
1 मार्च 1953 की बात है. तमिलनाडु के द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) नेता एम करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्मल ने एक बच्चे को जन्म दिया. एमके मुथु और एमके अलागिरी के बाद ये बच्चा करुणानिधि का तीसरा बेटा था.
इस बच्चे के जन्म के चार दिन बाद खबर आई कि सोवियत रूस के नेता जोसेफ स्टालिन का निधन हो गया. करुणानिधि ने दिवंगत स्टालिन के नाम पर ही अपने तीसरे बेटे का नाम रख दिया. अब स्टालिन 71 साल के हैं और तमिलनाडु के सीएम हैं.
स्टालिन इन दिनों हिंदी भाषा विरोध की वजह से खबरों में हैं. स्टालिन सरकार ने बजट 2025-26 से रुपये के राष्ट्रीय चिह्न को हटा दिया है. बजट में '₹' को 'ரூ' सिंबल से रिप्लेस किया है. तमिल भाषा में 'ரூ' इस तमिल वर्ण का मतलब रु ही होता है.
आज से 78 साल पहले उनके पिता एम करुणानिधि भी 'हिंदी मुर्दाबाद' कहकर तमिलनाडु की राजनीति में आए थे. इसके बाद वे 13 बार विधायक और 5 बार मुख्यमंत्री रहे.
ऐसे में, अब इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या स्टालिन भी अपने पिता की राह पर चल रहे हैं, क्या भाषाई राजनीति के जरिए ही वे सत्ता में बने रहना चाहते हैं? करुणानिधि की कहानी के जरिए इन सवालों के जवाब जानेंगे, लेकिन उससे पहले हिंदी भाषा से जुड़े मौजूदा विवाद को समझते हैं -

हिंदी भाषा को लेकर अमित शाह से भिड़े स्टालिन
27 फरवरी को तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कहा कि जबरन हिंदी भाषा को थोपने से 100 सालों में 25 नॉर्थ इंडियन भाषाएं खत्म हो गई. एक अखंड हिंदी पहचान की कोशिश प्राचीन भाषाओं को खत्म कर रही है.
7 मार्च को तमिलनाडु के थाक्कोलम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी के विरोध पर तमिलनाडु के सीएम से सवाल पूछा, "स्टालिन सरकार मेडिकल और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम तमिल भाषा में क्यों शुरू नहीं कर रही है?"
अमित शाह के इस बयान पर पलटवार करते हुए सीएम स्टालिन ने कहा, "यह तो वैसा ही है, जैसे कोई एलकेजी का बच्चा किसी पीएचडी होल्डर को लेक्चर दे रहा हो."
स्टालिन सिर्फ हिंदी का ही नहीं, बल्कि आबादी के हिसाब से परिसीमन का भी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे सबसे ज्यादा फायदा बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी राज्यों को ही होगा.
इसके अलावा नई शिक्षा नीति-2020 में त्रिभाषा फॉर्मूला का भी तमिलनाडु विरोध कर रहा है. स्टालिन सरकार का मानना है कि इसके जरिए केंद्र दक्षिणी राज्यों पर हिंदी भाषा थोपने की कोशिश कर रहा है. यही वजह है कि स्टालिन ने रुपए के राष्ट्रीय चिन्ह को ही बदलने का फैसला किया है. ऐसा करते वक्त उन्होंने ये भी नहीं समझा कि रुपये के इस सिंबल को एक तमिल उदय कुमार धर्मलिंगम ने ही डिजाइन किया था.
खास बात यह है कि उदय कुमार धर्मलिंगम के पिता भी DMK के विधायक भी रह चुके हैं. हिंदी भाषा और हिंदीभाषी लोगों के खिलाफ राजनीतिक विरोध तमिलनाडु में 7 दशक से भी ज्यादा पुराना है.
अपनी शादी के दिन 'हिंदी मुर्दाबाद' का नारा लगाने लगे थे करुणानिधि
पत्रकार वासंती अपनी किताब 'करुणानिधि: द डेफिनिटिव बायोग्राफी' में बताती हैं कि साल 1944 में करुणानिधि की मुलाकात पद्मावती अम्माय्यर से हुई. यह मुलाकात धीरे-धीरे प्रेम में बदल गई और 1946 में करुणानिधि और पद्मावती की शादी हो गई. कहा जाता है कि शादी के दिन जब बारात जाने की तैयारी हो रही थी, तभी उनके मोहल्ले से होकर एक हिंदी विरोधी रैली गुजर रही थी.
जैसे ही करुणानिधि ने हिंदी भाषा के विरोध में नारा लगा रहे लोगों की आवाज सुनी, वे भी उस रैली में शामिल हो गए. अपनी शादी के ही दिन करुणानिधि 'तमिल जिंदाबाद, हिंदी मुर्दाबाद' का नारा लगाने लगे. इस वजह से उनकी शादी में भी देर हो गई.
शादी के दो साल बाद ही पद्मावती का एक बीमारी की वजह से निधन हो गया. 1952 में दयालु अम्मल नाम की लड़की से करुणानिधि ने दूसरी शादी की. अम्मल और करुणानिधि दंपति को तीन बेटे एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके थामिझासरासु और एक बेटी सेल्वी हुई.
करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में जस्टिस पार्टी से अपनी राजनीति शुरू की, उसके नेता ई वी रामास्वामी नायकर 'पेरियार' ब्राह्मण कर्मकांड और हिंदू धर्म की परंपरा का खुलकर विरोध करते थे.

हिंदी भाषा का विरोध कर 13 बार विधायक और 5 बार मुख्यमंत्री बने
देश की आजादी के बाद ही दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध में आंदोलन शुरू हो गया. इस वक्त हिंदी विरोध के आंदोलन का नेतृत्व सीएन अन्नादुरई कर रहे थे. 1949 में उन्होंने DMK पार्टी बनाई तो करुणानिधि इसके पहले कोषाध्यक्ष बने.
1957 में पहली बार DMK के टिकट पर करुणानिधि विधानसभा चुनाव लड़े और जीतकर विधायक बने. हिंदी विरोधी आंदोलन के सहारे ही DMK 1967 में पूर्ण बहुमत के साथ तमिलनाडु की सत्ता में आई. अन्नादुरई मुख्यमंत्री बने और करुणानिधि को राजमार्ग मंत्री बनाया गया.
करीब 2 साल बाद 1969 में तमिलनाडु के CM अन्नादुरई की कैंसर से मौत हो गई. करुणानिधि तमाम सीनियर नेताओं को साइड लाइन कर अपने साथी MGR की मदद से CM बन गए.
बाद में MGR और करुणानिधि के बीच वैचारिक टकराव इतना ज्यादा बढ़ गया कि MGR ने AIADMK नाम से अलग पार्टी बनाई. तमिलनाडु की राजनीति में मजबूत पैठ रखने वाले करुणानिधि की राजनीतिक साख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1992 के बाद 22 साल तक उनके बिना दिल्ली में कोई सरकार नहीं बनती थी.

हिंदू आस्था पर सवाल उठाने का आरोप लगा, बोले-'भगवान राम कौन हैं?'
2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 3,500 करोड़ रुपए के सेतुसमुद्रम परियोजना को मंजूरी दी. इसके जरिए सेतु को तोड़कर एक समुद्री रास्ता तैयार करना था, जिससे विदेशों से बंगाल की खाड़ी आने वाले जहाजों को श्रीलंका का चक्कर नहीं लगाना पड़े. इस रास्ते को बनाने का मकसद समय, दूरी और ईंधन बचाना था.
2004 में ही केंद्र की सरकार बदली, और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. मनमोहन सिंह के हरी झंडी दिखाते ही योजना को लेकर विवाद शुरू हो गया. सेतुसमुद्रम विवाद पर सितंबर 2007 में करुणानिधि ने भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए.
उन्होंने तंज करते हुए कहा, "लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था. कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?"
बाद में उनके इस सवाल और बयान पर खासा बवाल हुआ था. BJP नेता लालकृष्ण आडवाणी ने उनसे बयान वापस लेने और मांफी मांगने की मांग की. करुणानिधि ने माफी मांगने से इनकार करते हुए आडवाणी को मंच पर डिबेट करने की चुनौती दी. उन्होंने कहा, "मैंने रामायण लिखने वाले वाल्मीकि से ज्यादा तो कुछ नहीं कहा है, जो राम को शराबी बताते थे."
करुणानिधि की राह पर स्टालिन और अब उनकी तीसरी पीढ़ी के उदयनिधि
इमरजेंसी के समय में स्टालिन अपने पिता के साथ इंदिरा गांधी के विरोध में मजबूती से खड़े रहे. परिणाम ये हुआ कि 1976 की फरवरी में उनके गोपालपुरम स्थित घर से स्टालिन को गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई. एक साल जेल में रहकर बाहर आने के बाद स्टालिन को एक नई पहचान मिली.
अपने पिता की तरह ही स्टालिन ने भी राथम और मक्कल अयनायितल जैसी फिल्मों में काम किया. इसके बाद हिंदू और हिंदी विरोध पर भी उनका स्टैंड पिता के जैसा ही था. 2010 आते-आते करुणानिधि अपनी खराब सेहत के चलते राजनीतिक दायित्वों से मुक्त हो गए और एमके स्टालिन को डीएमके का कार्यकारी नेता बना दिया गया.
करुणानिधि ने जनवरी 2013 में एक प्रेस वार्ता की. उस आयोजन में उन्होंने कथित तौर पर कहा, "अगर स्टालिन मेरे राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं तो क्या गलत है?" इससे साफ हो गया था कि स्टालिन ही पार्टी के अगले सर्वेसर्वा हैं और आगे चलकर ऐसा ही हुआ.
2019 लोकसभा चुनाव से पहले स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने भी अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की. DMK ने उन्हें युवा विंग का प्रमुख बनाया, इसके बाद उदयनिधि ने एक ईंट हाथ में लेकर पूरे राज्य का दौरा किया. इस ईंट की ब्रांडिंग AIADMK-BJP सरकार के तहत AIIMS-मदुरै के अधूरे काम के सबूत के तौर पर की गई थी.
इसके बाद पूरे राज्य में उनकी छवि हीरो की बन गई. 2 साल बाद 2021 में वह पहली बार विधायक और फिर अपने पिता स्टालिन की सरकार में मंत्री बन गए. 2 सितंबर 2023 को सनातन धर्म पर दिए अपने बयान की वजह से वह चर्चा में आ गए.
उन्होंने कहा था, "सनातन धर्म लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने वाला विचार है. इसे खत्म करना मानवता और समानता को बढ़ावा देना है. जिस तरह हम मच्छर, डेंगू, मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं, उसी तरह सिर्फ सनातन धर्म का विरोध करना ही काफी नहीं है. इसे समाज से पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए."
मतलब साफ है कि स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन भी अपने दादा करुणानिधि के रास्ते पर ही चल रहे हैं. उन्हें भरोसा है कि हिंदी विरोध के बल पर ही वे दक्षिणी भारत और खासकर तमिलनाडु की राजनीति में मजबूती से टिके रह सकते हैं!