मार्च की 14 तारीख को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से मिले अधजले नोटों का मामला सुलझने के बजाय उलझते ही जा रहा है. घटना के 9 दिन बाद तुगलक रोड पर सफाई करने वाले कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें 500 के अधजले नोट बंगले के बाहर सड़क पर भी मिले हैं. हालांकि, इसकी कोई जानकारी नहीं है कि जस्टिस वर्मा के घर से जब्त अधजले नोटों की गड्डी कहां हैं?
वहीं, जस्टिस वर्मा ने सफाई देते हुए कहा कि बंगले के पिछले हिस्से में स्थित स्टोर रूम में कैश मिलने की बात कही जा रही है, जिसे उनका परिवार या स्टाफ यूज नहीं करता है. ऐसे में सवाल है कि जस्टिस वर्मा के बंगले के स्टोर रूम का इस्तेमाल कौन करता था, क्या हाईकोर्ट के जज के बंगले में किसी की भी एंट्री हो सकती है, पुलिस ने नोट जब्त होने के बाद पंचनामा क्यों नहीं किया?
जस्टिस वर्मा कैश स्कैंडल के 10 दिन पूरे हो गए हैं. अब भी इस घटना से जुड़े 10 ऐसे बड़े सवाल हैं, जिनका जवाब मिलना बाकी है. अब एक-एक कर उन सवालों और उनके जवाबों को जानने की कोशिश करते हैं-
जस्टिस के बंगले से कितने अधजले नोट पुलिस ने बरामद किए?
दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से कितने अधजले नोट बरामद किए गए हैं, इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली पुलिस या फायर ब्रिगेड की ओर से कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया गया है.
हालांकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में 15 करोड़ कैश होने का दावा जरूर किया गया, लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है, ये जांच का विषय है.
जस्टिस यशवंत वर्मा के बंगले से जब्त कैश को कहां रखा गया है?
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक 14 मार्च को जज के घर में आग लगने के बाद फायर टेंडर्स ने नकदी बरामद की थी. जब ये घटना घटी, तब जज अपने घर पर मौजूद नहीं थे.
हालांकि, कैश जब्त होने की जानकारी न तो दिल्ली पुलिस और न ही फायर ब्रिगेड ने दी है. ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि बरामद नकदी को किसने अपने कब्जे में लिया. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने भी मीडिया से बात करते हुए कहा है कि उनके पास इससे जुड़ी जानकारी नहीं है.
जस्टिस वर्मा ने भी जब्त कैश से जुड़े ठिकाने के बारे में किसी भी तरह की जानकारी होने से इनकार किया है. अगर जज के घर आग लगने की सूचना पर पहुंची दोनों सरकारी एजेंसियों और जस्टिस बंगले या घटनास्थल पर अधजले नोट नहीं हैं तो आखिर ये पैसा कहां रखा गया है?
आग लगने की सूचना पर जस्टिस के बंगले पर पहुंची दोनों सरकारी एजेंसियों के बयान पर संदेह की वजह क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के लुटियंस दिल्ली के घर से मिले कैश की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है. इसमें कैश का वीडियो और तीन तस्वीरें भी जारी की गई हैं. इन तस्वीरों में 500 रुपए के जले हुए नोटों के बंडल दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, इस घटना को लेकर मौके पर सबसे पहले पहुंची दो सरकारी एजेंसियों के बयान अलग-अलग हैं.
दिल्ली पुलिस: अब तक दिल्ली पुलिस ने इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है. सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र जरूर है कि 15 मार्च 2025 को दिल्ली पुलिस के कमिश्नर संजय अरोड़ा ने फोन कर दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपध्याय को जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में लगी आग के बारे में जानकारी दी. हालांकि, कमिश्नर ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को क्या बताया यह जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई. इसी दिन दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को घटना की जानकारी दी.
जस्टिस डीके उपाध्याय ने ये भी कहा कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड के मुताबिक 15 मार्च की सुबह कुछ जली हुई चीजों को स्टोर रूम से हटाया गया है.
दिल्ली फायर ब्रिगेड: इस सरकारी एजेंसी के प्रमुख अतुल गर्ग ने दावा किया कि जस्टिस वर्मा के आवास पर अग्निशमन कर्मियों को कोई नकदी नहीं मिली. गर्ग ने बताया कि 14 मार्च की रात 11.35 बजे कंट्रोल रूम को वर्मा के आवास पर आग लगने की सूचना मिली और दो दमकल गाड़ियों को तुरंत मौके पर भेजा गया.
रात 11.43 बजे दमकल गाड़ियां मौके पर पहुंचीं. आग स्टेशनरी और घरेलू सामान से भरे एक स्टोर रूम में लगी थी. आग पर काबू पाने में 15 मिनट लगे. कोई हताहत नहीं हुआ.
आग बुझाने के तुरंत बाद हमने पुलिस को आग की घटना की सूचना दी. उसके बाद अग्निशमन विभाग के कर्मियों की टीम मौके से चली गई. हमारे कर्मियों को आग बुझाने के दौरान कोई नकदी नहीं मिली. फायर ब्रिगेड ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में भी नकदी मिलने का जिक्र नहीं किया है.
इस तरह मौके पर पहुंची दो सरकारी एजेंसियों के अलग-अलग बयान के बाद ही संदेह पैदा होने लगे हैं.
अधजले नोटों का भंडार मिलने पर क्या दिल्ली पुलिस को पंचनामा बनना जरूरी था?
वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, इस घटना को लेकर फायर ब्रिगेड की रिपोर्ट पर दिल्ली पुलिस के तुगलक रोड थाने में सिर्फ रोजनामचे में एंट्री दर्ज की गई. न तो केस दर्ज किया गया और न ही कोई पंचनामा बनाया गया.
अमूमन पुलिस या सुरक्षा एजेंसियां जांच या छापे के दौरान पंचनामा बनाते हैं. इस मामले में आग लगने के दौरान और उसके बाद अभी तक पुलिस ने कोई औपचारिक एफआईआर दायर नहीं की है. पंचनामा नहीं बनने और बोरियों में अधजले नोट गायब होने की वजह से अहम सबूत खत्म हो गए हैं. दिल्ली पुलिस को साफ करना चाहिए कि आखिर मौके पर पंचनामा क्यों नहीं बनाया गया?
जज के बंगले में स्थित स्टोर रूम का एक्सेस किन लोगों को था और क्या कोई भी वहां जा सकता है?
अपने बंगले के स्टोर रूम से कैश बरामद होने की खबरों पर जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा, "इस कमरे का इस्तेमाल आम तौर पर सभी लोग पुराने समान, फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, इस्तेमाल किए गए कालीन, पुराने स्पीकर, बागवानी के उपकरण और सीपीडब्ल्यूडी (केंद्रीय लोक निर्माण विभाग) के सामान रखने के लिए करते हैं.
यह कमरा खुला रहता है और सामने के गेट के अलावा स्टाफ क्वार्टर के पिछले दरवाजे से भी इस कमरे में प्रवेश किया जा सकता है. यह मुख्य आवास से बिल्कुल अलग है और निश्चित रूप से यह मेरे घर का कमरा नहीं है जैसा कि दिखाया गया है.”
पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा के मुताबिक, जजों के आवास पर सुरक्षा की श्रेणी अलग-अलग होती है. आमतौर पर 24 घंटे CRPF के जवान गेट पर तैनात होते हैं. जज के साथ भी सुरक्षा अधिकारी होता है. कोई जज से मिलने आए तो गेट पर एंट्री होती है. उनके ऑफिस में इजाजत मिलने के बाद ही अंदर जा सकते हैं.
हालांकि, जज ने कहा है कि वह जगह केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के सामान रखने के लिए भी इस्तेमाल होती थी. ऐसे में यह जांच का विषय है कि आखिर वहां किसने इतना सारा कैश रखा था?
जस्टिस वर्मा का कहना है कि उन्हें फंसाने के लिए साजिश रची गई, लेकिन इसके पीछे कौन हो सकता है?
विराग गुप्ता बताते हैं कि जस्टिस वर्मा ने इस मामले को साजिश बताते हुए 3 बातें कहीं हैं-
पहला- जिस स्टोर रूम में आग लगी वह उनके आवास का हिस्सा नहीं था और वहां पर सुरक्षा कर्मियों के साथ सीपीडब्ल्यूडी के लोगों का आना-जाना था. लेकिन चीफ जस्टिस की रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि स्टोर रूम में ताला रहता था.
दूसरा- आग बुझाने के समय जज के परिवार के सदस्य और निजी स्टॉफ को मौके से हटा दिया गया था. उसके बाद कमरे में अधजले नोटों की कोई बोरी नहीं दिखी. इस बारे में उन्होनें फायर विभाग के चीफ के बयान का भी हवाला दिया है, जिसमें नोट नहीं मिलने की बात कही गई है. हालांकि, वीडियो और अन्य बयानों से साफ है कि स्टोर रुम में बोरो में पैसे थे.
तीसरा- उन्होनें अपनी कार्यकुशलता, ईमानदारी और अच्छी छवि की बात कही है. दिल्ली हाईकोर्ट में वे दूसरे सबसे सीनियर जज हैं और अभी उनकी सेवा में 6 साल बचे हैं. जस्टिस वर्मा के अनुसार 3 महीने पहले भी सीबीआई के पुराने मामले में उनकी छवि खराब करने के लिए सोशल मीडिया में प्रयास हुए थे.
हाईकोर्ट के सिटींग जज के खिलाफ यदि कोई साजिश हुई है तो उसकी जांच और खुलासा जरूर होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार जजों के खिलाफ एफआईआर होने में मुश्किल है, लेकिन जस्टिस वर्मा इस मामले में हुई साजिश के खिलाफ पुलिस और सीबीआई में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं.
मीडिया में खबरों के खुलासे से उनकी मानहानि हो रही है, इसके बावजूद उन्होनें औपचारिक तौर पर अभी तक कोई प्रेस नोट भी जारी नहीं किया है.
जस्टिस वर्मा के बंगले के बाहर सड़क पर अधजला नोट कहां से आया?
23 मार्च को इंद्रजीत और सुरेंद्र नाम के NDMC के दो सफाईकर्मियों ने बताया कि 4-5 दिन पहले उन्हें 500 के अधजले नोट जस्टिस वर्मा के बंगले के बाहर मिले. अब सवाल ये उठता है कि अधजले नोट यहां कैसे आए? क्या पुलिसकर्मियों और फायर ब्रिगेड के जब्त किए जाने के बाद ये नोट वहां गिरे? या फिर जस्टिस वर्मा के स्टाफ ने जब पैसे को ठिकाने लगाया तब ये गिरे थे?
दोनों सरकार एजेंसी ने अधजले नोट जब्त नहीं किए हैं. जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट को कहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड ने 15 मार्च की सुबह कुछ जली हुई चीजों को स्टोर रूम से हटाया है. हो सकता है कि उस वक्त ये अधजले नोट बंगले के बाहर गिरे हों. लेकिन, जस्टिस यशवंत ने इन आरोपों को नकारा है.
विराग बताते हैं कि बंगले में मौजूद सुरक्षा कर्मियों और अग्नि शमन कर्मियों के साथ जज के स्टाफ के बयान जांच कमेटी दर्ज करेगी. फिर इस बात का खुलासा होगा कि वीडियो और फोटो में दिखाये गए नोटो के बोरे स्टोर रूम में आग के समय थे या नहीं? दूसरा ये भी कि अधजले नोटों से भरे बोरों को वहां से हटाकर किसने सबूतों के साथ छेड़खानी किया. जज के आवास परिसर और मेन गेट के बाहर सभी सीसीटीवी के फुटेज को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है.
अब आगे जस्टिस वर्मा कैश स्कैंडल में क्या हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यह पहला मामला है, जिसमें संवेदनशील पत्र और रिपोर्टों का सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद सार्वजनिक तौर पर खुलासा किया गया है.
जजों को राष्ट्रपति और राज्यपाल के तरह ही सभी प्रकार के आपराधिक मामलों से सुरक्षा मिली है. जजों के कामकाज के आधार पर उनके खिलाफ सिविल या क्रिमिनल मामला दर्ज नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के अनुसार जजों के खिलाफ एफआईआर के पहले चीफ जस्टिस की मंजूरी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने जज के मोबाइल कॉल और आवास के वाई-फाई और सुरक्षा कर्मियों का विवरण मांगा है, लेकिन इस मामले में तीन जजों की आंतरिक समिति की जांच रिपोर्ट के आधार पर ही आगे की कार्रवाई निर्धारित होगी.
जांच में देरी और जज को न्यायिक कार्य में दूर रखने से विवाद बढ़ता रहेगा. कॉलेजियम की सिफारिश के अनुसार जज को यदि इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किया गया तो मामला और बिगड़ सकता है. जांच समिति की रिपोर्ट यदि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आई तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ सकता है. या फिर कॉलेजियम की सिफारिश के अनुसार राष्ट्रपति जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संसद के माध्यम से महाभियोग की प्रक्रिया शुरु कर सकते हैं.
इलाहाबाद से जुड़े 2 जजों के पुराने मामलों में आंतरिक समिति की प्रतिकूल जांच रिपोर्ट के बावजूद जजों ने त्यागपत्र नहीं दिया और उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया भी नहीं हुई.
क्यों जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई के लिए नोटों के वीडियो पर्याप्त सबूत हैं?
विराग बताते हैं, “सबूत मानने के लिए नोटों के वीडियो की सत्यता को परखने के लिए उनका फॉरेसिंक जांच जरूरी है. डिजिटल साक्ष्यों की कानूनी वैधता के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और नए बीएनएस कानून में प्रावधान हैं. सुरक्षा कर्मियों, रजिस्ट्रार जनरल, स्टाफ के बयान और सीसीटीवी के फुटेज से अगर वीडियो का कंटेंट सही साबित हुआ तो फिर जस्टिस वर्मा की दिक्कतें बढ़ सकती हैं.
वहीं, इस मामले में पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा का कहना है, “यह सबूत फिलहाल पर्याप्त नहीं है, क्योंकि ये साफ नहीं है कि नोट कहां है? अगर नोट नष्ट किए गए तो किसने किए? अगर नोट गायब है तो वीडियो को साबित करने वाला अहम सबूत गायब है. ऐसे में तो सबूत मिटाने का भी केस बनता है.”
क्या सुप्रीम कोर्ट के इंटरनल जांच कमेटी के अलावा भी किसी दूसरी जांच एजेंसी को ये मामला सौंपा जा सकता है?
विराग गुप्ता के मुताबिक, “इस मामले में जस्टिस वर्मा ने साजिश की आशंका जताई है. इसके अलावा इस विवाद से न्यायपालिका की छवि धूमिल हो रही है. सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पास इस तरीके के आपराधिक मामलों से निपटने के लिए विशेषज्ञ अधिकारी और तंत्र नहीं हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पुलिस जांच के लिए मंजूरी दे सकते हैं. नगदी की बरामदगी से आयकर कानून के उल्लंघन के मामले का जुड़ा हुआ है. सिटिंग जजों को आयकर कानून का पालन करना जरूरी है इसलिए आयकर विभाग भी इस मामले की जांच कर सकता है. बाहरी लोगों ने जज के स्टोर रूम में पैसा रखा है तो फिर उसके लिए चीफ जस्टिस सीबीआई और ईडी की जांच की मंजूरी भी दे सकते हैं.”
पूर्व जस्टिस एसएन ढींगरा के मुताबिक भी जब जज के घर से कैश मिला, तभी पुलिस को पंचनामा कर कैश जब्त करना था. इसके बाद केस दर्ज कर आयकर विभाग को सूचना दी जानी चाहिए थी. आयकर विभाग को ये पता लगाना चाहिए था कि आखिर ये पैसा कहां से आया, किसने पहुंचाया?
जज के घर से बेहिसाब अवैध कैश रखना न्यायायिक नहीं है. ऐसे में संवैधानिक सुरक्षा मिलने की बात भी नहीं है