पिछले कुछ सालों के दौरान चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव की वारदातों के बाद से ही भारतीय सेना इस इलाके की सुरक्षा को लेकर काफी गंभीरता और सतर्कता बरत रही है. ऐसे में एलएसी की हवाई निगरानी को पुख्ता करने के लिए सेना ने लेजर बेस्ड इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन एंड इंटरडिक्शन सिस्टम (आईडीडी एंड आईएस) को भी शामिल किया है.
ड्रोन की यह टेक्नॉलॉजी डीआरडीओ और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने मिलकर विकसित की है. एलएसी पर इस सिस्टम की तैनाती चीन के ड्रोन हमलों की चिंताओं के मद्देनजर की गई है. जैमिंग और लेजर-बेस्ड इंटरसेप्शन यानी अवरोध के साथ 'सॉफ्ट और हार्ड किल्स' क्षमताओं से लैस यह सिस्टम भारतीय सेना के सामरिक अभियानों के लिए काफी अहम माना जा रहा है.
इस सिस्टम के जरिए पांच से आठ किलोमीटर तक की रेंज की निगरानी की जा सकती है. चीन ने पिछले चार सालों के दौरान एलएसी पर अपने कई जवानों और हथियारों की तैनाती की है, जो सीमा पर तनाव की एक बड़ी वजह है. हाल ही में सैटेलाइट इमेजों में भी यह देखने को मिला था कि, चीन ने एलएसी से आगे शिगात्से और मालन जैसे सैन्य ठिकानों पर भारी मात्रा में यूएवी (मानव रहित वाहन) की तैनाती है. ऐसे में सीमा की सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए यह ड्रोन सिस्टम और भी ज्यादा उपयोगी माना जा रहा है.
इसके अलावा बांगडा एयरबेस पर WZ-7 'सोअरिंग ड्रैगन' जैसे मॉडर्न ड्रोन की तैनाती, सीमावर्ती इलाकों में चीनी सेना की बढ़ती गश्त जैसी गतिविधियों ने भी भारत की चिंताओं में इजाफा किया है. WZ-7 जैसे ड्रोन अपनी विपरीत मौसम में काम करने की अपनी क्षमता (ड्यूरेबिलिटी) और साफ तस्वीरें खींचने के लिए जाने जाते हैं.
मिलिट्री ड्रोन एक्सपर्ट्स के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 150 कंपनियां ऐसी हैं जो काउंटर ड्रोन सिस्टम बनाती हैं. लेकिन अमेरिका और इजराइल केवल दो ही ऐसे देश हैं जो इसके एक्सपर्ट हैं. वहीं दुनिया के दूसरे देश इस तरह के ड्रोन सिस्टम्स को बनाने में ज्यादा सफलता हासिल नहीं कर पाए हैं. भारत भी एंटी ड्रोन सिस्टम के विकास में फिलहाल पिछड़ा हुआ ही दिखाई देता है. हालांकि डीआरडीओ अब लगभग 30-50 किलोवॉट पावर वाले ड्रोन को विकसित करने पर काम कर रहा है.
इसी कोशिश के तहत जहां भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड 'सॉफ्ट किल' काउंटर-ड्रोन सिस्टम को डेवलप करने पर काम रह है तो वहीं डीआरडीओ सॉफ्ट के साथ-साथ 'हार्ड किल' ड्रोन सिस्टम पर काम कर रहा है. 'सॉफ्ट किल' तकनीक में ड्रोन के नेटवर्क और जीपीएस सिग्नल को खराब करने के लिए जैमर का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं 'हार्ड किल' में ड्रोन को बुलेट, आईडीडी, आईएस या फिर लेजर बीम के सहारे नीचे गिराया जाता है.
एक अनुमान यह भी है कि चीनी आर्मी एलएसी पर यूएवी निगरानी, रसद भेजने, नुकसान का आंकलन करने, तोपखानों के ऑबजर्वेशन और स्नाइपर सपोर्ट जैसे मिशन को भी अंजाम दे रही है. पाकिस्तान की तरफ से भी भारतीय सीमा के पास लगातार ड्रोन का इस्तेमाल देखने को मिल रहा है. सीमा सुरक्षा बलों के मुताबिक, पिछले साल पाकिस्तान में ड्रोन से हथियार और नशीले पदार्थ गिराने की लगभग 350 घटनाएं देखी गईं.
एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि, सैन्य ड्रोन के अलावा सामान्य या, घरेलू ड्रोन भी सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बन रहे हैं. भारत की उदार ड्रोन-उड़ान पॉलिसी और यूएवी घुसपैठ के मद्देनजर वीवीआईपी की सुरक्षा के लिए काउंटर-ड्रोन सिस्टम भारत के लिए जरूरी है. ड्रोन बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए साल 2021 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ड्रोन पॉलिसी को काफी उदार बना दिया था. इसके बाद से ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियां एक काउंटर ड्रोन सिस्टम बनाने की कोशिशों में जुटी हुई हैं.
सरकार भी ड्रोन हमलों से बचाव को लेकर कई सारे सुरक्षा उपायों पर विचार कर रही है. इसके तहत सरकार एक 'नेशनल काउंटर रोग ड्रोन पॉलिसी' लाने पर भी विचार कर रही है. इसके तहत ड्रोन का भी रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा और एक हवाई यातायात पुलिस के गठन का भी प्रावधान किया गया है.
साल 2025 तक ड्रोन का ग्लोबल बाजार 54 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंचने का अनुमान जताया गया है. भारत में भी ड्रोन का कारोबार साल 2025 तक 4.2 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है जिसके साल 2030 तक बढ़कर 30 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.