोह पर रिसर्च में RSS की मदद के लिए जोड़ा गया. साथ ही भारत इस्लामिक कल्चरल सेंटर को इस मामले पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ संपर्क बढ़ाने का काम सौंपा गया. 

जुलाई 2020 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने दारा शिकोह की कब्र की तलाश के लिए 7 सदस्यीय कमेटी बनाई थी. माना जाता है कि 1659 में दारा शिकोह की हत्या के बाद उसे औरंगजेब ने दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे में दफन करवाया था. हुमायूं के विशाल मकबरे में 140 कब्रें हैं और वहां मकबरे के बीच में स्थित हुमायूं की कब्र को छोड़कर किसी और कब्र की पहचान मुश्किल है.

2023: इस विवाद को मजबूती देने के लिए नई दिल्ली में औरंगजेब लेन का नाम बदलकर ‘एपीजे अब्दुल कलाम’ लेन करने का फैसला लिया गया. 

औरंगजेब के भाई दारा शिकोह को हिंदू-मुस्लिम एकता बढ़ावा देने वाला क्यों कहा जाता है?

तारीख- आज से करीब 410 साल पहले 20 मार्च 1615, जगह- राजस्थान का अजमेर. 

मुगल बादशाह शाहजहां और उनकी दूसरी पत्नी मुमताज महल के घर एक बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम दारा रखा गया. फारसी में दारा शब्द का अर्थ है खजानों या सितारों का मालिक.

दारा शिकोह के कुल 13 भाई-बहन हुए, जिनमें सिर्फ 6 ही जीवित बचे. दारा के जिंदा बचे इन भाई-बहनों का नाम था- जहांआरा, शाह शुजा, रोशनआरा, औरंगजेब, मुराद बख्श और गौहारा बेगम. 18 साल की उम्र में दारा शिकोह ने नादिरा बानो नाम की एक लड़की से शादी की और बाकी मुगल शासकों से अलग उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ एक शादी की थी. 

दारा शिकोह की बेहद प्रसिद्ध किताब है- 'मज्म उल बहरैन’. इस किताब के नाम का अर्थ है- दो सागरों का मिलन. इस किताब में दारा ने वेदांत और सूफीवाद का तुलनात्मक अध्ययन किया है. दारा की इस्लाम के साथ ही दूसरे धर्मों और खासकर हिंदू धर्म में गहरी रुचि थी. 

दारा न केवल इस्लाम बल्कि हिंदू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों का भी सम्मान करते थे. वह इनके बारे में पढ़ने और जानने में दिलचस्पी रखते थे. यही वजह है कि दारा शिकोह को बेहद उदार और गैर-रूढ़िवादी मुसलमान माना जाता रहा है. 

इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब ‘औरंगजेब के इतिहास’ में लिखा है कि शिकोह ने अपने परदादा अकबर के पदचिन्हों पर चलते हुए उनके “सर्वेश्वरवादी” यानी ‘संपूर्ण ब्रह्मांड ईश्वर है’ की थ्योरी को अपनाया था. उन्होंने हिब्रू बाइबल ‘तल्मूड’, ईसाई बाइबिल कैनन का दूसरा हिस्सा ‘न्यू टेस्टामेंट’, मुस्लिम सूफियों के लेखन और हिंदू वेदों का अध्ययन किया था. पंडितों के एक समूह की मदद से उन्होंने उपनिषदों का फारसी में अनुवाद भी करवाया था.

दारा शिकोह द्वारा उपनिषदों का फारसी में अनुवाद कराने का फायदा ये हुआ था कि ये यूरोप तक पहुंचा और वहां से उनका लैटिन भाषा में भी अनुवाद हुआ, इससे उपनिषदों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध होने में मदद मिली. 

इतिहासकार सतीश चंद्र ने अपनी किताब ‘मध्यकालीन भारत, भाग- 2’ में लिखा है कि शिकोह और औरंगजेब के चरित्र और दृष्टिकोण बहुत अलग थे. शिकोह हमेशा उदार सूफी और भक्ति संतों के साथ जुड़ा रहता था और एकेश्वरवाद के सिद्धांत में उसकी गहरी रुचि थी. उसने वसीयतनामा और वेदों का अध्ययन किया था और उसे यकीन था कि एकेश्वरवाद यानी एक ईश्वर में विश्वास को समझने के बाद ही कुरान को असल मायने में समझा जा सकता है.”

दूसरी ओर औरंगजेब कुरान के अध्ययन के लिए समर्पित था और विभिन्न धार्मिक परंपराओं के पालन में सख्त था. शिकोह ने औरंगजेब को पाखंडी कहा और औरंगजेब ने दारा को विधर्मी कहा था. 

इतिहासकार सतीश चंद्र के मुताबिक दारा शिकोह, शाहजहां का सबसे  पसंदीदा बेटा था. यही वजह था कि 1652 में शाहजहां ने दरबार में एक खास आयोजन करके दारा को बादशाह के तख्त पर बैठाया और उन्हें शाह-ए-बुलंद इकबाल यानी बादशाह का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. 

अपने पिता के इस फैसले से औरंगजेब नाराज हो गया. 1657 में जैसे ही शाहजहां के बीमार पड़े फिर मुगल साम्राज्य में उत्तराधिकार की जंग छिड़ गई. 30 मई 1658 को दारा शिकोह की उसके दो छोटे भाईयों औरंगजेब और मुराद बख्श से आगरा के पास स्थित 'समूगढ़' में भीषण जंग हुई, जिसमें दारा की हार हुई.

जीत के बाद औरंगबेज ने आगरा के किले पर कब्जा जमा लिया और 8 जून 1658 को अपने पिता शाहजहां को गद्दी से हटाते हुए उन्हें आगरा में जेल में डाल दिया. 1659 में दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच दोबारा जंग हुई. अजमेर के पास हुई देवराई की जंग में दारा को फिर से शिकस्त मिली. 

इस बार जंग हारने के बाद जान बचाकर शिकोह अफगानिस्तान भाग गया, लेकिन एक अफगान सरदार मलिक जीवन ने उसे गिरफ्तार कर वापस औरंगजेब के पास भेज दिया. 

फ्रेंच इतिहासकार फ्रांस्वा बर्नियर ने अपनी किताब 'ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर' में लिखा है- 'जिस दिल्ली में कभी दारा शिकोह का शासन था, उसी शहर की सड़कों पर उसके भाई औरंगजेब ने उसे जंजीरों में जकड़कर एक हाथी पर बैठाकर घुमाया था.’ 

कुछ ही दिनों बाद 30 अगस्त 1659 को औरंगजेब ने दारा का सिर धड़ से अलग कर एक थाली में सजाकर आगरा में कैद अपने पिता शाहजहां को भिजवाया था.  कुछ इतिहासकारों के मुताबिक, दारा के धड़ को दिल्ली स्थित हुमायूं के मकबरे के पास दफन किया गया था, जबकि उनके सिर को औरंगजेब ने आगरा में ताजमहल के पास दफन करवाया था. हालांकि, इसी दावे की हकीकत को जानने के लिए केंद्र सरकार ने 5 साल पहले एक कमेटी बनाई है.

आखिर दारा शिकोह को इतना क्यों प्रमोट करता है RSS और BJP? 

RSS के दारा शिकोह को पसंद किए जाने और प्रमोट किए जाने की वजह उनके बड़े नेताओं के बयान से ही समझी जा सकती है. 2019 में संघ के सीनियर लीडर कृष्ण गोपाल ने कहा था कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह मुगल बादशाह बनते तो इस्लाम भारत में और फलता-फूलता और हिंदू और मुस्लिम एक-दूसरे को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ पाते. इस एक बयान से संघ के दारा शिकोह के जीवन और कामों को प्रमोट करने की वजह पता चलती है. 

जानकारों का मानना है कि औरंगजेब की छवि हिंदू विरोधी है जबकि दारा शिकोह हिंदुओं के प्रति उदार थे और उन्होंने हिंदू उपनिषदों का अनुवाद कराकर हिंदू धर्म के प्रचार का काम किया था. इसी वजह से संघ दारा को प्रमोट करने में लगा है.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई बताते हैं कि BJP और RSS काफी समय से मुसलमानों को अच्छे और बुरे मुसलमान में बांटने की कोशिश कर रहे हैं. अच्छा मुसलमान वो होगा, जो भारतीय संस्कृति और हिंदू रीति रिवाजों का पालन करता है. यह सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिकल फायदा लेने के लिए किया जा रहा है. 

किदवई आगे बताते हैं कि 1963 में पंडित मदनमोहन मालवीय ने कहा था कि 1947 में जो देश में रह गए सब भारतीय हैं और हमारे जैसे हैं. फिर मुसलमानों को अच्छा और बुरा में बांटने की जरूरत क्या थी? बीजेपी अपने फायदे और सांप्रदायिक राजनीति को मजबूती देने के लिए ऐसे डिबेट को बढ़ावा देती है. 

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद के मुताबिक, हम सभी जानते हैं कि हिंदू हो या मुस्लिम दोनों ही धर्मों में अलग-अलग पद्धति और रिवाज हैं. किसी एक पद्धति को मानने वाले अच्छे होंगे और दूसरे बुरे, ये बताने की कोशिश करना राष्ट्रहित में नहीं है. औरंगजेब ने करीब 5 दशक शासन किया. किसी दूसरे शासक की तरह इसके वक्त में अच्छे और बुरे दोनों तरह के काम हुए. अब उसके बुरे कामों की चर्चा नए सिरे से करके समाज को बांटने की कोशिश की जा रही है. ताकि, इसका राजनीतिक फायदा मिलते रहे. 
 

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